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आपके खाने में पहुंच रहे हैं कॉन्टैक्ट लेन्स

२४ अगस्त २०१८

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आपके खाने में कॉन्टैक्ट लेन्स का प्लास्टिक मिला हुआ है? बिना सोचे समझे लेन्स को कहीं भी फेंक देने से यह नौबत आई है.

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तस्वीर: Fotolia/Africa Studio

भाग दौड़ की इस दुनिया में हर चीज अब "डिस्पोजेबल" बनने लगी है यानी एक दो बार इस्तेमाल किया और फिर फेंक दिया, फिर चाहे चाय कॉफी के कप हों या फिर सफाई के लिए इस्तेमाल होने वाले दस्ताने. यही हाल कॉन्टैक्ट लेन्स का भी है. एक ही लेन्स को बार  बार इस्तेमाल करने की जगह अब लोग डिस्पोजेबल लेन्स लगाना बेहतर समझते हैं.

जाहिर है, इनका रखरखाव नहीं करना पड़ता है. इनकी सफाई पर ध्यान नहीं देना पड़ता है. अगर लगाते हुए ये हाथों से फिसल जाएं, तो ढूंढने की भी जरूरत नहीं. क्योंकि ये पानी में घुल जाते हैं, इसलिए वॉशबेसिन में बस पानी चला देना ही काफी होता है. और एक बार इस्तेमाल करने के बाद जब इन्हें बदलने की बारी आती है, तब भी लोग यही करते हैं. या तो इन्हें टॉयलेट में फ्लश कर देते हैं या पानी में बहा देते हैं.

घर में इनसे कूड़ा जमा नहीं होता, इसलिए ये काफी सहूलियत भरा लगता है. लेकिन सागरों में इनसे जितना कूड़ा जमा हो रहा हैं, वो हैरान करने वाला है. अमेरिका में कॉन्टैक्ट लेन्स पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि अकेले अमेरिका में ही हर साल कॉन्टैक्ट लेन्स के कारण 40 करोड़ टूथब्रश के बराबर प्लास्टिक का कूड़ा जमा हो रहा है. और क्योंकि ये पानी में घुल सकते हैं, ऐसे में ये समुद्रों में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा को तेजी से बढ़ा रहे हैं. प्लास्टिक की किसी भी कण को तब माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है जब उसका व्यास पांच मिलीमीटर से कम होता है.

एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में अपने शोध के नतीजे बताते हुए रॉल्ड हैल्डन ने कहा, "अमेरिका में हर साल अरबों की संख्या में कॉन्टैक्ट लेन्स पानी में बहा दिए जाते हैं. इनसे सालाना 20,000 किलो कूड़ा जमा होता है." हैल्डन का कहना है कि उन्होंने खुद अपने व्यस्क जीवन का अधिकतर हिस्सा कॉन्टैक्ट लेन्स के साथ बिताया है और उन्हें शोध के लिए प्रोत्साहन भी यहीं से मिला क्योंकि उनके मन में यह सवाल उठा कि जो कॉन्टैक्ट लेन्स फेंक दिए जाते हैं, उनका आखिर होता क्या है.

उन्होंने पाया कि अमेरिका में साल भर में केवल कॉन्टैक्ट लेन्स की पैकिंग से ही 1.3 करोड़ किलो कूड़ा जमा हो जाता है. साथ ही रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि कॉन्टैक्ट लेन्स इस्तेमाल करने वाले 15 से 20 फीसदी लोग इन्हें टॉयलेट या सिंक में बहाते हैं. सीवेज के साथ ये वॉटर वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट पहुंचते हैं. यहां ये छोटे छोटे कणों में जरूर टूट जाते हैं लेकिन विघटित नहीं हो पाते हैं.

सीवेज के पानी से खाद बनाने का काम भी किया जाता है. इसका मतलब है कि लेन्स का प्लास्टिक खाद में और वहां से खेतों की जमीन और फिर हमारे खाने के अंदर पहुंच जाता है. इसके अलावा जब सीवेज के पानी को समुद्र में बहाया जाता है, तो मछलियां और छोटे समुद्री जीव इस प्लास्टिक को खाना समझ कर खा लेते हैं. इस तरह से ये खाद्य श्रृंखला में पहुंच जाता है. जब इंसान मछली खाते हैं, तो ये प्लास्टिक उनके शरीर के अंदर भी पहुंच जाता है.

ऐसे में हैल्डन और उनकी टीम की सलाह है कि लोग कॉन्टैक्ट लेन्स को बहाने की जगह उन्हें अलग से प्लास्टिक के कूड़े के साथ फेंके ताकि उसे रिसाइकल किया जा सके. अपने शोध में उन्होंने यह भी पाया है कि कॉन्टैक्ट लेन्स बनाने वाली कंपनियां पैकेजिंग पर ठीक से लोगों को इस बारे में नहीं बताती हैं कि लेन्स को बहाना पर्यावरण के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है. इसे भी बदलने की जरूरत है.

ईशा भाटिया (एएफपी)

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