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कम शोहरत ने दिलाई कामयाबी

६ अगस्त २०१२

आठ साल तक चांदमारी करते रहे, राष्ट्रीय स्तर के 110 और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में 45 मेडल भी जीते लेकिन किसी को खबर नहीं हुई, ओलंपिक की चांदी गले में उतरी तो हर तरफ विजय ही विजय है.

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तस्वीर: Reuters

भारतीय निशानेबाजी की मौजूदा वक्त में सबसे तेज आंख विजय कुमार किसी अनजान मसीहा की तरह शूटिंग रेंज में उतरे और पदकों के लिए तरस रहे भारत को चांदी का तमगा पहना दिया. विजय मानते हैं कि कम शोहरत और मीडिया से दूरी ने उन्हें अपना ध्यान सिर्फ खेल पर रखने में बड़ी मदद दी और निशानेबाजी में ध्यान की कितनी अहमियत है, इससे तो सभी वाकिफ हैं.

लंदन में समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में विजय कुमार ने कहा, "मैं भी एक इंसान हूं. अगर मैं कहूं कि इससे (मीडिया कवरेज) कोई फर्क नहीं पड़ता तो यह झूठ होगा, लेकिन अब मुझे लगता है कि इसमें छिपी बात यह थी कि चर्चा में नहीं होने की वजह से मैं अपने मुकाबले पर ज्यादा ध्यान दे सका और उसका नतीजा सबके सामने है."

विजय लंबे समय से निशानेबाजी कर रहे हैं, पदक बटोर रहे हैं, लेकिन सेना के इस जवान को पूरे देश में लोगों ने ओलंपिक की जीत के बाद ही जाना है. यह दुखद है पर अब जब दुनिया उनके बारे में जानने को आतुर हो रही है तब विजय कहते हैं, "मेरा काम बात करना या मेरी उलब्धियों के बारे में बताना नहीं हैं. मैं सैनिक हूं, जन संपर्क अधिकारी नहीं."

मीडिया के रवैये ने उन्हें काफी निराश किया है. विजय को दुख हुआ जब मीडिया समेत तमाम लोगों ने उनके मेडल जीतने पर आश्चर्य जताया, "मेरे पास भारत से फोन आ रहे हैं. वो कह रहे हैं कि मैं काले घोड़े की तरह निकला हूं. वो अब मेरे बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं. कभी कभी मुझे भी थोड़ा बुरा लगता है लेकिन मैंने जीवन में इन सबसे भी बहुत कुछ सीखा है."

27  साल के विजय ने थोड़ी झल्लाहट के साथ कहा, "मैं 2004 से ही मेरे मुकाबले का राष्ट्रीय चैम्पियन हूं. मैंने 2006 के मेलबर्न कॉमवेल्थ गेम्स में दो गोल्ड मेडल नए गेम्स रिकॉर्ड के साथ जीते, दोहा एशियाड में एक गोल्ड और एक ब्रॉन्ज जीता, चीन के वर्ल्ड चैम्पियनशिप में चांदी जीती, 2010 के कॉमवेल्थ गेम्स में तीन सोना और एक चांदी जीती, गुआंगझू के एशियन गेम्स में दो कांसा जीता, इन सबके बावजूद मेरा पदक जीतना लोगों और मीडिया को आश्चर्य में डाल रहा है तो मैं कुछ नहीं कर सकता."

विजय ने कहा कि उन्हें पदक की उम्मीद नहीं थी लेकिन हर खिलाड़ी की तरह उनका दिल भी यहां जीत हासिल करना चाहता था. उन्होंने कहा, "मैंने अपनी भावनाओं के बारे में किसी से बात नहीं की. हां एक बार मै जब फाइनल में पहुंच गया तो मुझे लगा कि मैं जीत सकता हूं. मैं शांत रहा. मैं खुद भी आश्चर्य में था लेकिन मैंने खुद पर काबू रखा. मैं फाइनल में उसी तरह गया जैसे में पहले शूटिंग कर रहा था, मेरे धैर्य ने मेरी बड़ी मदद की."

भारत की तरफ से मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों में शामिल होने की खुशी उनके दिल में अब भी भावनाओं का ज्वार ला रही है और वो उसे नहीं छिपाते. अब भी किसी को जीतते देखते हैं तो भावनाओं का ज्वार फिर उफान मारता है. विजय का कहना है कि उनकी जीत अगर युवाओं को पदक जीतने के लिए प्रेरणा दे सकी तो यह उनके लिए बड़ी खुशी होगी.

एनआर/एमजी (पीटीआई)