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समाज

इतिहास में आज: 5 अक्टूबर

४ अक्टूबर २०१३

संगीत को जेब में पहुंचाने वाला, मोबाइल को टच स्क्रीन बनाने वाला और कंप्यूटर जगत को नई ऊंचाइयां देने वाला एक नाम आज ही के दिन 2011 में दुनिया को अलविदा कह गया.

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तस्वीर: dapd

स्टीव जॉब्स को 20वीं सदी के महान आविष्कारकों में गिना जाएगा. पैंक्रियाज कैंसर से जूझते स्टीव जॉब्स ने 5 अक्टूबर 2011 को आखिरी सांस ली. इसके साथ ही दुनिया ने अद्भुत आविष्कारों से लोगों की जीवनशैली बदल देने वाली शख्सियत को खो दिया. एप्पल के सीईओ रह चुके स्टीव जॉब्स को आईपॉड, आईफोन, आईपैड और मैकिंटॉश या मैक कंप्यूटर बनाने के लिए याद किया जाता है.

46 साल की जिंदगी में स्टीव जॉब्स ने कई उतार चढ़ाव देखे. किशोरावस्था में ही उन पर कंप्यूटर बनाने की धुन सवार हो गई. पढ़ाई में मन न लगने की वजह से उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया. कॉलेज छोड़ने के बाद वो ज्ञान की तलाश में भी भटके. इस दौरान पैसे न होने की वजह से वो कोक की खाली कैन जमा करते, उन्हें बेचते और उससे खाना खरीदते. हफ्ते में एक बार हरे कृष्णा मंदिर में खाना खाते.

जीवन के अर्थ जैसे दार्शनिक सवाल को सुलझाने के लिए वो भारत में भटके. वैसे तो वह नीम करोली बाबा की तलाश में भारत गए, लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही यह बाबा गुजर गए. वहां भटकने के दौरान उन्होंने महसूस किया कि पश्चिम के लोग तर्कों से चलते हैं और भारत के गांव के सीधे सरल लोग अंदर की आवाज से चलते हैं. हालांकि भारत यात्रा के दौरान उनका सामना कुछ लोगों से हुआ जिन्होंने आध्यात्म के नाम पर जॉब्स को ठगने की कोशिश की. इससे वो ऐसे झल्लाए कि उन्होंने कह दिया कि इंसानियत की ऐसे बाबाओं से ज्यादा आइनश्टाइन जैसे वैज्ञानिकों ने मदद की है. ये बात जॉब्स जेहन में भी बैठ गई.

जवानी के दौरान ही उन्होंने अपने दोस्त स्टीव वोजनियाक के साथ उन्होंने मैकिंटॉश कंप्यूटर बनाया. कंपनी खड़ी कर दी. इसी दौरान उनकी बिल गेट्स से दोस्ती हुई जो बाद में जबरदस्त प्रतिस्पर्द्धा में बदल गई. हर चीज में चरम खूबसूरती खोजने के आदी जॉब्स को जितने लोग पसंद करते थे, उतने ही लोग उन्हें नापंसद भी करते थे. लेकिन नापसंद करने वाले भी हमेशा ये जरूर कहते रहे कि जॉब्स विलक्षण प्रतिभा थे. बिल गेट्स के साथ उनकी प्रतिस्पर्धा छुपी नहीं थी. उन्होंने कई मौकों पर गेट्स और उनकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट की आलोचना भी की. लेकिन जॉब्स के आखिरी दिनों में पुरानी दोस्ती फिर भावुक ढंग से सामने आ गई. जॉब्स के निधन के बाद अस्पताल में जब उनका तकिया हटाया गया. नीचे बिल गेट्स की लिखी एक चिट्ठी थी. खत में लिखा था, "तुमने जो काम किया और तुमने जो कंपनी तैयार की, उसे लेकर तुम्हें गर्व होना चाहिए."

जॉब्स आज भी अपनी मशीनों और अपने विचारों के साथ लोगों के जेहन में जिंदा हैं. 2005 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह के दौरान कही गई जॉब्स की एक बात आज भी छात्रों के लिए प्रेरणा का काम करती है, "बीते 33 सालों में, मैं हर सुबह शीशा देखता हूं और खुद से पूछता हूं कि 'अगर ये मेरी जिंदगी का आखिरी दिन है तो क्या, मैं जो करना चाहता हूं वो मैं आज ही कर सकता हूं?' जब कभी लगातार बहुत दिनों तक इसका जवाब 'नहीं' होता है तो मुझे पता चल जाता है कि मुझे कुछ बदलना है."

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