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ईयू ने दुर्लभ धातुओं पर चीन को फंसाया

१४ मार्च २०१२

दुर्लभ धातुओं के मुद्दे पर यूरोपीय संघ और अमेरिका का चीन के साथ विवाद गहरा रहा है. यूरोपीय संघ और अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन में चीन के फैसले के खिलाफ अपील की है, चीन ने जवाबी कार्रवाई की धमकी दी है.

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मंगोलिया में दुर्लभ धातुओं की खदानतस्वीर: picture alliance / dpa

एक बात तय लगती है, ये विशेष कच्चे माल फिर कभी उतने सस्ते नहीं मिलेंगे जितने पहले मिलते थे. यूरोपीय संघ, अमेरिका और जापान के मुकदमे ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत के साथ तनाव बढ़ा दिया है. चीन ने खुलेआम चेतावनी दी है कि इससे व्यापारिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन पर वैश्विक व्यापारिक नियमों को तोड़ने का आरोप लगाया है.

विवाद हाइटेक उद्योग के लिए जरूरी दुर्लभ धातुओं पर है. इनकी जरूरत स्मार्ट फोन, टैबलेट कम्प्यूटर और फ्लैट टेलीविजन बनाने में होती है इनके बिना न तो पवन चक्की बन सकती है और न ही इलेक्ट्रिक कारों के लिए बैटरी. लांथम, नियोडिम, डिसप्रोसियम या यिट्रियम जैसे नामों वाले ये धातु आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. ये भविष्य में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए जरूरी हैं, लेकिन इनका बड़ा हिस्सा चीन से आता है.

हालांकि चीन में इन दुर्लभ धातुओं का सिर्फ 3 फीसदी भंडार है लेकिन दुनिया की मांग का 97 फीसदी चीन से आता है. चूंकि चीन से ये धातु सस्ते में मिल जाता था, अधिकांश देशों ने इसका उत्पादन रोक दिया क्योंकि एक तो उत्पादन की प्रक्रिया मुश्किल थी, दूसरे वह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली थी. लेकिन सालों तक अंधाधुंध खनन के बाद चीन ने 2010 में इस पर रोक लगाने और पर्यावरण के नुकसान को कम करने का फैसला लिया.

जियांग्शू प्रांत के अर्थशास्त्री लिआओ जिनचियू कहते हैं, "अब सस्ते दुर्लभ धातुओं का युग समाप्त करने का समय आ गया है." उनका कहना है कि पर्यावरण को हो रहे नुकसान की वजह से इन धातुओं के खनन को कम करना जरूरी हो गया है. वे मानते हैं कि उत्पादन कम होने से निश्चित तौर पर कीमत में भी उतार चढ़ाव होगा.

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तस्वीर: picture alliance / dpa

चीनी नीति के आलोचकों का कहना है कि वह इस कदम के जरिए विश्व बाजार में कीमतों को चढ़ाना चाहता है और अपने उद्यमों को फायदा पहुंचाना चाहता है. कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि चीन इस कदम के जरिए विदेशी कंपनियों को चीन में कारखाना बनाने को मजबूर कर रहा है ताकि वे दुर्लभ धातु आसानी से पा सकें.

चीन के उद्योग मंत्री निआओ वाई इन आरोपों से इंकार कर रहे हैं. उनका कहना है कि विश्व बाजार में दुर्लभ धातुओं की कमी ही नहीं है. उन्होंने कहा कि पिछले साल पिछले साल निर्यात के 30 हजार टन कोटे में से सिर्फ आधे की बिक्री हुई, क्योंकि ऊंची कीमतों के कारण उसके इस्तेमाल में कमी आई है. उद्योग मंत्री का कहना है कि चीन पर निर्यात रोकने का आरोप लगाना आधारहीन है. "सच्चाई यह है कि विदेशी कंपनियों ने अपनी जरूरत घटा ली है." उन्होंने कहा कि चीन अपना पुरजोर बचाव करेगा.

लेकिन चीन के लिए अवसर अच्छे नहीं हैं. विश्व व्यापार संगठन ने इसी जनवरी में दूसरे खनिज पदार्थों के मामले में चीन के खिलाफ फैसला सुनाया है. इस फैसले को दुर्लभ धातुओं के मामले में भी आधार बनाया जा सकता है. चीन ने अपना कदम पुराने गैट के आधार पर उठाया है जिसमें पर्यावरण और सीमित खनिज की सुरक्षा के लिए निर्यात पर रोक की इजाजत थी. लेकिन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने पर चीन ने निर्यात पर सभी रोक हटाने की सहमति दे दी थी. उसके साथ ही गैट के नियम प्रभावी नहीं रह गए हैं. यही बात विश्व व्यापार संगठन ने जनवरी में अपने फैसले में सुनाई थी.

रिपोर्टः डीपीए/महेश झा

संपादनः एन रंजन

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