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कांगो का गृहयुद्ध बना मानवीय आपदा

प्रिया एसेलबॉर्न३ नवम्बर २००८

डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो के संकटग्रस्त इलाकों में लड़ाई शुरू होने के एक हफ्ते बाद अब संयुक्त राष्ट्र की सहायता भी वहाँ पहुँची है.

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तस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि विद्रोहियों और सरकारी सैनिकों के बीच पिस रहे लाखों लोग पूर्वी शहर गोमा के आस-पास से विस्थापित हुए हैं. उनमें से 50 000 लोगों तक तुरांत सहायता पहुँचाने की ज़रूरत है. यदी ऐसा नहीं हो पाता, तो वे भुखमरी का शिकार बन सकते हैं.

खुशी की बात यह है कि विद्रोहियों के नेता लोरों न्कुंडा की ओर से घोषित किया गया युद्ध-विराम टूटू नहीं है. इसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र खाद्य समाग्री, ताज़ा पानी और दवाईयां गोमा शहर के आस पास के संकट ग्रस्त इलाकों तक पहुंचाने के समर्थ रहा. दुख की बात यह है कि ऐसे में यह पता भी चल रहा है कि कितने बड़े पैमाने पर लोगों को मदद की जरूरत है.

Menschen fliehen aus dem Kongo Goma
तस्वीर: AP

विद्रोहियों के नेता लोरों न्कुंडा का कहना है कि कांगो की तुत्सी समुदाय की सरकार में उन्हें कोई भागीदारी नहीं मिली है. वे खुद एक तुत्सी हैं. उनका आरोप है कि सरकार रवांडा में हुए जनसंहार के बाद भागे हुटू समुदाय के लोगों को न सिर्फ छिपा रही है बल्की कई मामलों में उनसे मदद भी ले रही है. हुटू समुदाय को 1994 में हुए खासकर तूत्सी समुदाय के खिलाफ जनसंहार के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है. कांगो विशेषज्ञ डेविड मुनिये का मानना हैः


इस संकट का हल सिर्फ रवांडा और कांगो, दोनों देश मिलकर ही ढूंढ सकते हैं. जिसने भी जनसंहार में भाग लिया, उस व्यक्ति को रवांडा वपस भेजना चाहिए. जिसने भाग नहीं लिया, उसे सीमा से दूर घर बसाने की अनुमति मिलनी चाहिए.

अफसोस की बात यह है कि पूर्वी कांगो बहुत सारे प्राकृतिक संसाधनों वाला इलाका है. संयुक्त राष्ट्र के कांगो के लिए प्रवक्ता कमाल साइकी का मानना है कि लड़ाई के पीछे सिर्फ टिन, सोने और कोबाल्ट जैसे संसाधनों को पाने की इच्छा है.

“इन सभी हथियार बंद गिरोहों का एक ही मकसद है. वे अपराधी हैं, जो देश और नागरिकों के संसाधनों को लूटना चाहते हैं. इनका कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है.

Karte Kongo
तस्वीर: AP Graphics / DW

1997 से 2003 तक कांगो में गृहयुद्ध चला था. इस युद्ध में 9 दूसरे अफ्रीकी देशों ने भी भाग लिया. युद्ध विराम के बावजूद देश में अलग अलग विद्रोही गुटों और सरकार के बीच लड़ाई जारी रही. 17000 सैनिकों के साथ संयुक्त राष्ट्र का दुनियाभर में सबसे बड़ा मिशन कांगो के लिए बनाया गया. इन में भारत के भी कई सौ सैनिक हैं. लेकिन, गोमा में, जाहां स्थिति सबसे नाज़ुक है, सिर्फ 850 सैनिक तैनात हैं. इसीलिए फ्रांस और ब्रिटेन के विदेश मंत्री कुशनर और मिलिबैंड इस इलाके का दौरा कर रहे हैं. उनकी ऐसी एक आपात बैठक बुलाने की कोशिश है, जिसमें विद्रेही गुट, रवांडा और कांगो की सरकारें तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सरकारों के प्रतिनिधी भाग लें.