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समाज

अब नौसेना में भी महिलाओं को मिला बराबरी का अधिकार

चारु कार्तिकेय
१७ मार्च २०२०

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय नौसेना में तैनात शार्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारियों को पुरुष अधिकारियों की तरह स्थायी कमीशन का हकदार ठहराया है. कोर्ट ने तीन महीनों में निर्देश को लागू करने के लिए कहा है.

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Indien Flugzeugträger INS Vikramaditya
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/A. Poyrekar

थल सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के निर्देश देने के ठीक एक महीने बाद, सुप्रीम कोर्ट ने नौसेना में भी महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के रास्ते खोल दिए हैं. मंगलवार 17 मार्च को दिए एक ऐतिहासिक फैसले में, अदालत ने कहा कि भारतीय नौसेना में तैनात शार्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) की महिला अधिकारी भी ठीक पुरुष अधिकारियों की तरह स्थायी कमीशन की हकदार हैं.

यह ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कोर्ट ने कहा, "महिलायें भी पुरुष अधिकारियों के जैसी ही कुशलता से सेल कर सकती हैं. नौसेना में एसएससी की उन महिलाओं को स्थायी कमीशन ना देना जिन्होंने राष्ट्र की सेव की है न्याय की दृष्टि से एक गंभीर गलती है."

स्थायी कमीशन सेना में अधिकारियों को रिटायरमेंट तक काम करने का हकदार बनाता है जबकि एसएससी के तहत अधिकारी सेना में सिर्फ 10 साल काम कर सकते हैं.

Indien Oberster Gerichtshof in Neu Dehli
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

दिल्ली हाई कोर्ट ने पांच साल पहले ही नौसेना में महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन दिए जाने के दावों को स्वीकार करते हुए नौसेना को निर्देश दे दिए थे. लेकिन केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी.

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने तीन महीनों में निर्देशों को लागू करने को कहा है. थल सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिलाने वाला  निर्णय भी इसी पीठ ने दिया था.

पीठ ने कहा कि एक बार जब नौसेना में महिलाओं की भर्ती पर से वैधानिक प्रतिबंध हट गया, उसके बाद स्थायी कमीशन देने में भी पुरुषों और महिलाओं के साथ एक सा ही बर्ताव करना होगा.

भारतीय नौसेना में पहली बार महिलाओं को 9 अक्टूबर 1991 को भर्ती कराया गया था. लेकिन उनकी भर्ती नौसेना के सिर्फ चार विभागों तक सीमित रखी गई थी - लॉजिस्टिक्स, कानून, एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) और शिक्षा.

Indien Tag der Republik
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

26 सितम्बर, 2008 को रक्षा मंत्रालय ने पहली बार तीनों सेनाओं में एसएससी महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का फैसला लिया. लेकिन ये निर्णय सेना की सिर्फ कुछ श्रेणियों तक सीमित था, जिसमें शामिल थे शिक्षा, कानून और नेवल आर्किटेक्चर. लॉजिस्टिक्स और एटीसी को इस से बाहर रखा गया था. महिला अधिकारियों ने इन्ही प्रावधानों को चुनौती देते हुए अदालत में अपील दायर की थी.

महिलाओं को जहाज चलाने की जिम्मेदारी ना देने के पीछे केंद्र की जो दलीलें थीं उन्हें पीठ ने सिरे से नकार दिया. केंद्र का कहना था कि रूस से लिए गए नौसेना के जहाजों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं होते. इस तरह की सभी दलीलों को खारिज करते हुए अदालत ने सेनाओं में पुरुषों और औरतों को बराबरी का दर्जा देने की जरुरत को रेखांकित कर दिया.

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