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इस देश में महिला उखाड़ती हैं तानाशाही सत्ताएं

१९ अप्रैल २०१९

अला सालाह अफ्रीकी देश सू़डान में विरोध प्रदर्शनों का प्रतीक बन गई, जहां पिछले दिनों दशकों से जमी एक सत्ता उखड़ गई. क्या महिलाएं अफ्रीका में 'अरब वसंत' की तर्ज पर बदलाव की ध्वज वाहक होंगी.

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Sudan - Alaa Salah - Die Sudanesin führt Proteste gegen Präsident Omar al-Bashir an
तस्वीर: Getty Images/AFP

सूडान में प्रदर्शनों का सिलसिला पिछले साल दिसंबर में शुरू हुआ. राष्ट्रपति ओमर अल बशीर के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए. अप्रैल में उनके सत्ता से हटने के बाद अब सारा ध्यान सूडान में एक असैन्य सरकार के गठन पर है.

सूडान के प्रदर्शनकारियों में दो तिहाई महिलाएं थीं. सूडानी प्रोफेशनल एसोसिएशन की सारा अब्देलजलील का कहना है कि महिलाओं की भागीदारी के बिना ऐसी क्रांति नहीं होती जो आज हमारे सामने है. वह कहती हैं, "महिलाओं ने जानें दीं. वे प्रदर्शनों के केंद्र में थीं. उन्हें हिरासत में लिया गया, गिरफ्तार किया गया और अब तक मिली कामयाबी में उनका बहुत योगदान है. लेकिन उन्होंने पीड़ा भी बहुत झेली है और मुझे हमेशा इस बात पर गर्व होता है कि हमें जो दमन झेलना पड़ा है उसके बावजूद हमारा प्रतिरोध कहीं ज्यादा बड़ा है."

पूर्वी अफ्रीका में होने वाले प्रदर्शनों पर नजर रखने वाली सोमाली राजनेता फादुमो दायिब कहती हैं कि महिलाओं ने प्रदर्शन को एक खास चरित्र दिया है. उनका कहना है, "उन्होंने इसे चिंगारी दी. महिलाएं इसे सड़कों तक ले गईं. उन्होंने कहा कि अब बस बहुत हो चुका. इसलिए वही इसमें प्रेरक थीं. लेकिन वे इसे बनाए रखने में भी कामयाब रहीं और वह भी शांतिपूर्ण तरीके से."

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सूडान में पिछले 30 साल के दौरान सूडानी महिलाओं के अधिकारों का बहुत अतिक्रमण हुआ है और इसकी बड़ी वजह रही इस्लाम की कट्टरपंथी व्याख्या. इससे महिलाओं में राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में बराबरी का हक मांगने और महिला खतना और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ उठ खड़े होने की इच्छा ने जन्म लिया.

अब्देलजलील कहती हैं कि सूडान में महिला प्रदर्शनों की एक परंपरा रही है. 1964 और 1985 में हुए प्रदर्शनों में भी महिलाएं पहली कतार में थीं. उस समय भी सत्ता में बैठे तानाशाहों को अपनी गद्दियां गंवानी पड़ी थीं.

अरब दुनिया में 2011 के दौरान हुई क्रांति में कई तानाशाहों को सत्ता छोड़नी पड़ी थीं. अब सूडान में जो कुछ हुआ, क्या वह दूसरे देशों के लिए मिसाल बनेगा. अब्देलजलील कहती हैं, "मैं इसके लिए 'अफ्रीका वसंत' शब्द इस्तेमाल करूंगी क्योंकि सूडान में विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत से ही मैं कह रही थी कि हम, एक अफ्रीकी देश के तौर पर मिसाल कायम कर रहे हैं कि शांतिपूर्ण प्रतिरोध और एकता से सफलता पाई जा सकती है."

Harvard University Fadumo Dayib
तस्वीर: Harvard University/Stephanie Mitchell

सूडान के बहुत से प्रदर्शनकारियों को पता है कि अरब दुनिया में क्रांति के बाद कई देशों में जिस तरह के हालात पैदा हुए, वे उनके देश में भी हो सकते हैं. जिन देशों में लोगों ने तानाशाहों को सत्ता से हटने के लिए मजबूर किया, वहां उसके बाद कोई बड़े सामाजिक और राजनीतिक बदलाव नहीं आए. दमन, गृह युद्ध और जिहाद आज मध्य पूर्व में बहुत से देशों की हकीकत बन गए हैं. मिसाल के तौर पर सीरिया, लीबिया, यमन और इराक में विपक्षी प्रदर्शनों और सरकारी दमन ने गृह युद्ध का रूप ले लिया और वहां तथाकथित इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी गुट पैदा हुए. ट्यूनीशिया, जहां से 2011 में अरब क्रांति शुरू हुई, वहां व्यवस्था में सुधार की शुरुआती उम्मीदों ने बाद में दम तोड़ दिया.

सूडान में तीन दशक तक सत्ता में रहे ओमर अल बशीर के हटने के बाद प्रदर्शनकारी अपने देश में हो रहे घटनाक्रम को नजदीकी से देख रहे हैं. सेना ने राष्ट्रपति को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन अब तक वहां कोई असैन्य सरकार नहीं बनी है. सत्ताधारी सैन्य परिषद ने लोगों को सत्ता सौंपने का वादा किया है. अब वहां नए प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया है जिनका मकसद सेना पर सत्ता असैन्य सरकार को सौंपने की प्रक्रिया तेज करने का दबाव बनाना है.

रिपोर्ट: आने होएन/एके

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