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अमेरिका में तथ्यों नहीं सिद्धांतों की लड़ाई

इनेस पोल
६ नवम्बर २०१८

मध्यावधि चुनावों ने नया आयाम ले लिया है क्योंकि डॉनल्ड ट्रंप ने इसे पूरी तरह से अपने बारे में बना लिया है. डॉयचे वेले की मुख्य संपादक इनेस पोल कहती हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने वहां राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया है.

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USA Trump Yellowstone International Airport
तस्वीर: Reuters/C. Barria

कुछ ऐसी बाजियां होती हैं जिन्हें आप असलियत में जीतना नहीं चाहते. अमेरिका में बतौर रिपोर्टर एक साल देश भर में घूमने के बाद 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के बारे में मेरी भविष्यवाणी उस वक्त की आम राय से काफी अलग थी. मुझे साफ नजर आ रहा था कि डॉनल्ड ट्रंप के सामने व्हाइट हाउस में जाने का अच्छा मौका है. आखिर में यही हुआ, ट्रंप जीत गए और मैंने भी शर्त में व्हिस्की की एक बोतल जीती.

दोस्त और दुश्मन

दो साल बाद, अमेरिका में एक बार फिर चुनाव हो रहे हैं. हालांकि इस बार चुनाव राष्ट्रपति का नहीं बल्कि अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों के लिए हो रहा है. लेकिन ट्रंप के अमेरिका में राजनैतिक मंच पर होने वाली हर बात सिर्फ उनके बारे में होती है. इसलिए चुनाव अभियानों में ट्रंप जोरशोर से शामिल हुए हैं और दुनिया को दोस्तों और दुश्मनों में विभाजित करने के अपने एजेंडे पर पिछले हफ्तों में और मेहमत की है, मसलन मेक्सिको की सीमा पर इराक से भी ज्यादा सैनिक तैनात कर.

डॉयचे वेले की मुख्य संपादक इनेस पोल
डॉयचे वेले की मुख्य संपादक इनेस पोलतस्वीर: DW/P. Böll

यह राष्ट्रपति अपने विरोधियों के लिए चीजें आसान कर देता है. उनका बेलाग, आक्रामक अंदाज, बड़बोलापन और झूठ बेहद उकसाने वाले हैं और जिनपर ट्रंप निशाना साधते हैं वे शायद ही हमले का जबाव ना देते हों. ये तकरार उन्हें खबरों में रखती है और डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं को भी अपने ऊपर और सुधारों पर ध्यान देने से रोकती है. ट्रंप के ट्वीटों पर उनके जुनून का मतलब है कि वे ऐसे उम्मीदवार के ईर्द गिर्द इकट्ठा नहीं हो रहे जो दो साल में सही रणनीति के साथ ट्रंप को फिर से चार साल के लिए सत्ता में आने से रोक सकता है.

राजनीतिक ध्रुवीकरण

ध्रुवीकरण दो-दलीय राजनीतिक व्यवस्था में विशेष रूप से खतरनाक होता है, क्योंकि उसमें गठबंधन की संभावना नहीं होती जिसमें आपसी समझौता जरूरी होता है. दरअसल ये लोकतंत्र के लिए अत्यंत खतरनाक है जब किसी देश की राजनीति में दो ध्रुव एक दूसरे के इतने विपरीत हो जाए कि लोग दूसरे पक्ष की बात ही सुनना न चाहें, ये स्वीकार करने की तो बात छोड़िए कि राजनीतिक विरोधी के पास भी दलील हो सकती है.

अमेरिका की राजनीति में ट्रंप की सबसे स्थायी विरासत यही होगी कि उन्होंने लोगों में सिद्धांतों के बदले दलीलों पर बहस करने की क्षमता खत्म कर दी है, अपने टि्वटर प्रेम की मदद से भी. लोग ट्रंप पर भरोसा करना चाहते हैं. लोग इस बात को मानना चाहते हैं कि ट्रंप अमेरिका को फिर से महान बना रहे हैं. साथ ही वे यकीन करना चाहते हैं कि एक ताकतवर नेता वैश्विक दुनिया की जटिल चुनौतियों को दूर रख सकता है, समस्याओं को हल कर सकता है.

सच झूठ का अंतर खत्म

भरोसा, ज्ञान नहीं होता है. ट्रंप के शासन में तथ्य और सच-झूठ का साफ अंतर गौण हो गया है. ट्रंप के एक साल के चुनावी अभियान और राष्ट्रपति के रूप में दो साल के शासन की यह कड़वी सच्चाई है. आज जब ट्रंप और उनकी टीम फेसबुक और फॉक्स न्यूज में खुले आम तथ्यों को तोड़ते मरोड़ते हैं तब भी लोगों को खास फर्क नहीं पड़ता. ट्रंप के बड़े से बड़े समर्थकों को ये भी पता होता है कि झूठ बोला जा रहा है क्योंकि तथ्यों का कोई मोल नहीं. यही अमेरिका की असल समस्या है. 

जब तथ्यों और सच्चाई को दरकिनार किया जाने लगता है और झूठ को केवल मामूली भूल माना जाता है तब लोकतंत्र और राय बनाने की आजादी खत्म होने लगती है. कुल मिलाकर इसका मतलब लोकतंत्र और राष्ट्र के बारे में हमारी समझ को खोखला करना है. और ये कि निरंकुश शासक न केवल सत्ता में आते हैं बल्कि सत्ता में बने भी रहते हैं.

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