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अफगान लोग जो तालिबान और लड़ाई से अंजान हैं

९ फ़रवरी २०१८

"तालिबान, वह क्या है?" सुल्तान बेगम शर्माते हुए पूछती हैं. वह अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाके वाखन कॉरिडोर में रहती हैं. यह इतना दूर दराज वाला इलाका है कि यहां रहने वाले अफगानिस्तान में दशकों से चल रही लड़ाई से अंजान हैं.

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Afghanistan Frauen bereiten Essen vor
तस्वीर: Getty Images/G.Abbas

इस इलाके में वाखी कबीले के लगभग 12 हजार लोग रहते हैं. फारसी में इसे "बाम ए दुनिया" यानी दुनिया की छत कहते हैं. अफगानिस्तान में एक संकरी पट्टी वाले इस इलाके की सीमाएं पाकिस्तान और ताजिकिस्तान से मिलती हैं और यह चीन तक फैली है. इस इलाके तक पहुंच पाना बहुत ही मुश्किल है. यही वजह है कि अफगानिस्तान में लगभग चालीस साल से चल रहे युद्ध से यह इलाका बिल्कुल महफूज रहा है.

याक के सूखे गोबर से जल रही आग को कुरेदते हुए सुल्तान बेगम कहती हैं, "लड़ाई, कैसी लड़ाई?" हालांकि उन्होंने यह जरूर सुना है कि उनके इलाके की सीमा पर रूसी सैनिक सिगरेट फेंक जाया करते थे. लेकिन यह बात उस जमाने की है जब अफगानिस्तान पर सोवियत हमला हुआ था जिसका मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने मुजाहिदीन को हथियार दिए थे. नौ साल तक चले इस बर्बर संघर्ष में लगभग दस लाख लोग मारे गए और लाखों बेखर हो गए.

Afghanistan Wakhan Nomaden Familie
तस्वीर: Getty Images/G.Abbas

इसके बाद अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया. तालिबान देश की सत्ता पर काबिज हुए, फिर उन्हें हटाया गया. वहां लड़ाई कभी शांत नहीं हुई और हजारों लोग अब तक इसकी भेंट चढ़ चुके हैं. सुल्तान बेगम के बड़े बेटे असकर शाह ने पाकिस्तानी व्यापारियों से तालिबान की खौफनाक कहानियां सुनी हैं. वह कहते हैं, "तालिबान बहुत बुरे लोग हैं. वे किसी और देश के हैं. वे भेड़ों का बलात्कार करते हैं और इंसानों की हत्या."

यहां के लोगों को अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले या फिर तालिबान और हालिया 'इस्लामिक स्टेट' की बर्बरता के बारे में बहुत कम जानकारी है. असकर शाह बड़ी जिज्ञासा से पूछते हैं, "क्या विदेशियों ने हमारे देश पर हमला किया?"

19वीं सदी में इस इलाके को जार रूस और ब्रिटिश भारत के बीच ग्रेट गेम बफर जोन बनाया गया था. तब से किसी सरकार ने इस इलाके को नहीं छुआ है. आसपास के देशों से यहां पहुंचा जा सकता है. लेकिन इसके लिए आपको पैदल या फिर घोड़ों या याक पर लंबा और मुश्किल सफर तय करना होगा.

वाखी उदारवादी मुस्लिम लोग हैं और आगा खान के अनुयायी हैं. पूरे अफगानिस्तान के विपरीत यहां कहीं बुरका भी नहीं दिखाई देता. यहां की जिंदगी में न तो हिंसा है और न ही अपराध. यहां जीवन याक और दूसरे मवेशियों के इर्द गिर्द घूमता है. कुछ व्यापारी इस इलाके में आते हैं जिनसे यहां के लोग याक और मवेशियों के बदले खाना और कपड़े खरीदते हैं.

यहां न तो बिजली है और न ही इंटरनेट और मोबाइल फोन सर्विस. कभी कभी यहां रेडियो सुनने को मिल जाता है, जिस पर लोग रूस से प्रसारित होने वाले अफगान समाचार सुनते हैं. ईरानी संगीत भी यहां के लोगों को बहुत पसंद है. लेकिन बैटरी खत्म तो सब खत्म. और फिर उन्हें व्यापारियों के आने का इंतजार करना पड़ता है.

Wakhi Wakhan Männer rauchen Opium Afghanistan
तस्वीर: Getty Images/G.Abbas

यहां साल में 300 दिन तापमान शून्य डिग्री से नीचे रहता है. इसलिए यहां जिंदगी बसर करना आसान नहीं है. छोटा सा फ्लू भी जानलेवा हो जाता है. बच्चे के जन्म के समय बहुत सी महिलाओं की मौत हो जाती है. इन मुश्किल हालात में यहां के लोगों को अफीम का ही सहारा होता है. यहां रहने वाले नजर कहते हैं, "अफगान पहचान के नाम पर हमारे पास बस अफीम ही है. यहां की पूरी आबादी इसकी आदी है."

लेकिन बदलाव की कोशिशें भी हो रही हैं. अफगान सरकार का कहना है कि वह हवाई सर्वे करा रही है ताकि इस इलाके को बाकी बादाकशान प्रांत से जोड़ने के लिए सड़क तैयार कराई जा सके. अफगान अधिकारियों के अनुसार, इस कॉरिडोर के उत्तरी छोर पर एक सैन्य बेस बनाने के लिए चीनी अधिकारियों से उनकी बात चल रही है. अगर ऐसा होता है तो इस इलाके में कारोबार और पर्यटन के लिए रास्ते खुलेंगे और यहां के लोगों तक मेडिकल सुविधाएं भी पहुंचेंगी.

लेकिन उनके खतरे भी बढ़ेंगे. फिर यहां के लोग युद्ध की बर्बरता और तबाही से बचे नहीं रह पाएंगे, जिससे वे अभी तक बचे हुए हैं.

एके/एमजे (एएफपी)