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कपास के शहर में गुस्से का धुआं

२९ दिसम्बर २०११

साल के इस वक्त आम तौर पर जलगांव शहर सफेद कपास से पटा होता है लेकिन इस साल इस सफेदी पर स्याह चादर पसरी है. किसान सड़कों पर टायर जला रहे हैं, जिसका काला धुआं उनके गुस्से को दिखा रहा है.

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तस्वीर: AP

किसानों ने अपना माल बेचने से इनकार कर दिया है और उनका कहना है कि सरकार उनके लागत मूल्य के बराबर भी पैसा मुहैया नहीं करा रही है. बरसों से कपास की खेती कर रहे युवराज वमन पाटिल का कहना है, "आप लागत देखिए. आप खाद के दाम बढ़ा रहे हैं. बिजली और कच्चे बीज की कीमत बढ़ा रहे हैं और कपास के दाम कुछ नहीं बढ़ा रहे."

इस गुस्साई रैली में पाटिल अकेले नहीं हैं. हाल के हफ्तों में भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र से लेकर दक्षिण आंध्र प्रदेश तक के किसान गुस्से में हैं. किसानों के हक की बात सिर्फ कागजों पर हो रही है और सच्चाई में उन्हें सड़कों पर उतरना पड़ रहा है. विपक्षी पार्टियां भले ही सियासत के लिए रिटेल सेक्टर लाने न लाने पर बहस और प्रदर्शन करें, किसानों का मुद्दा किसी को काम का नहीं लगता.

Bildgalerie Ursachen von Armut: Patente/Hunger
तस्वीर: picture alliance/dpa

बस जलगांव का एक नमूना देखिए. किसानों की मांग है कि उनकी लागत और मामूली मुनाफे को जोड़ कर उन्हें 100 किलो कपास के लिए कम से कम 6000 रुपये मिलने चाहिए और सरकार उन्हें सिर्फ 3300 रुपये का समर्थन मूल्य दे रही है. रैली में आए किसान नेता राजू शेट्टी का कहना है, "समर्थन मूल्य में चीजों की बढ़ती हुई कीमत का कोई हिसाब ही नहीं रखा गया है."

सिर से ऊपर होता पानी

भारत की लगभग सवा अरब आबादी का आधा हिस्सा अभी भी खेती बाड़ी के भरोसे गुजारा करता है. लेकिन यह हिस्सा महंगाई और विकास की अंधी दौड़ में शामिल नहीं हो पाया है और उसे ऊपर चढ़ती कीमतों का सबसे ज्यादा असर भोगना पड़ता है. उन्हें बरसों से बंधे बंधाए रेट मिल रहे हैं. अलबत्ता उनकी उपज से बिचौलियों के वारे न्यारे हो रहे हों.

Indischer Bauer
तस्वीर: UNI

जलगांव में कपास के बड़े कारोबारी रमेश पाटिल ने मुंबई के निर्यातक से कपास बेचने का वादा किया था. उन्हें उम्मीद थी की नवंबर में फसल तैयार होने के बाद दिसंबर में उन्हें किसानों से भारी माल मिल जाएगा. लेकिन जब किसानों को इस बात का पता चला, तो उन्होंने अपने दाम बढ़ा दिए. परेशान पाटिल का कहना है, "मुझे तो अपना वादा पूरा करना है. अब मुझे किसानों से महंगी कपास खरीदनी पड़ रही है. जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमत घट रही है, एक्सपोर्ट कम हो रहा है."

इस साल महाराष्ट्र के कपास बाजार में एक अक्तूबर से 25 दिसंबर के बीच 170 किलो वाली सिर्फ 14 लाख गट्ठर आए, जबकि पिछले साल इस दौरान दोगुने यानी 28 लाख गट्ठर आए थे.

गन्ना किसान भी परेशान

कपास की तरह गन्ना किसानों की भी हालत खराब है. महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के किसानों के विरोध की आवाज राजधानी दिल्ली में भी सुनाई दे रही है. लेकिन इससे निजात पाने के लिए मिल मालिकों ने सरकार से ज्यादा निर्यात की मांग कर डाली. ऐसे में देश के अंदर चीनी की कीमत फिर बढ़ सकती है, जिससे महंगाई की दर बढ़ जाएगी.

लेकिन सरकार भी किसानों के समर्थन मूल्य को बढ़ाने के लिए कदम उठाती नहीं दिख रही है. फिलहाल भारत सरकार 800 अरब से 1000 अरब के बीच खाद्य सब्सिडी दे रही है, जबकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बजट में इसके लिए सिर्फ 600 अरब की रकम रखी थी.

रिपोर्टः डीपीए/ए जमाल

संपादनः महेश झा