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कुदरत का शानदार लाइट शो है नॉर्दर्न लाइट्स

विनम्रता चतुर्वेदी
२० नवम्बर २०१८

उत्तरी नार्वे का एक द्वीप है ट्रोम्सो. हर साल यहां हजारों लोग नॉर्दर्न लाइट्स देखने के लिए आते हैं. यहां पर कुदरती हरी रोशनी दिखना दिलचस्प तो है ही, साथ ही यहां के लोगों और आबोहवा में भी रंग दिखाई देते हैं.

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Planeten Sonnensystem Aurora Borealis
तस्वीर: AP

उत्तरी नॉर्वे के द्वीप ट्रोम्सो पहुंचकर मेरे मन में पहला सवाल यही था कि यहां के लोग सूरज को देखे बिना कैसे रह लेते हैं. क्या वे उदास नहीं होते? इस पर होटल कर्मचारी ओएस्टीन ने मुझसे कहा, ''बिल्कुल नहीं. क्योंकि हमारे पास जब सूरज नहीं होता तो नॉर्दर्न लाइट्स होती हैं और ये हमें रास्ता दिखाती हैं.'' ओएस्टीन का यह कहना सच साबित हुआ क्योंकि प्रकृति के दो चरम को देखने वाले इस शहर में उदासी नहीं दिखेगी. यहां आय का एक बड़ा स्रोत यहां का मौसम है.

50 हजार से भी अधिक द्वीपों वाले देश नॉर्वे का एक छोटा सा द्वीप है ट्रोम्सो. उत्तरी नॉर्वे और आर्कटिक सागर के किनारे स्थित इस द्वीप पर लगभग छह महीने सूरज नहीं दिखाई देता और बाकी छह महीने सूरज डूबता नहीं है. सितंबर से लेकर मार्च के बीच यहां पर्यटकों का जमावड़ा होता है नॉर्दर्न लाइट्स देखने के लिए. मैं भी उनमें से एक थी.

आखिर क्या होती हैं नॉर्दर्न लाइट्स?

सूरज आग का एक गर्म गोला है और उसमें उठने वाली सौर आंधियां या लपटें एक प्राकृतिक घटना है. ये आंधियां दरअसल चार्ज्ड पार्टिकल्स होते हैं और इन्हें पृथ्वी तक पहुंचने में दो से चार दिन तक का समय लगता है. जब ये आवेशित कणों वाली सौर हवाएं जब पृथ्वी के वातावरण से टकराती हैं तो तेज रोशनी पैदा होती है. इसे ही नॉर्दर्न लाइट्स या औरोरा बोरियालिस कहते हैं.

ये रोशनी सिर्फ उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव पर ही इसलिए दिखाई देती है क्योंकि पृथ्वी का मैग्नेटिक पोल उत्तर और दक्षिणी ध्रुव पर है. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिद्धांत के मुताबिक चार्ज्ड पार्टिकल्स हमेशा चुम्बकीय क्षेत्र की तरफ बढ़ते हैं. यही वजह है कि नॉर्दर्न लाइट्स कभी भूमध्य रेखा के क्षेत्रों में दिखाई नहीं देगी. नॉर्दर्न लाइट्स आमतौर पर हरे रंग की होती हैं क्योंकि जब सौर हवाओं के चार्ज्ड पार्टिकल्स ऑक्सीजन से टकराते हैं तो इसी रंग का दृश्य उभरता है. नाइट्रोजन से टकराने पर लाल रोशनी दिखाई देती है.

कुदरती घटना को देखने की ख्वाहिश

मैं नॉर्दर्न लाइट्स को देखने के लिए इसलिए उत्सुक थी क्योंकि इसके बारे में स्कूल में पढ़ा था. लेकिन जर्मनी में आकर इस पर और रिसर्च किया तो जाना कि इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग नॉर्वे, स्वीडन या फिनलैंड जैसे देशों का रुख करते हैं. नॉर्वे का शहर ट्रोम्सो इसके लिए सही विकल्प लगा और मैंने इसके बारे में और जाना. सबसे पहली चीज जो समझ में आई कि अगर नॉर्दर्न लाइट्स को देखने की ख्वाहिश है तो कई वेबसाइट्स को खंगालकर मौसम का पूर्वानुमान जान लिया जाए.

