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लोगों से पूछी इच्छा मृत्यु पर राय

१६ मई २०१६

अक्सर लोग मरना चाहते हैं. सबको तो मरने की इजाजत नहीं दी जा सकती लेकिन कुछ लोग जिनके लिए जीने के मतलब सिर्फ दर्द में रहना है, क्या उन्हें मरने की आजादी होनी चाहिए? बहस बड़ी और पुरानी है.

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Symbolbild Sterbehilfe Hand halten Hände
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Kahnert

सालों की बहस और कानूनी लड़ाई के बाद भारत सरकार ने इच्छा मृत्यु पर कानून का मसौदा पेश किया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने ड्राफ्ट बिल को अपनी वेबसाइट पर पोस्ट किया है और आम लोगों के इस कानून पर अपनी राय मांगी है.

नया कानून मरीजों और डॉक्टरों को चिकित्सीय सुविधा रोकने या बंद करने के लिए जिम्मेदारी से सुरक्षा देता है. इसके अलावा इसमें यह भी प्रवाधान है कि दर्द कम करने का इलाज जारी रह सकता है. इस बिल के कानून बनने से मरीजों को अपनी इच्छा से मरने का अधिकार होगा और वे गंभीर बीमारी की स्थिति में अपना इलाज रोकने का फैसला ले सकते हैं. भारत सरकार ने इस ड्राफ्ट बिल पर लोगों से 19 जून तक राय मांगी है.

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, "सरकार ने पैसिव इच्छा मृत्यु पर कानून बनाने से पहले लोगों से उनका मत और टिप्पणी मांगने का फैसला किया है." कानून के मसौदे के साथ एक नोट भी है जिसमें बताया गया है कि नकारात्मक इच्छा मृत्यु का मतलब जीवन के जारी रहने के लिए जरूरी इलाज या लाइफ सपोर्ट सिस्टम को बंद करना, एंटी बायटिक बंद करना और कॉमा वाले मरीज का हर्ट लंग मशीन हटाना है.

पिछली बार स्वास्थ्य मंत्रालय ने इच्छा मृत्यु पर प्रावधान बनाने पर 2006 में विचार किया था. लेकिन विशेषज्ञों की रिपोर्ट मिलने पर ऐसा कानून न बनाने का फैसला किया गया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के एक फैसले में पैसिव यूथेनेजिया यानी इच्छामृत्यु के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए. साथ ही यह भी कहा गया कि कानून बनने तक इन दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए.

2012 में कानून आयोग ने एक बार फिर एक कानून का प्रस्ताव बनाया जिसमें पैसिव यूथेनेजिया और जीने की इच्छा पर बात की गई. मंत्रालय की ओर से जारी एक नोट में कहा गया है, “लॉ कमीशन की 241वीं रिपोर्ट और मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट बिल के आधार पर इस बात पर विचार किया जा रहा है कि इच्छा मृत्यु पर बिल बनाया जाए या नहीं.”

वीके/एमजे (पीटीआई)