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कहां तक पहुंची है धरती की "द ग्रेट ग्रीन वॉल”

सिलिया फ्रोएलिष
८ अप्रैल २०२०

7,775 किलोमीटर लंबी और 15 किलोमीटर चौड़ी, जंगल की एक दीवार. अफ्रीकी देश इस परियोजना के जरिए धरती के सबसे बड़े रेगिस्तान को रोकना चाहते हैं. कहां तक पहुंचा है 13 साल पहले शुरू हुआ ये प्रोजेक्ट.

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Afrikas Grüne Mauer im Sahel | Sudan
तस्वीर: Imago/Xinhua

जलवायु और मौसमी चक्र में बदलाव की वजह से पृथ्वी का सबसे बड़ा रेगिस्तान सहारा फैलता जा रहा है. जलवायु विज्ञानियों के मुताबिक सहारा मरुस्थल हरे इलाकों और बड़ी झीलों को भी निगल  रहा है.

सहारा के दक्षिणी इलाके साहेल में सात देश हैं. रेगिस्तान का विस्तार इन सातों देशों के सामने खड़ी गंभीर चुनौती है. इससे निपटने के लिए अफ्रीका के 11 देश हाथ मिला चुके हैं. योजना है कि 2030 तक रेगिस्तान को रोकने के लिए एक बफर जोन बनाया जाए. अफ्रीकी देशों के संघ अफ्रीकन यूनियन ने 2007 में इसकी शुरुआत की. इसे ग्रेट ग्रीन वॉल नाम दिया गया.

जननी विवेकानंद, बर्लिन स्थित संस्था अडेलफी में जलवायु सलाहकार हैं. अडेलफी जलवायु, पर्यावरण और विकास के मुद्दों पर नजर रखने वाला थिंकटैंक है. जननी विवेकानंद कहती हैं, "द ग्रेट ग्रीन वॉल एक प्रेरणादायी और महत्वाकांक्षी कोशिश है, जिसके जरिए 21वीं सदी की दो बड़ी चुनौतियों का तेज हल खोजने का प्रयास किया जा रहा है, ये चुनौतियां हैं, रेगिस्तान का बढ़ना और उर्वर जमीन का नष्ट होना.”

द ग्रेट ग्रीन वॉल के जरिए साहेल इलाके में 10 करोड़ हेक्टेयर उपजाऊ जमीन को वापस हासिल करने का इरादा है. इससे वायुमंडल से 25 करोड़ टन सीओटू भी कम होगी. परियोजना का लक्ष्य एक करोड़ लोगों को ग्रीन जॉब यानि पर्यावरण सम्मत रोजगार मुहैया कराना भी है. जननी विवेकानंद कहती हैं, "यह सिर्फ साहेल इलाके में वृक्षारोपण भर नहीं है, बल्कि ये जलवायु परिवर्तन, सूखे, अकाल, विवाद, विस्थापन और भू क्षरण से निपटने के लिए भी है.”

क्लामेट एक्सपर्ट एंड एनर्जी वॉच ग्रुप के प्रेसिडेंट हंस-योसेफ फैल कहते हैं, "ऐसे प्रोजेक्ट में कई लोगों को काम करना चाहिए, ये पेड़ फल और लकड़ी मुहैया कराएंगे.” पेड़ों की छांव मिट्टी में नमी को बरकरार रखने में मदद करेगी. फैल के मुताबिक, "रोजगार और आय पैदा करना, यह ऐसे अहम कदम हैं जिनके जरिए इलाके में बड़े विस्थापन से लड़ा जा सकता है.”

पारंपरिक तरीके का इस्तेमाल

इस महा प्रोजेक्ट में 20 देशों ने साहेल देशों की मदद का भरोसा दिया है. यूरोपीय आयोग अब तक प्रोजेक्ट पर सात अरब यूरो से ज्यादा का निवेश कर चुका है. लेकिन यूएन के मुताबिक एक दशक से ज्यादा समय गुजरने के बाद भी प्रोजेक्ट केवल 15 फीसदी सफर ही तय कर सका है. जलवायु सलाहकार जननी कहती हैं, "प्रक्रिया धीमी है, लेकिन इस दौरान हम काफी कुछ सीख चुके हैं.”

Afrikas Grüne Mauer im Sahel | Senegal, Baumschule in Louga
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Diallo

एक अहम सीख यह मिली है कि इस तरह की बड़ी लंबी दीवार बहुत बढ़िया आइडिया नहीं है क्योंकि जो पेड़ निर्जन इलाकों में लगाए जाएंगे, उनकी देखभाल कौन करेगा. अब स्थानीय स्तर पर मौजूद पेड़ों और जंगलों को बचाने पर ध्यान दिया जा रहा है. ऐसे हरे इलाकों के लिए पानी की सप्लाई सुनिश्चित की जा रही है.

भ्रष्टाचार और आतंकवाद की समस्या

जलवायु विशेषज्ञ फैल कहते हैं, "कुछ इलाकों में प्रोजेक्ट काफी सफल है और कुछ में कम.” इथियोपिया ने बीते 13 साल में अच्छा प्रदर्शन किया है. यूएन के मुताबिक देश ने 1.5 एकड़ उजाड़ जमीन को फिर से हरा भरा बनाया है. फैल के मुताबिक इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबिय अहमद से जंगल फिर से बसाने को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखा और अब उसका असर दिख रहा है.

नाइजीरिया में भी रेगिस्तान से लड़ाई में सफलता मिलती दिख रही है. वहां 50 लाख हेक्टेयर भूमि को हरा भरा किया गया है. इस दौरान 20 हजार नौकरियां पैदा हुईं. सेनेगल में 1.1 करोड़ पेड़ लगाए गए और 25,000 हेक्टेयर जमीन को फिर से उर्वरक बनाया गया.

लेकिन मध्य अफ्रीका के देशों में प्रोजेक्ट फंसा हुआ सा दिखता है. फैल कहते हैं, "वहां आतंकवाद बहुत ज्यादा हावी है और यह मददगार संस्थाओं और लोगों के प्रयासों को पंगु करता है. भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा है, प्रोजेक्ट के विकास की जगह पैसा नेताओं की जेब में जाता है.”

Symbolbild- Nigera - Militärübung
लंबे समय से हिंसा झेल रहा है बुर्कीना फासो.तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. de Poulpiquet

बुर्कीना फासो जैसे देश लक्ष्य से काफी पीछे हैं. लंबे समय से हिंसा झेल रहे इस देश में असुरक्षा के कारण प्रोजेक्ट अटक सा गया है. हिंसक हालात के चलते वहां इस प्रोजेक्ट में निवेश नहीं किया जा रहा है.

इसके बावजूद बुर्कीना फासो, माली और नाइजर की करीब 120 नगर पालिकाओं ने साथ मिलकर 2,500 हेक्टेयर जमीन को हरियाली उगा दी है. स्थानीय पेड़ों की 50 प्रजातियों के 20 लाख से ज्यादा बीज बोए जा चुके हैं.

जलवायु विशेषज्ञों को उम्मीद है कि 10 साल के भीतर कई इलाकों में प्रोजेक्ट की सफलता खुद लहलहाने लगेगी. इससे प्रोजेक्ट को पूरा करने का मनोबल भी मिलेगा और पूरी दुनिया को एक सीख भी मिलेगी.

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