1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

इमरान ने कांटों का ताज पहना है

अशोक कुमार
१९ सितम्बर २०१८

जब तक इमरान खान पीएम नहीं बने थे तो लगता था कि जैसे उन्होंने पाकिस्तान को क्रिकेट में विश्व चैंपियन बनाया, कुछ वैसा ही चमत्कार सियासत में कर वह देश के हालात बदल देंगे. लेकिन अभी तो कप्तान एक एक रन के लिए जूझ रहे हैं.

https://p.dw.com/p/35BDM
Pakistan Islamabad Politiker Imran Khan
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha

जिस पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के लिए इमरान खान 22 साल से जद्दोजहद कर रहे थे, उसकी सत्ता असल में काटों के ताज से कम नहीं. बरसों से इमरान ने लोगों को अपनी तरफ खींचने के लिए 'नए पाकिस्तान' के नारे का इस्तेमाल किया. लेकिन अब चुनौती 'नए पाकिस्तान' को साकार करने की है. वह भी तब जब देश का खजाना खाली पड़ा है और कर्ज में डूबे देश को चलाने के लिए और कर्ज लिए बिना बात नहीं बनेगी.

हालत यह है पाकिस्तान से दुनिया को होने वाला निर्यात लगातार घट रहा है जबकि आयात लगातार बढ़ रहा है. इसकी वजह से पाकिस्तान का विदेश मुद्रा भंडार तेजी से सिमट रहा है. देश के विदेशी मुद्रा भंडार में मई 2017 में 16.4 अरब अमेरिकी डॉलर थे जिसमें अब घट कर सिर्फ 9 अरब डॉलर बचे हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के बढ़ते दाम भी पाकिस्तान के लिए चिंता का कारण है क्योंकि अपनी जरूरत का 80 तेल उसे बाहर से ही खरीदना पड़ता है.

पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक देश के ऊपर इस समय तीस हजार अरब रुपये का कर्ज है जिस पर लगने वाले हर दिन का ब्याज ही लगभग छह अरब रुपये है. देश की मुद्रा गंभीर दबाव का शिकार है. भारत में जहां सरकार डॉलर के मुकाबले रुपये के 72 के पार चले जाने पर चौतरफा आलोचनाओं से घिरी है, वहीं पाकिस्तान में अमेरिकी डॉलर 123 रुपये के बराबर है.

पाकिस्तानी रुपये के मूल्य में आ रही गिरावट के कारण महंगाई आसमान छू रही है. अमीर और गरीब के बीच अंतर लगातार बढ़ रहा है. युवाओं के पास रोजगार के मौके नहीं हैं. ऐसे में, नई सरकार से राहत की आस लगाने वाली जनता को मायूसी के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा.

पाकिस्तान के सामने मदद के लिए फिर से आईएमएफ का दरवाजा खटखटाने का विकल्प है. लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान इमरान खान ने ईमानदारी और खुद्दारी का इतना जिक्र किया है कि आईएमएफ से 12 अरब डॉलर कर्जा लेना उनकी राजनीतिक छवि के साथ फिलहाल फिट नहीं बैठता. ऊपर से अमेरिका ने सख्त चेतावनी दे डाली है कि इस पैसे का इस्तेमाल चीन का कर्ज चुकाने के लिए नहीं किया जा सकता.

जाहिर है नई सरकार इन हालात के लिए पुरानी सरकार को जिम्मेदार बताएगी. लेकिन हालात बदलने की जिम्मेदारी हमेशा उस पर आती है जो सत्ता में है. इंस्टेंट नूडल के इस जमाने में इंतजार कोई नहीं करना चाहता. सबको बदलाव तुरत फुरत ही चाहिए. इमरान खान को इस बात का अहसास है कि उनसे कितनी उम्मीदें हैं. इसलिए उन्होंने कुछ लोकलुभावन कदम भी उठाए हैं.

मसलन उन्होंने आधिकारिक प्रधानमंत्री आवास में नहीं रहने का फैसला किया है ताकि उस पर होने वाले भारी भरकम खर्च में कटौती की जा सके. उन्होंने प्रधानमंत्री के काफिले में शामिल महंगी गाड़ियों को नीलाम किया है. बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की घी और दूध की जरूरतों को पूरा करने के लिए पीएम हाउस में रखी गई आठ भैसों को भी बेचा जा रहा है. लेकिन सवाल यह है कि क्या इन पॉपुलिस्ट कदमों से आईसीयू में पड़ी देश की अर्थव्यवस्था को कोई राहत दी सकती है?

ज्यादा दिन की बात नहीं जब अकसर कहा जाता था कि चीन-पाकिस्तान कोरिडोर प्रोजेक्ट देश की तकदीर बदल देगा. चीन पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है ताकि वह सड़क और समुद्र मार्ग के जरिए सीधे मध्य पूर्व तक पहुंच सके. मध्य पूर्व के बाजारों में चीनी सामान की पहुंच को आसान बनाने वाली यह परियोजना चीन के लिए बहुत अहम है. पाकिस्तान को भी इससे फायदा होने की बात कही जा रही थी. लेकिन अब इस पर भी सवाल उठने लगे हैं. अरबों डॉलर के चीनी निवेश का मतलब दरअसल यह है कि कर्ज में डूबे देश पर और कर्ज चढ़ रहा था.

नई सरकार में वाणिज्य मंत्री अब्दुल रजाक दाउद का ख्याल है कि जब तक पाकिस्तान-चीन कोरिडोर परियोजना की पूरी तरह समीक्षा ना हो जाए, इसे रोक दिया जाए. दाउद का कहना है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में रहे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार ने बहुत सारी परियोजनाओं में चीन को 'कुछ ज्यादा ही रियायत' दे दी थी. सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इस स्थिति में है कि वह चीन को भी नाराज कर ले. अमेरिका से तो उसका पहले ही छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है.

अपने बयान पर विवाद होता देख वाणिज्य मंत्री ने बाद में सफाई दी कि उनके बयान को संदर्भ से हटाकर पेश किया गया है. लेकिन सत्ता संभालते ही इमरान खान ने भी संकेत दिया था कि वे चीन को कोरिडोर परियोजना पर 'फ्री हैंड' नहीं देंगे. वैसे विदेश नीति के मोर्च पर पाकिस्तान किधर जाएगा, इसमें सरकार से ज्यादा भूमिका अकसर पाकिस्तान की ताकतवर सेना की होती है. इमरान खान की असल चुनौती तो देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की है.

पाकिस्तान में लंबे समय से सियासत में दो परिवारों का कब्जा रहा है. लेकिन इस बार देश की सत्ता ना भुट्टो परिवार के हाथ में है और ना ही शरीफ परिवार के हाथ में. दोनों परिवारों और उनकी पार्टियों को आजमा चुकी जनता ने इमरान खान को देश की बागडोर सौंपी है. इसलिए अगर इमरान भी हालात को बदलने में नाकाम रहे तो लोकतंत्र में जनता का भरोसा कमजोर होगा. ऐसे में, सेना की तरफ देखने के अलावा लोगों के पास क्या विकल्प होगा? इमरान खान के कंधों पर देश को संकट से निकालने के साथ साथ लोकतंत्र में लोगों का भरोसा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी है.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी