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शिक्षा

आसान नहीं भारत में गांव गांव तक ऑनलाइन शिक्षा

स्तुति मिश्रा
१४ अगस्त २०२०

कोरोना महामारी के बाद हुए लॉकडाउन ने स्कूलों और कॉलेजों को भी ठप्प कर दिया. बच्चों की शिक्षा का एकमात्र रास्ता ऑनलाइन क्लास हो गए. लेकिन भारत के देहाती इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई कितनी संभव है?

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Indien | Coronavirus | Schulstart
तस्वीर: Reuters/P. Waydande

लॉकडाउन के ऐलान के साथ ही जैसे देश में सारे काम अचानक रुक गए, वैसे ही देश के लगभग 32 करोड़ छात्र-छात्राओं के स्कूल-कॉलेज जाने पर भी रोक लग गई. सरकार ने ऐलान किया था कि स्कूल-कॉलेज उनके लिए ऑनलाइन शिक्षा का इंतजाम करें. लॉकडाउन की शुरुआत में बड़े शहरों के स्कूलों को ही ऑनलाइन शिक्षा शुरू करने में ही खासा वक्त लग गया, ये वो स्कूल थे, जिनके पास फंड की कमी नहीं थी. फिर भी बोर्ड एग्जाम समेत कई इंतहान रद्द हो गए. फिर सोचिए कि देश के गांवों का क्या हाल होगा? क्या गांव तक ऑनलाइन शिक्षा बिना किसी रुकावट के पहुंच सकती है?

आज कोरोना लॉकडाउन में लगी बंदिशें तो खुल गई हैं लेकिन 20 लाख से ज्यादा कोरोना के मामलों के बीच जीवन अभी भी रुका हुआ है, स्कूलों के खुलने पर रोक है. चार महीने बाद भी स्थिति वैसी ही है और समस्याएं अनेक. सरकार ने सरकारी स्कूलों को ऑनलाइन लाने के लिए कई तरह की मदद पहुंचाने के वादे किए, लेकिन कई बुनियादी समस्याएं अभी भी वहीं की वहीं हैं.

गांव में इंटरनेट से लेकर चार्जिंग तक चैंलेंज

सरकार ने जब ऑनलाइन पढ़ाई के बारे में सोचा होगा तो अधिकारियों के दिमाग में जूम और स्काइप जैसे वीडियो कॉलिंग एप रहे होंगे. जहां बड़े शहरों में ये मुमकिन भी हो गया है, लेकिन गांवों में अभी तक कनेक्टिविटी की जो हालत है उसमें कॉल ही अपने आप में एक मुसीबत है. ऊपर से कई बच्चों के घरों में स्मार्टफोन नहीं. कुछ राज्य सरकारों की तरफ से ये भी दावा किया गया था कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को फोन बांटे जाएंगे, जो पंजाब सरकार करने की तैयारी में हैं, पर अब तक ये इंतजाम हो नहीं पाए. ऐसे में सिर पर इस मुसीबत के बीच टीचर बच्चों को पढ़ाने के नायाब तरीके निकाल रहे हैं. कई टीचर अपना वीडियो रिकॉर्ड कर व्हाट्सऐप पर भेजते हैं, तो कुछ फोन पर ही बच्चों को पढ़ाने की कोशिश में हैं. लेकिन इसमें भी मुश्किलें कम नहीं.

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अरुणाचल में दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने की कोशिशतस्वीर: DC. Chamlang

झारखंड के तोर्पा जिले में एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली सुमन गुप्ता का कहना है कि पूरे स्कूल में पढ़ने वाले 115 बच्चों में से अब तक कुल 20-25 बच्चे ही ऑनलाइन क्लास का हिस्सा बन पा रहे हैं. क्योंकि ज्यादातर के पास या तो फोन नहीं, या इंटरनेट की कनेक्टिविटी इतनी खराब है कि बच्चों का ऑनलाइन आ पाना ही मुश्किल है. सुमन कहती हैं, "कभी हम ऑनलाइन आ पाते हैं तो एक या दो बच्चे ही होते हैं, सिर्फ कुछ बच्चों को पढ़ाने का क्या फायदा जब बाकी बच्चों को अलग से पढ़ाना ही पड़ेगा." स्कूल के मुताबिक मार्च के महीने से ही उन्हें ये समस्या झेलनी पड़ रही है क्योंकि वहां सभी बच्चों का एक साथ क्लास के लिए उपस्थित हो पाना भी काफी मुश्किल है.

सुमन गुप्ता के मुताबिक एक और बड़ी समस्या ये है कि फोन होने पर भी बहुत से माता-पिता बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई को अहमियत नहीं दे रहे. स्कूल ना जाने की स्थिति में कई बच्चे घरेलू काम या खेती में हांथ बंटाने में लग गए हैं. सुमन गुप्ता कहती हैं, "यहां पहले मां-बाप को बच्चों की पढ़ाई के लिए मनाना मुश्किल है, फिर जब पढ़ाई घर से ही होनी हो तो मुसीबत और बढ़ जाती है." ग्रामीण इलाकों में सरकारी दावों के बावजूद अभी भी हर एक बच्चे के पास स्मार्टफोन नहीं पहुंचे हैं. वे कहती हैं, "यहां ज्यादातर लोग फीचर फोन इस्तेमाल करते हैं, और जिन गिने चुने घरों में स्मार्टफोन हैं भी, तो वहां या तो पिता के साथ फोन सारा दिन घर के बाहर रहता है, या फिर बड़े भाई के हाथ में. बच्चों की क्लास के टाइम के हिसाब से फोन मिल ही नहीं पाता." बच्चों को फोन के ना होने पर भी ऑनलाइन लाने के लिए स्कूल की तरफ से कई कोशिशें की गईं, उन्होंने एक फोन के जरिए आस-पास के कई बच्चों को एक साथ लाने या पड़ोसी तक से कुछ देर पढ़ाई के लिए फोन देने की अपील भी की, लेकिन उसका भी कोई फायदा नहीं.

इंटरनेट कनेक्टिविटी की मुश्किलें

सिर्फ झारखंड ही नहीं, उत्तर प्रदेश में भी गांवों में चल रही ऑनलाइन पढ़ाई का भी ऐसा ही हाल है. लखीमपुर खीरी जिले के जनबहादुर गांव में एक स्कूल चलाने वाले अभिजीत कहते हैं कि उन्हें कुछ वक्त के लिए स्कूल में पढ़ाई बंद करवानी पड़ी क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाई में हिस्सा ले पा रहे बच्चों की संख्या वहां पढ़ने वाले बच्चों की संख्या की आधी से भी कम है. अभिजीत का कहना है कि ये टीचरों के लिए भी मुसीबत है कि क्लास में अगर सिर्फ दो ही बच्चे ऑनलाइन आ पा रहे हैं, तो टीचर उनको अलग से पढ़ा के क्या करे? उनके स्कूल की एक महिला टीचर को अपने बच्चे को सिर्फ इसलिए रिश्तेदार के पास भेजना पड़ा ताकि वो वहां फोन का इस्तेमाल कर ऑनलाइन पढ़ाई कर सके.

छोटे शहरों में स्कूलों की का मुख्य साधन बच्चों की फीस होती है. लेकिन कोरोना लॉकडाउन के दौरान स्कूलों को फीस भी नहीं मिल रही है. अभिजीत कहते हैं कि उनके स्कूल में कई महीनों से बच्चों के परिवारों द्वारा फीस नहीं जमा की गई है, लेकिन उसका सबसे बड़ा कारण ये है कि वहां कई लोगों के रोजगार ठप्प पड़ गए हैं. कई मजदूर जो बाहर से अपनी नौकरियां छोड़ कर आएं हैं उनके पास खाने के भी पैसे नहीं फिर ऐसे में बच्चों की फीस कैसे जमा करेंगे.

