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समाज

इतना खर्च करता है जर्मनी सामाजिक सुरक्षा पर

महेश झा
२९ जनवरी २०१९

जर्मनी अपनी आर्थिक क्षमता का करीब तिहाई हिस्सा नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा पर खर्च करता है और ये खर्च लगातार बढ़ रहा है.

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Gehaltsabrechnung
तस्वीर: picture-alliance

किसी भी देश में स्वस्थ सामाजिक सुरक्षा का आधार आबादी की सही संरचना, लगातार होता आर्थिक विकास और नियमित काम करने की संभावना होती है. नौकरी या समुचित आय देने वाले व्यवसाय से बेहतर सामाजिक सुरक्षा और कोई नहीं. सामाजिक सुरक्षा की जरूरत तब होती है जब किसी के पास आय का स्रोत न हो. जर्मनी में पेंशनरों के मुकाबले काम करने वालों की ज्यादा तादाद और सुदृढ़ आर्थिक विकास सामाजिक कल्याण वाले राज्य की नींव रहे हैं.

1991 में जर्मनी का सकल राष्ट्रीय उत्पाद 1579 अरब यूरो था और सामाजिक सुरक्षा पर उसने 395 अरब यूरो खर्च किया था. 2017 में सकल राष्ट्रीय उत्पाद 3263 अरब यूरो था और सामाजिक सुरक्षा पर खर्च 965 अरब यूरो. तीन दशक में सामाजिक सुरक्षा पर खर्च बढ़कर 20 फीसदी से करीब 30 फीसदी हो गया है. इसकी एक वजह ये भी है कि जर्मनी की आबादी बुजुर्ग होती जा रही है. पेंशन और चिकित्सीय देखभाल पर खर्च बढ़ रहा है.

सामाजिक मामलों पर देश भर में होने वाले खर्च का हिसाब जर्मन सरकार हर साल सामाजिक बजट में देती है. 2017 में जर्मनी का सामाजिक मदों पर खर्च नया रिकॉर्ड छू गया था. इसमें सबसे बड़ा खर्च पेंशन का है. इस मद पर 304 अरब यूरो खर्च हुए. सरकारी चिकित्सा और सेवा बीमा पर 266 अरब यूरो तो बेरोजगारी बीमा पर करीब 27 अरब यूरो.

सामाजिक सुरक्षा पर होने वाला ये खर्च आखिर आता कहां से है. तो इसका जवाब ये है कि यह खर्च यहां के नागरिक, नियोक्ता यानि उद्यम और सरकार आपस में करीबन बराबर बराबर बांटते हैं. 2017 में देश के सामाजिक खर्च का करीब 34-34 प्रतिशत भार सरकार और नियोक्ताओं ने उठाया तो 31 प्रतिशत आम लोगों ने दिया.

जर्मनी में पेंशन की व्यवस्था दो पायों पर टिकी है. एक तो कंट्रीब्यूटरी पेंशन, जिसके लिए कामगार और नियोक्ता हर महीने वेतन का खास प्रतिशत देते हैं. दूसरा पाया उद्यमों की अपनी अतिरिक्त पेंशन प्रणाली है. दोनों को मिलाकर कामगारों को इतनी पेंशन मिल जाती है कि वे बुढ़ापे में सम्मान की जिंदगी बिता सकें. पेंशन और चिकित्सा के अलावा सामाजिक सुरक्षा का ये खर्च बच्चों के लिए दिए जाने वाले भत्ते, युवाओं और बच्चों की मदद, लंबे समय से बेरोजगार लोगों के लिए सामाजिक कल्याण भत्ता और किसानों के पेंशन पर किया जाता है.

बॉस से इतना कम है वेतन

न्यूनतम वेतन

जर्मनी ने लंबी बहस के बाद 2015 में न्यूनतम वेतन लागू किया है. इस साल से देश में न्यूनतम वेतन 9.19 यूरो प्रति घंटे हैं. ज्यादातर औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वालों का न्यूनतम वेतन इससे कहीं ज्यादा है. आम तौर पर वेतनमान उद्यम और ट्रेड यूनियन मिलकर तय करते हैं. इसलिए काफी समय तक इस पर बहस होती रही है कि न्यूनतम वेतन सरकार द्वारा तय करने पर कामगारों के सौदेबाजी के अधिकार पर असर होगा. लेकिन कई इलाकों में नियोक्ताओं के समझौते की परिधि से बाहर निकलने के बाद न्यूनतम वेतन की मांग ने जोर पकड़ लिया.

न्यूनतम वेतन को राजनीतिक बहस से दूर रखने के लिए कानून के तहत एक स्थायी आयोग बनाया गया है जो इसके बारे में फैसले लेता है. इसमें आयोग के अध्यक्ष के अलावा कामगार संगठनों के तीन प्रतिनिधि, नियोक्ता संगठनों और उद्यमों के तीन प्रतिनिधि और दो अर्थशास्त्री होते हैं. आयोग देश की आर्थिक स्थिति का आकलन करता है और उसके अनुरूप न्यूनतम पगार तय करता है. शुरू में न्यूनतम वेतन दो साल के लिए तय किया जाता था, लेकिन 2019 और 2020 के लिए 2018 के अंत में ही फैसला कर लिया गया. 2020 के लिए न्यूनतम वेतन 9.35 यूरो तय किया गया है.

बेसिक आय की बहस

इस बीच सामाजिक सुरक्षा पर बढ़ते खर्च के कारण जर्मनी में भी सबको बेसिक वेतन देने की बहस चल रही है. अवधारणा ये है कि जीवनयापन के लिए जरूरी ये राशि देश के हर नागरिक को चाहे वह बच्चा हो या बुजुर्ग, सरकारी बजट से दी जाएगी. इसके ऐवज में इस समय दी जाने वाली सरकारी मदद, टैक्स में राहत और पेंशन बीमा पर होने वाला खर्च खत्म कर दिया जाएगा. साथ ही काम पर कामगारों को दी जाने वाली छंटनी से सुरक्षा भी नहीं रहेगी. कामगार और नियोक्ता स्वतंत्र तौर पर वेतन तय कर पाएंगे.

इस पद्धति की प्रमुख आलोचना ये है कि इस समय भी सामाजिक कल्याण भत्ते के रूप में सबको वेतन मिलता है. ये अलग बात ये कि यह भत्ता कुछ शर्तों पर मिलता है क्योंकि मौलिक रूप से ये मुश्किल में पड़े नागरिक को सामाजिक मदद है. बेसिक वेतन की दूसरी आलोचना ये है कि यह सिर्फ जरूरतमंद लोगों को नहीं बल्कि सबको दिया जाएगा. इस समस्या को प्रत्यक्ष कर की व्यवस्था से निबटाया जा सकेगा. अधिक कमाने वाले या संपत्ति वाले लोगों को ज्यादा कर भी देना होगा.

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