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समाज

कानून को ठेंगा दिखाते कानून के रखवाले

प्रभाकर मणि तिवारी
२९ अक्टूबर २०१८

एक आम इंसान जहां पैन कार्ड के बिना कोई काम नहीं कर सकता वहीं कानूनी बाध्यता के बावजूद भारत के सात सांसदों और लगभग दो सौ विधायकों ने अब तक चुनाव आयोग के पास अपने पैन कार्ड का ब्योरा जमा नहीं किया है.

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Symbolbild Steuern und Finanzen
तस्वीर: Colourbox

चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वाच (एनईडब्ल्यू) के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है. चुनाव लड़ने से पहले शपथपत्र के साथ पैन कार्ड का ब्योरा देना जरूरी होता है. दिलचस्प बात यह है कि मिजोरम के 40 विधायकों में से 28 ने यह ब्योरा नहीं दिया है. मिजोरम में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं,

एडीआर और एनईडब्ल्यू ने लोकसभा के 542 सांसदों और विभिन्न राज्यों के कुल 4,086 विधायकों के पैन कार्ड के ब्योरे के अध्ययन के बाद तैयार अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सात सांसदों और 199 विधायकों ने चुनाव लड़ने के समय चुनाव अधिकारी के समक्ष दायर अपने हलफनामे में अपने पैन कार्ड का ब्योरा नहीं दिया है. ऐसा करने वालों में कांग्रेस के विधायकों की तादाद सबसे ज्यादा (51) है. इस मामले में बीजेपी भी पीछे नहीं है. उसके 42 विधायकों ने अपने पैन कार्ड का ब्योरा नहीं दिया है.

इस मामले में पार्टी दूसरे नंबर पर है. शुचिता व आदर्शों की राजनीति करने वाली सीपीएम इस मामले में 25 विधायकों के साथ तीसरे स्थान पर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यवार समीक्षा में इस मामले में केरल पहले स्थान पर है. राज्य के 33 विधायकों ने अपने पैन कार्ड का ब्योरा जमा नहीं किया है. उसके बाद मिजोरम का स्थान है. इस राज्य में महज 40 विधायक हैं. लेकिन उनमें से 70 फीसदी यानी 28 विधायक इस सूची में शामिल हैं. दिलचस्प यह है कि मिजोरम में अगले महीने एक बार फिर विधानसभा चुनाव होने हैं.

अपने पैन कार्ड का ब्योरा नहीं देने वाले सांसदों में से दो बीजू जनता दल (ओडीशा) व दो एआईडीएमके (तमिलनाडु) के हैं और बाकी एक-एक असम, मिजोरम और लक्षद्वीप के हैं. यह तीनों क्रमश: ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), कांग्रेस और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन विधायकों के पैन कार्ड के ब्योरे में विसंगितयां हैं उनमें सबसे ज्यादा 18 लोग बीजेपी के टिकट पर चुने गए हैं. इनमें से नौ विधायक कांग्रेस के हैं और तीन जनता दल (यूनाइटेड) के. इनके अलावा दोबारा चुने गए बीजद के चार, बीजेपी के दो व एनसीपी और जनता दल (सेक्यूलर) के एक-एक सांसदों के पैन कार्ड ब्योरे में भी विसंगितयां सामने आई हैं.

फर्जी ब्योरा

इससे पहले एक वेबसाइट कोबरापोस्ट ने हाल में दावा किया था कि देश के छह पूर्व मुख्यमंत्रियों और 10 मौजूदा मंत्रियों समेत 194 विधायकों ने चुनाव आयोग के समक्ष पैन कार्ड का फर्जी ब्योरा पेश किया है. वेबसाइट ने वर्ष 2006 से 2016 के बीच आयोग के समक्ष दायर हलफनामों और आयकर विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के हवाले उक्त दावा किया था. कई लोगों ने ऐसे पैन नंबर दिए थे जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं था. कुछ लोग ऐसे भी थे जिन लोगों ने दो बार अलग-अलग पैन कार्ड नंबर पेश किए थे. उसकी रिपोर्ट में कहा गया था कि ऐसा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों में तरुण गोगोई व भूमिधर बर्मन (असम), जीतन राम मांझी (बिहार), और वीरभद्र सिंह (हिमाचल प्रदेश) शामिल हैं.

वेबसाइट ने दावा किया था कि दो चुनावों के बीच संपत्ति में होने वाली बेतहाशा वृद्धि को छिपाने के लिए ही इन राजनीतिज्ञों ने पैन कार्ड का फर्जी ब्योरा दिया था. हालांकि वेबसाइट का कहना था कि कुछ लोगों से यह गलती अनजाने में हुई हो सकती है. लेकिन इससे उनकी मंशा पर सवाल तो पैदा होते ही हैं. एक साल पहले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह देश के सात लोकसभा सांसदों और विभिन्न राज्यों के 98 विधायकों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि और उनकी ओर से पेश किए ब्योरे में विसंगतियों की जांच कर रहा है. सीबीडीटी ने तब वह भरोसा लोक प्रहरी नामक एक गैर-सरकारी संगठन की ओर से पेश सूची की जांच के बाद दिया था.

पर्यवेक्षकों का कहना है कि कानून के रखवालों से ऐसे फर्जीवाड़े की उम्मीद नहीं की जा सकती. अगर वही ऐसा करेंगे तो दूसरे लोगों से निजी जीवन में ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती है? चुनाव विशेषज्ञ डॉ. देशप्राण हाजरा कहते हैं, "सांसदों व विधायकों के ऐसे फर्जीवाड़ों के खिलाफ जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. ऐसा नहीं होने पर आम लोगों में गलत संदेश जाएगा." वह कहते हैं कि हर दो चुनावों के बीच ज्यादातर नेताओं की संपत्ति कई गुनी बढ़ जाती है. इसे छिपाने के लिए वह लोग या तो पैन कार्ड का ब्योरा नहीं देते या फिर फर्जी ब्योरा देते हैं. हाजरा का आरोप है कि आम लोगों के खिलाफ कार्रवाई में चुस्त रहने वाला आयकर विभाग भी अमूमन सांसदों व विधायकों के मामलों में नरमी बरतता है. 

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