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अन्ना के आंदोलन से शर्मिला को फायदा

८ अक्टूबर २०११

जो देश अन्ना हजारे के आंदोलन में उनके साथ उठ खड़ा हुआ, उसी ने मणिपुर की इरोम शर्मिला के आंदोलन को 11 साल तक नजरअंदाज किया है. लेकिन अन्ना की जलाई आग की गर्मी में लोगों का रूखापन पिघल रहा है.

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तस्वीर: dapd

अन्ना हजारे का 12 दिन का अनशन पूरे देश को हिला देता है. लोग सड़कों पर निकल आते हैं. धरना प्रदर्शन होते हैं. संसद में बहस होती है. सरकार की तरफ से प्रस्ताव पेश होते हैं. समाचार चैनलों पर बहसें झगड़ों में तब्दील होती दिखाई देती हैं. लोग अन्ना को मनाने के लिए अपील करते हैं. मंत्री उनसे मिलने जाते हैं. बॉलीवुड के सितारे गाने गाते हैं. यानी वही होता है जो लेखक पाओलो कोएलो से उधार लेकर शाहरुख खान अपनी फिल्म ओम शांति ओम में कहते हैं कि अगर आप किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहते हैं, तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलाने की तैयारी में जुट जाती है.

Flash-Galerie Indien Anti-Korruption Anna Hazare Demonstration
तस्वीर: dapd

इस शोर शराबे के बीच दिल्ली से काफी दूर पूर्व में मणिपुर के एक अस्पताल में बेड पर भूखी पड़ीं इरोम शर्मिला का अनशन 12वें साल में प्रवेश कर जाता है. 12 दिन की भूख से बिलबिला जाने वाली कायनात को 11 साल के संघर्ष में शिद्दत नजर नहीं आती.

शर्मिला के लिए संघर्ष कर रहे फैसल खान कहते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अन्ना हजारे के आंदोलन के साथ बहुत सी ताकतें काम कर रही थीं. वह कहते हैं, "अन्ना के साथ पूरा संगठित मीडिया और कॉर्पोरेट काम कर रहा था. सिर्फ जिंदल स्टील ने 25 लाख रुपये दिए जो भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है. दशहरे के अपने भाषण में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख ने भी माना कि उनके समर्थन से यह आंदोलन हुआ. इसलिए अन्ना को जल्दी समर्थन मिला, जो अब धीरे धीरे खत्म हो रहा है." खुदाई खिदमतगार संगठन के फैसल खान कश्मीर से इंफाल तक शर्मिला के समर्थन में यात्रा कर रहे हैं.

अन्ना के आंदोलन से सीख

मणिपुर की आयरन लेडी के समर्थकों ने भी अन्ना हजारे के आंदोलन से सीख ली है. लंबे समय से शर्मिला के साथी रहे बबलू लोएतोंगबाम कहते हैं, "अन्ना का आंदोलन हमारे लिए प्रेरणा बनकर आया है. हमें अहसास हो गया है कि अगर हमारा आंदोलन ज्यादा संगठित होगा और हम पूरे भारत से समर्थन जुटा सकें तब सरकार हमारी बात सुनने को मजबूर हो जाएगी."

Sicherheitskräfte in höchster Alarmbereitschaft an einer Wahlstation in Maram
तस्वीर: Fotoagentur UNI

लेकिन लोएतोंगबाम मानते हैं कि उनकी लड़ाई अन्ना की लड़ाई से कहीं ज्यादा मुश्किल है. शर्मिला के बड़े भाई मानवाधिकार कार्यकर्ता सिंहजीत भी मानते हैं कि आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट के खिलाफ शर्मिला की लड़ाई को अन्ना के आंदोलन से नया उत्साह मिला है. वह कहते हैं, "उनके आंदोलन से यह जाहिर हुआ है कि संसद तक लोगों की आवाज पहुंचती है. इसलिए यह खुद को मजबूत करके अपनी आवाज को वहां तक पहुंचाने का सही वक्त है."

सिंहजीत मानते हैं कि एएफएसपीए के बारे में चिंताएं लोगों तक पहुंचाने के लिए एक राजनीतिक मंच होना चाहिए. हालांकि वह कहते हैं कि इसका मतलब यह नहीं कि किसी राजनीतिक दल का समर्थन किया जाएगा.

नए सिरे से होगा काम

मणिपुर में ह्यूमन राइट्स अलर्ट और जस्ट पीस फाउंडेशन चलाने वाले बबलू कहते हैं कि अब वे लोग अपने आंदोलन के लिए समर्थन बढ़ाने पर काम कर रहे हैं. वह बताते हैं, "हमें सभी प्रगतिशील ताकतों और नागरिक समाज के संगठनों के समर्थन की जरूरत है. और फिर हमें सरकार के भीतर भी एक लॉबी बनानी होगी. इन सबके इस्तेमाल से हमें यह बात लोगों तक पहुंचानी होगी कि एएफएसपीए हटाने से भारतीय लोकतंत्र को बढ़ावा ही मिलेगा."

बबलू कहते हैं कि अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती राजधानी दिल्ली में एक आक्रामक और निरंतर मुहिम छेड़ देने की है. वह कहते हैं, "हम यहां मणिपुर में बैठे हैं जो दिल्ली से बहुत दूर है. इसलिए हमें नजरअंदाज कर दिया जाता है. दिल्ली में निरंतर एक अभियान चलाना हमारे लिए मुश्किल है, लेकिन जरूरी है. हम अब दिल्ली में बैठे अपने समर्थकों के जरिए ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं."

दिल्ली में नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स, आशा परिवार, चेतना केंद्र और खुदाई खिदमतगार जैसे की संगठन इस काम को देख रहे हैं. सेव शर्मिला कैंपेन के बैनर तले कश्मीर से मणिपुर तक एक यात्रा की जा रही है. 16 अक्तूबर से शुरू हो रही है यह यात्रा पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम से गुजरते हुए इंफाल पहुंचेगी.

शर्मिला के समर्थक खुश हैं कि अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद अचानक मीडिया, बुद्धिजीवी और यहां तक कि सरकारी गलियारों में भी शर्मिला की चर्चा होने लगी है. यहां तक कि गृह सचिव जीके पिल्लै ने भी हाल ही में कहा कि अन्ना हजारे के अनशन से पहले देश के लोगों ने शर्मिला की कोशिशों को सही तवज्जो नहीं दी.

रिपोर्टः पीटीआई/विवेक कुमार

संपादनः एन रंजन

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