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घरों में स्कूल जैसी सुविधाएं नहींतस्वीर: Imago/Hindustan Times

अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई

तोर्पा की सुमन गुप्ता कहती हैं कि सरकारी स्कूलों से दूर हुए बच्चे पढ़ाई के अलावा भी काफी कुछ खो रहे हैं. पढ़ाई के साथ उनके स्कूल से मिलने वाला मिड-डे मील भी अब उनको खिलाने की जगह नाप के राशन की तरह भेजा जा रहा है. यहीं नहीं ऐेसे कई परिवार हैं जिन्हें खाना खरीदने या फोन खरीदने के बीच चुनना पड़ गया. कुछ वक्त पहले हिमाचल प्रदेश से एक किसान के स्मार्टफोन खरीदने के लिए अपनी गाय बेचने की एक खबर आई थी जिसने सोशल मीडिया पर कई लोगों का ध्यान खींचा था. दरअसल पैसों की कमी की वजह से किसान कुलदीप सिंह को अपनी एकमात्र गाय बेचकर कर्ज चुकाने और बच्चों की पढ़ाई के लिए फोन खरीदने का कदम उठाना पड़ा. इस खबर के बाद अभिनेता सोनू सूद ने उनकी मदद करने की घोषणा की. लेकिन कुलदीप अकेले ऐसे इंसान नहीं जिन्हें लॉकडाउन में ठप्प पड़े काम के बीच खाने और स्मार्टफोन में फोन को चुनना पड़ा हो.

हाल ही में असम से भी एक खबर थी कि एक परिवार को बच्चे को ऑनलाइन शिक्षा के लिए अपने घर की गाय बेचना पड़ी. यह इकलौती गाय ही उनके परिवार की आर्थिक आय का जरिया थी. ऐसा ही एक मामला बिहार में सामने आया, जहां प्रवासी मजदूर को काम नहीं मिला तो उसने अपनी 4 महीने की बेटी को 45 हजार रुपए में बेच दिया. ये वो मामले थे जो सामने आए, पर ऐसी जाने कितनी ही कहानियां होंगी जो लॉकडाउन के बोझ तले दबा दी गईं.

केरल से ऑनलाइन शिक्षा के सबक

देश में दूसरे राज्यों के मुकाबले केरल में स्थिति बेहतर रही है. केरल में पिछले कुछ दिनों से ऑनलाइन पढ़ाई के बीच इंटरनेट को बुनियादी अधिकार घोषित करने पर भी चर्चा चल रही है. साथ ही केरल के लगभग 45 लाख छात्रों ने एक जून से अपनी वर्चुअल क्लास शुरू कर दी है. केरल के मुवट्टुपुझा में टीचर रहे नितिन का कहना है कि उनके स्कूल के सभी बच्चे ऑनलाइन क्लास अटेंड कर पा रहे हैं. लेकिन क्लास में एक साथ बैठकर ना पढ़ पाना चिंता का विषय है. केरल ने कोरोना काल में बच्चों को पढ़ाने के लिए शानदार विकल्प तलाश लिया है. ‘फर्स्ट बेल' नाम से केरल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन ने विक्टर्स टीवी चैनल शुरू किया है, जिसके जरिए छात्रों की क्लास होगी. यह चैनल पूरे राज्य में इंटरनेट और डायरेक्ट-टू-होम केबल नेटवर्क पर मुफ्त में उपलब्ध होगा.

अगर इसी तरह के इंतजामों की बात बाकी राज्यों में की जाए तो कोई केरल जितना तैयार नहीं दिखता. इस समय देश में इंटरनेट और स्मार्टफोन की सुविधा का विस्तार और लैपटॉप या टैबलेट हर छात्र को देने की व्यवस्था पर विचार करने की जरूरत है. शिक्षकों को भी डिजिटल एजुकेशन के लिए तैयार करना होगा और उनकी ट्रेनिंग करानी होगी. डिजिटल एजुकेशन के लिए सिलेबस भी बदलना होगा और नए टीचिंग मैटेरियल तैयार करने होंगे. सरकार की नई शिक्षा नीति में भी ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर है, तो माना जाना चाहिए जल्द ही हमें शिक्षा में ये बुनियादी बदलाव देखने को मिलेंगे.

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