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एचआईवी के मामले में अव्वल बना पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम

प्रभाकर मणि तिवारी
१५ अक्टूबर २०१९

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम रोजाना एचआईवी के नौ नए मामलों के साथ एड्स के मरीजों की तादाद के मामले में देश में पहले नंबर पर पहुंच गया है. राज्य सरकार ने इस जानलेवा बीमारी पर अंकुश लगाने की दिशा में पहल की है.

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तस्वीर: Reuters/R. de Chowdhuri

कभी उच्च साक्षरता के लिए सुर्खियां बटोरने वाला मिजोरम अब एचआईवी के बढ़ते मामलों के कारण खबरों में है. मिजोरम में एचआईवी की चपेट में आने वाले मरीजों की संख्या आबादी की 2.04 फीसदी तक पहुंच गई है. इस मामले में पड़ोसी मणिपुर (1.43 फीसदी) और नागालैंड (1.15 फीसदी) उससे पीछे हैं. बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा से सटे इस राज्य में एचआईवी का पता लगाने के लिए इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर बनाए गए हैं जो महीने में 25 दिन खुले रहते हैं. इन केंद्रों पर रोजाना एचआईवी/एड्स के नौ नए मामले पहुंच रहे हैं. मिजोरम स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी की प्रोजेक्ट डायरेक्टर डा. लालथेंगलियानी बताती हैं, "पूरे राज्य में 44 ऐसे केंद्र हैं जहां इस बीमारी की जांच और पुष्टि की जा सकती है. राज्य में एचआईवी का पहला मामला 1990 में सामने आया था.” डा. लालथेंगलियानी बताती हैं कि अब तक ऐसे 19,631 मामले सामने आए हैं. उनके मुताबिक, इस बीमारी की चपेट में आकर राज्य में अब तक दो हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

एचआईवी फैलने की वजह

आखिर इस बीमारी के राज्य में फैलने की वजह क्या है? राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, मिजोरम में असुरक्षित यौन संबंध इसकी सबसे बड़ी वजह हैं. लगभग 66.08 फीसदी मामले इसी वजह से बढ़ रहे हैं. उसके बाद नशे के लिए सूइयों का इस्तेमाल 28.16 फीसदी मामलों के लिए जिम्मेदार है. 2.96 फीसदी मामलों में यह बीमारी माता-पिता से बच्चों को मिलती है जबकि एक फीसदी से कुछ ज्यादा मामलों में यह बीमारी होमोसेक्सुअल संबंधों की वजह से होते हैं.

डा. लालथेंगलियानी बताती हैं, "युवा वर्ग में बढ़ती यबह बीमारी गहरी चिंता का विषय बन गई है. एचआईवी की चपेट में आए 42.38 मरीज 25 से 34 आयु वर्ग के हैं. इसके बाद 26.46 फीसदी लोग 35 से 49 आयु वर्ग के है. करीब 23.03 फीसदी एचआईवी पीड़ितों की उम्र 15 से 24 साल के बीच है." 

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तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri

जागरुकता अभियान

राज्य सरकार ने इस बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए इसी सप्ताह एक राज्यव्यापी अभियान शुरू किया है. मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने इसका औपचारिक उद्घाटन किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा, "राज्य की मौजूदा स्थिति बेहद गंभीर है. हमें इस बीमारी के प्रति जागरुकता पैदा करने, इसके इलाज व रोकथाम की दिशा में मिल कर काम करना चाहिए.” उनका कहना है कि मिजोरम को एचआईवी मरीजों की बढ़ती तादाद के मामले में देश में अव्वल होने के रिकार्ड की कोई जरूरत नहीं है.

वर्ष 2011-12 में राज्य में एचआईवी फैलने की दर 4.8 फीसदी थी जो अगले साल घट कर 3.8 फीसदी तक पहुंच गई. लेकिन उसके बाद इसमें लगातार वृद्धि दर्ज की गई है. वर्ष 2017-18 के दौरान यह दर तेजी से बढ़ते हुए 7.5 फीसदी तक पहुंच गई और इस साल मार्च में इसने 9.2 फीसदी के आंकड़े के साथ नया रिकार्ड बना दिया.

देश में मिजोरम अकेला ऐसा राज्य है जहां एचआईवी के मरीजों की तादाद इतनी तेजी से बढ़ रही है. डा. लालथेंगलियानी नेशनल एड्स कंट्रोल सोसायटी (नाको) की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के हवाले से बताती हैं, "मिजोरम की कुल आबादी में इस बीमारी के मरीजों की तादाद 2.04 फीसदी है जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 0.2 फीसदी है. इससे स्थिति की गंभीरता का पता चलता है.”

 कुछ महीने पहले राजधानी आइजल के दौरे पर आए भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ आई जस्टर ने भी इस मामले पर चिंता जताते हुए कहा था कि राज्य में एचआईवी/एड्स से मुकाबले के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास जरूरी हैं.

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी एचआईवी के मरीजों की लगातार बढ़ती तादाद पर गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि इस पर अंकुश लगाने के लिए बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान जरूरी है. एक सामाजिक संगठन के संयोजक टी. लालसांगा कहते हैं, "मिजोरम के युवा पश्चिमी संस्कृति से काफी प्रभावित हैं.  शराब पर पाबंदी होने की वजह से यह लोग पड़ोसी देशों से तस्करी के जरिए आने वाली नशीली दवाओं का सेवन करते हैं. उसके बाद नशे में असुरक्षित यौन संबंध बनाते हैं.” वह कहते हैं कि असुरक्षित यौन संबंधों पर अंकुश लगा कर इस बीमारी पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. ऐसे यौन संबंध ही इस बीमारी के पांव पसारने की सबसे प्रमुख वजह हैं.

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