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समाज

इस्लाम का नारी चेहरा दिखातीं औरतों की मस्जिदें

५ सितम्बर २०१८

तहखानों में सीमित, इमामों के हुक्म से खामोश और मुख्य दरवाजे से दूर मुस्लिम औरतों ने मर्दों का जुल्म बहुत सह लिया. अब वो अपनी मस्जिदें खुद तामीर कर रही हैं. कोपेनहेगन से लॉस एंजेलेस तक ऐसी मस्जिदें आकार लेने लगी हैं.

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Griechenland Thrakische Muslime in Komotini
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Nureldine

औरतें अपने लिए इबादत की बिल्कुल वैसी ही जगह चाहती हैं जैसी कि मर्दों को सदियों से मिलती आई है. यूरोप की पहली महिला मस्जिद की संस्थापक शेरीन खानकान कहती हैं, "सदियों से जो पितृसत्तात्मक रिवायत चली आ रही है उसे बदलना मुमकिन है." दुकानों वाली व्यस्त गली में पहली मंजिल पर बनी उनकी मस्जिद एक कपड़े की दुकान के ठीक बगल में है और यह नीचे गली से दिखाई नहीं देती. हालांकि इस गुमनाम भूरे दरवाजे के पीछे से एक क्रांति चुपके चुपके आकार ले रही है. पिछले दो सालों से महिलाएं नमाज का नेतृत्व कर रही हैं, उपदेश दे रही हैं और कोपेनहेगन की मरियम मस्जिद को चला रही हैं.

खानकान कहती हैं कि वो कुरान को चुनौती नहीं दे रही हैं बस मर्दों के वर्चस्व वाले इबादत के तौर तरीकों को बदल रही हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में खानकान ने कहा, "हम नई लैंगिक समानता पर आधारित रिवायतों को बढ़ावा दे कर उनका प्रचार करके ऐसा कर सकते हैं. यह सुधार नहीं है, हम इस्लाम की मूल धारणा की ओर जा रहे हैं."

Kopftuch Symbolbild
तस्वीर: Imago/J. Jeske

मरियम मस्जिद में मर्द और औरतें सप्ताह के बाकी दिनों में मिल सकते हैं या फिर साथ में नमाज भी पढ़ सकते हैं लेकिन मासिक और शुक्रवार की सामूहिक नमाज में केवल महिलाओँ को ही यहां आने की अनुमति है. छोटे से नमाज पढ़ने के कमरे में कुछ मोमबत्तियां हैं, दरी और गद्दे हैं, इस मस्जिद से करीब 150 नमाजी जुड़े हैं. खानकान ने इसे डेनमार्क की महिला मुस्लिम धार्मिक नेताओँ के एक समूह की मदद से शुरू किया.

मुस्लिम महिलाओँ के समूह और रिसर्चरों का कहना है कि महिला इस्लामिक नेताओँ की कमी है और साथ ही औरतों के लिए इबादत की जगहें भी नहीं हैं. ज्यादातर मस्जिदें लैंगिक आधार पर बंटी हुई हैं और उनमें पुरुषों की ही चलती है.

15 साल के इंतजार के बाद मरियम मस्जिद अब उन मुट्ठी भर मस्जिदों में शामिल हो गई है जिन्हें सिर्फ महिलाएं चला रही हैं. इनमें दो लॉस एंजेलेस में हैं, एक जर्मन शहर बर्लिन में, इसके अलावा एक और मस्जिद इंग्लैंड के ब्रैडफोर्ड में भी बनाने की तैयारी है जो ब्रिटेन की पहली महिला मस्जिद होगी. इसे 2020 तक बना लेने की योजना है. बर्लिन की मस्जिद में महिला और पुरुष दोनों जा सकते हैं. चीन में केवल महिलाओँ के लिए बनाई गईं मस्जिदें सैकड़ों सालों से हैं. यहां नमाज का नेतृत्व महिलाएं ही करती आई हैं.

Weibliche Imam -  Sherin Khankan gründerin der ersten Frauengeleiteten Moschee
शेरिन खानकानतस्वीर: picture-alliance/dpa/LehtikuvaV. Moilanen

हालांकि दुनिया के ज्यादातर देशों में मस्जिदों में महिलाओं की अनदेखी की गई है. अकसर उन्हें मस्जिद के तहखाने में नमाज पढ़ने की अनुमति मिलती है जहां वे पिछले दरवाजे से दाखिल होती हैं. ब्रिटेन की मुस्लिम वीमेन्स काउंसिल की निदेशक बाना गोरा ब्रैडफर्ड की महिला मस्जिद बनाने के प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रही हैं. उनका कहना है, "आखिर महिलाएं समाज में मौजूद मुद्दों पर बात करने के लिए कहां जमा होंगी. आपको जरूरत होती है एक खास जगह की जहां महिलाओँ जमा हो सकें औऱ लोगों से बात कर सकें जो उनकी मदद कर सकते हैं, और सच तो यही है कि दुनिया में कही भी ऐसी जगह नहीं है."

खानकान का कहना है कि मस्जिद में दूसरी महिलाओँ और महिला धार्मिक नेताओँ तक पहुंचने का मतलब है कि औरतें संवेदनशील मुद्दों पर मदद लेने में सहज महसूस कर सकती हैं, अब यह चाहे अंतरधार्मिक विवाह का मसला हो या फिर घरेलू हिंसा का.

कई पारंपरिक इस्लामी विद्वानों के मुताबिक कुरान में इस बात का जिक्र नहीं है कि नमाज का नेतृत्व महिलाएं कर सकती हैं या नहीं. कुछ लोगों की दलील है कि पैगंबर मोहम्मद ने महिलाओँ को हर तरह की नमाज का नेतृत्व करने की इजाजत दी है जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि वो महिलाओँ के नमाज के नेतृत्व के खिलाफ थे. अब भी बहुत से पारंपरिक लोग मानते हैं कि नमाज के दौरान पुरुषों को महिलाओँ की आवाज नहीं सुननी चाहिए.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)