1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अमेरिका ने विदा ली विश्व सत्ता की भूमिका से

इनेस पोल
२३ जनवरी २०१७

नए राष्ट्रपति के रूप में डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के हितों को सहबंध की जिम्मेदारियों से भी उपर रख रहे हैं. डॉयचे वेले की इनेस पोल कहती हैं कि विभाजित देश को एकजुट करने के लिए ट्रंप ने खतरनाक राष्ट्रवाद का सहारा लिया है.

https://p.dw.com/p/2WFIW
Washington Amtseinführung Trump
तस्वीर: Picture-Alliance/AP Photo/M. Balce Ceneta

डॉनल्ड ट्रंप डॉनल्ड ट्रंप हैं और रहेंगे. जिन लोगों ने उम्मीद की थी कि न्यू यॉर्क के कारोबारी राष्ट्रपति पद संभालने के बाद अपनी भाषणबाजी छोड़ देंगे, उन्हें निराशा होगी. अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति का पहला भाषण संदेह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता. ट्रंप विश्व के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पदधारी के रूप में अपने मौखिक हमलों को कम करने के बारे में कतई नहीं सोच रहे.

इतना ही नहीं वे चुनाव प्रचार के दौरान कही गई बातें दोहरा रहे हैं और अलगाववादी आर्थिक और रक्षा नीतियों के जरिये अमेरिका को फिर से महान बनाने का वादा कर रहे हैं. वादा कर रहे हैं कि विदेशी ताकतों के असर को कम कर करोड़पतियों वाली उनकी सरकार देश को न्यायोचित बनाएगी और अच्छी शिक्षा और सुरक्षिक रोजगार बनाएगी. उनके कार्यकाल में अमेरिका सिर्फ अपने देश की भलाई के बारे में सोचेगा.

यह साफ है कि इसके साथ वह अमेरिका की वैश्विक सत्ता वाली भूभिका छोड़ रहे हैं, और एक इंसान के लिए जो अपने देश के हित को सर्वोपरि रख रहा है, इसमें कोई समस्या भी नहीं है.

देखिए राष्ट्रपति बनते ही क्या बोले ट्रंप

शब्दों का नया वजन

इस तरह 70 वर्षीय राष्ट्रपति ने अपने शपथग्रहण समारोह में कुछ भी नया नहीं कहा, लेकिन इसके बावजूद उसमें नया वजन है. भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति के अधिकार सीमित हैं, लेकिन वह देश में राजनीतिक माहौल को बहुत हद तक प्रभावित करता है. तद्नुरूप देश भर से आए उनके समर्थकों ने उनका जोशीला अभिवादन किया. इसलिए भी कि वे चुनाव प्रचार के अपने बयानों से नहीं हटे हैं. और इतनी ही दृढ़ता के साथ उनके विरोधियों ने नई राजनीतिक धारा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

Pohl Ines Kommentarbild App
वाशिंगटन संवाददाता इनेस पोल

अमेरिका में लंबे चुनाव प्रचार का एक स्वाभाविक असर होता है कि नया राष्ट्रपति एक घायल और विभाजित देश पाता है. ऐसा हमेशा होता है, भले ही ट्रंप के विभाजनकारी भाषणों के कारण मौजूदा चुनाव अभियान स्तरहीनता की हद तक गिर गया हो. इसलिए दशकों से नए राष्ट्रपति का संदेश सहिष्णुता वाला होता था. लेकिन डॉनल्ड ट्रंप यहां भी एक अपवाद रहे हैं.

सख्त इंसान की ताकत

वह सहिष्णुता की ताकत में नहीं, बल्कि सख्त इंसान की ताकत में भरोसा करते हैं. अपने हर शब्द और हर संकेत के जरिये अपने पहले ही दिन से उन्होंने संदेश दिया कि वे हस्तक्षेप करेंगे. इसमें वे पॉपुलिस्टों की रूलबुक का पालन करेंगे जो पराये को खतरनाक कहती है और उसकी वजह से पैदा डर का इस्तेमाल अपने पीछे समर्थक बढ़ाने के लिए करती है.

देखिए असली बालों वाले नकली ट्रंप

इसके साथ उन्होंने बहुत सारे फंदे छोड़ दिए हैं, और खासकर उदारवादी और विश्वप्रेमी अमेरिकियों के लिए जो एकदम अलग देश चाहते हैं और अपने को एक खुली दुनिया का हिस्सा समझते हैं, जिसके लिए संघर्ष करने और जिसका समर्थन करने की जरूरत है.

समृद्धि से दूर

भले ही 54 प्रतिशत अमेरिकियों ने किसी और को राष्ट्रपति पद पर चाहा हो और अमेरिका की परंपरागत चुनाव पद्धति के कारण वह उम्मीदवार जीता जिसे 30 लाख कम वोट मिले, उनके बहुत सारे समर्थकों की चिंताएं और तकलीफ सच्ची हैं. इन सच्चाइयों को नकारना घातक होगा. ये शर्मनाक है कि दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक में कितने सारे लोग हताशापूर्ण गरीबी में जीते हैं, कितने बच्चों को जन्म से ही कोई मौका नहीं होता क्योंकि वे गलत परिवारों और ऐसी शिक्षा पद्धति में पैदा हुए हैं जो सिर्फ पैसे वालों को बढ़ावा देता है, कितने लोग खुद को अकेला महसूस करते हैं.

बहुत सारी समझ में आने वाली वजहें हैं कि ट्रंप समर्थक देश के राजनीतिज्ञों पर से भरोसा क्यों खो चुके हैं. डॉनल्ड ट्रंप जैसी बात सिर्फ अमेरिका के साथ हो सकती है. लेकिन यह बात सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं है कि सत्ता का घमंड और जहालत खतरनाक राष्ट्रवादियों के दरवाजे खोल देता है.