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इंडोनेशिया में जंगलों का विस्तार

१६ अगस्त २०११

ग्रीनपीस के मुताबिक इंडोनेशिया में हर साल 10.8 लाख हेक्टेयर जंगल गायब हो रहे हैं. पिछले 20 सालों में चीन और भारत ने जंगलों को बढ़ाने की सफल शुरुआत की है. क्या इंडोनेशिया इनके नेतृत्व का पालन कर सकता है.

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तस्वीर: AP

इंडोनेशिया में बहुत ज्यादा जंगल काटे जाते हैं. इंडोनेशिया में जमीन खाली करने के लिए जंगल की कटाई और जलाने की प्रक्रिया से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में भी स्थिति खराब है. सरकार ने इस मुद्दे पर ध्यान दिया है. इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुसीलो बाम्बांग युधोयुनो ने स्वेच्छा से इस कटाई पर रोक लगा दी है. लेकिन इंडोनेशिया के जंगल गायब होते जा रहे हैं. जानकारों का कहना है रोक लगाने से कुछ नहीं होने वाला है.

वृक्ष लगाने के प्रयास जारी रहने चाहिए. अधिकार और संसाधन पहल संस्था (आरआरआई) के मुताबिक भारत और चीन समेत कई एशियाई देशों ने ऐसी कई योजनाएं शुरू की हैं. आरआरआई एक वैश्विक गठबंधन जो वन भूमि के उपयोग में नीतिगत सुधारों के लिए बढ़ावा देने का काम करती है. संस्था ने पांच देशों की जांच और तुलना पर शोध किया है.

NO FLASH WWF: Lage der Regenwälder in Indonesien dramatisch
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इन देशों में चीन, दक्षिण कोरिया, विएतनाम, भारत और चिली शामिल हैं. आरआरआई की संयोजक एंडी व्हाइट के मुताबिक जिन देशों ने भूमि उपयोग करने के लिए स्थानीय समुदायों और देशी लोगों को अधिकार दिए हैं वह अपने जंगल बढ़ाने के लक्ष्यों को पाने में कामयाब दिखे हैं. व्हाइट के मुताबिक जिन देशों ने ऐसे उपाय नहीं किए वह लक्ष्यों को नहीं पा सके.

Palmöl Plantage in Aceh
तस्वीर: Vidi Athena Dewi Legowo

भूमि उपयोग सुधार

शोध में पाया गया कि सर्वे में शामिल पांच देशों में से चीन ने जंगलों की खाली जमीन को फिर से हरा भरा बनाने में कामयाबी हासिल की. बीजिंग का कहना है कि उसने 1990 और 2010 के बीच 5 करोड़ हेक्टेयर की जमीन पर दोबारा से पेड़ लगाए गए.

गैर सरकारी संगठन लैंडेसा के साथ काम करने वाली ली पिंग के मुताबिक भूमि उपयोग सुधार जो सदी के आखिर में अपनाए गए थे वह सफल रहे. चीनी सरकार ने किसानों को सार्वजनिक वन भूमि का 90 प्रतिशत जमीन दिया है.

इसके बदले चीनी किसान भूमि का एक टुकड़ा दो पीढ़ियों तक इस्तेमाल कर सकते हैं. जंगलों की जमीन की देखभाल के लिए नीति ने किसानों में प्रोत्साहन पैदा किया. ली पिंग के मुताबिक किसानों को जंगल की जमीन पर पैदा होने वाली फसल रखने के अधिकार हैं. किसानों को इस बात की भी छूट है कि वह अपने पसंद के पेड़ लगाएं. लेकिन कुछ सीमा भी हैं. जंगल की जमीन को खेती के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. और बिना सरकारी इजाजत के पेड़ नहीं काटे जा सकते हैं.

ग्रीन हाउस गैस

Flash-Galerie Waldbrand Indonesien
तस्वीर: AP

हालांकि आलोचक कहते हैं कि आंकड़े पूरी कहानी नहीं बयां करते हैं. उदाहरण के लिए वृक्षारोपण को जंगल की जमीन के तौर वर्गीकृत किया जा रहा है. आरआरआई की संयोजक व्हाइट के मुताबिक जंगल की जमीन की परिभाषा राजनैतिक और तकनीकी तौर पर विवादों में है. जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से उत्सर्जन क्षमता एक प्रमुख चिंता का विषय है.

एक प्राकृतिक वर्षा वन 306 टन कार्बन डाइओक्साइड प्रति हेक्टेयर सोखने की क्षमता रखता है. जबकि ताड़ 63 टन ही कार्बन डाइओक्साइड सोख पाते हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में व्हाइट ने कहा, "यह भी सच है कि ताड़ की खेती पार्किंग लॉट या खनिज से ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड सोख लेती है."

भारतीय वन कार्यकर्ता मधु सरीन के मुताबिक भारत की जंगल बढ़ाने की कोशिश से वह लोग गुस्से में हैं जो चिन्हित किए गए जंगलों के पास रहते है. सरीन के मुताबिक, "एक कारण है जिसके आधार पर भारत सरकार कह रही है कि जंगल बढ़े हैं. वह यह है कि सरकार के वन विभाग के लोग खेती वाली जमीन में जबरन वृक्षारोपण कर रहे हैं."

रिपोर्ट: जिपोरा रोबीना (आमिर अंसारी)

संपादन: आभा एम

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