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इस स्कूल में प्लास्टिक देकर पढ़ते हैं बच्चे

५ जून २०१९

पूर्वोत्तर भारत के एक स्कूल ने प्लास्टिक के कचरे के बदले छात्रों की फीस माफ करने की शुरूआत की है. छात्र प्लास्टिक कचरा लाकर स्कूल में मुफ्त में पढ़ सकते हैं.

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Indien Schule kämpft gegen Plastikmüll
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Boro

असम राज्य के दिसपुर में अक्षर फोरम स्कूल के 110 छात्रों को हर हफ्ते प्लास्टिक की 20 चीजें अपने घर और आसपास के इलाके से लेकर आनी होती है. परमिता सरमा ने न्यूयॉर्क में रहने वाले अपने पति मजीन मुख्तार के साथ यह प्रोजेक्ट शुरू किया है. परमिता बताती हैं, "पूरे असम में भारी पैमाने पर प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है."

पिछले साल तक इस स्कूल में पढ़ाई बिल्कुल मुफ्त थी लेकिन अब स्कूल ने प्लास्टिक "फी" वसूलने की योजना बनाई है. मुख्तार ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि स्कूल प्रशासन ने बच्चों के अभिभावकों से प्लास्टिक की रिसाइकिल योजना में शामिल होने की बार बार गुहार लगाई लेकिन उन लोगों ने ध्यान नहीं दिया. मुख्तार बताते हैं, "हमने (अभिभावकों से) कहा कि अगर आप अपने बच्चे को यहां मुफ्त में पढ़ाना चाहते हैं तो स्कूल को फीस के रूप में प्लास्टिक देनी होगी." इसके साथ ही अभिभावकों को यह भी "शपथ" लेनी होती है कि वो कभी प्लास्टिक नहीं जलाएंगे.

Indien Schule kämpft gegen Plastikmüll
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Boro

अब हो यह रहा है कि बच्चे घर घर जा कर प्लास्टिक मांगते हैं और इससे इलाके के लोगों में जागरूकता फैल रही है. गैर सरकारी संगठन एनवायरॉन के मुताबिक 10 लाख की आबादी वाले दिसपुर में ही हर दिन 37 टन कचरा पैदा होता है. पिछले 14 वर्षों में कचरे की मात्रा सात गुनी बढ़ गई है.

एक छात्र की मां मीनू बोरा ने बताया, "पहले हम प्लास्टिक जला देते थे, हमें यह पता नहीं था कि इससे निकलने वाली गैस हमारी सेहत और पर्यावरण के लिए कितनी हानिकारक है. हम उसे पास पड़ोस में फेंक देते थे लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा. स्कूल ने यह अच्छा कदम उठाया है."

Indien Schule kämpft gegen Plastikmüll
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Boro

जमा हुए प्लास्टिक का स्कूल प्रशासन बढ़िया इस्तेमाल करता है. छात्र प्लास्टिक की थैलियों को प्लास्टिक की बोतलों में भर कर "इको ब्रिक" बनाते हैं जिसे स्कूल के लिए नया भवन, शौचालय या फिर सड़क बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.

छात्रों को इस काम के लिए पैसे भी मिलते हैं. वास्तव में इस स्कूल को शुरू करने का यही मकसद भी है. यहां के पत्थर की खदानों में बहुत सारे बच्चे काम करते हैं, स्कूल उन्हें वहां से निकाल कर दूसरे बच्चों की तरह पढ़ाना लिखाना चाहता है.

मुख्तार ने बताया, "हमारे स्कूल के छात्रों के ज्यादातर मां बाप उन्हें स्कूल में पढ़ाने का खर्च नहीं उठा सकते. यह बहुत मुश्किल था लेकिन हमने उन्हें किसी तरह बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया."

एनआर/एमजे (एएफपी)

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