जिस तरह तारों को देखने के लिए साफ आसमान और अंधेरा चाहिए होता है, वैसे ही इन्हें देखने के लिए पर्याप्त अंधेरा चाहिए होता है. कई बार लोग इन्हें देखने जाते हैं और हफ्तों तक आसमान में हरा रंग दिखाई नहीं देता. यही वजह है कि नॉर्दर्न लाइट्स को लेकर लोगों की मिलीजुली राय सुनने को मिल जाएगी.

कैसे पहुंचे नॉर्दर्न लाइट्स को देखने?

इन रोशनियों को देखने के लिए दूसरी दुविधा जो हर किसी को होती है, वह है कि क्या अकेले जाकर लाइट्स को देखा जाए या किसी की मदद ली जाए. मेरे इस असमंजस को एक जर्मन ने दूर किया. 'चेजिंग लाइट्स' के थॉमस से मैंने टूटी-फूटी जर्मन में बात की और उन्होंने मुझे बताया कि यह घटना क्यों महत्वपूर्ण हैं और इसमें क्या-क्या होता है. मुझे समझ आया कि स्थानीय लोगों के लिए यह रोजाना की घटना होगी, लेकिन मुझे इसके लिए मदद लेनी पड़ेगी. फिर मैंने व अन्य साथियों ने एक मिनी बस में सफर कर ट्रोम्सो शहर से दूर एक गांव पहुंचने का फैसला किया और समुद्र किनारे बैठ गए. माइनस तापमान में हमने खुद को गर्म कपड़ों से ढंक लिया और वोडका व रम के शॉट्स के बाद आसमान को घंटे भर निहारते रहे.

शाम करीब 7.30 बजे पहली रोशनी दिखाई दी तो हम खुशी के मारे उछल पड़े. रोशनी हालांकि मद्धिम थी, लेकिन इससे हमारी आस जग गई. इसके बाद आग जलाई गई और जमीन पर गर्म कारपेट बिछा कर फिर इंतजार शुरू हुआ. आल्प्स के बर्फीले पहाड़ और समुद्र की लहरों के किनारे हमने खाना खाया और फिर दूसरे गांव की ओर बढ़े. यहां नॉर्दर्न लाइट्स का सबसे खूबसूरत नजारा दिखाई दिया. आसमान में एक तरफ चांद और उसके विपरीत दिशा में नाचती हरी रोशनियों का खेल देर तक चला. रात करीब 12 बजे तक हमने प्रकृति के लाइट शो का आनंद लिया और हमारी चीखें रोशनी की लहरों संग मैच करती रहीं.

खुशहाली भरपूर

मुझे व्यक्तिगत रूप से स्कैंडिनेवियन देश यानी नॉर्वे, डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड और आइसलैंड हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं. वजह है यहां दिन और रात का चक्र. ट्रोम्सो के जितने लोगों से मैंने बातचीत की, उन्होंने कहा कि वे चरमचक्र के आदि होते हैं और दावा किया कि वे दक्षिणी नॉर्वे के मुकाबले इसलिए ज्यादा खुश रहते हैं क्योंकि उन्होंने प्रकृति को स्वीकार कर लिया है. मेरे लिए यह अचरज की बात थी क्योंकि यहां अन्न नहीं उग सकता और पशुपालन मुश्किल है, तो खुशी किस बात की?

लोगों ने कहा कि वे छह महीने गर्मी के मौसम में खूब काम करते हैं. इस दौरान पर्यटक दूर-दूर से मध्यरात्रि का सूरज देखने आते हैं. वहीं, सर्दियों में हफ्ते में चार दिन काम करने के बाद वीकएंड के तीन दिन दोस्तों-रिश्तेदारों के यहां खाने पर जाते हैं और क्रिसमस व न्यू ईयर की तैयारी करते हैं. यहां सूरज को न देख पाने पर उदासी इसलिए नहीं होती कि इससे लड़ने के लिए आपसी सहयोग व एकजुटता खूब है. अपनी यात्रा के अंत में मुझे होटल कर्मचारी ओएस्टीन की बात में दम लगा कि जहां सूरज की रोशनी न पहुंचे, वहां नॉर्दर्न लाइट्स ने रास्ता दिखा दिया है.

सूर्य ग्रहण जैसा ही है नॉर्दर्न लाइट्स का अंधविश्वास