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कैसे हुआ ये, रहते हैं त्रिपुरा में लेकिन मतदान मिजोरम में भी

प्रभाकर मणि तिवारी
२६ अगस्त २०२०

भारत का पूर्वोत्तर इलाका अपनी जैविक विविधताओं, प्राकृतिक सौंदर्य और दुर्गम भौगोलिक परिस्थिति के लिए जाना जाता है. लेकिन राज्यों की सीमाएं तय करने के दौरान होने वाली गलती से कई बार अनिश्चय की स्थिति पैदा हो जाती है.

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Indien Agartala | Grenzstreit Tripura - Mizoram
तस्वीर: T. Debbarma

एक ऐसा ही मामला त्रिपुरा और मिजोरम की सीमा पर बसे जाम्पुई हिल्स से सामने आया है. इलाके के एक गांव में रहने वाले करीब छह सौ लोगों में से 130 के पास दोनों राज्यों के राशनकार्ड हैं. यही नहीं, इनके नाम दोनों राज्यों की मतदाता सूचियों में भी दर्ज हैं और वह लोग दोनों राज्यों में वोट भी डालते रहे हैं. दरअसल, इस इलाके में दोनों राज्यों को एक पतली सड़क बांटती है. अब यह मामला सामने आने के बाद त्रिपुरा सरकार ने मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं. मिजोरम से लगी त्रिपुरा की 109 किमी लंबी सीमा पर कई आदिवासी-बहुल गांव बसे हैं.

मामला क्या है

मिजोरम की सीमा से लगी जाम्पुई हिल्स के फूलडुंगसेई गांव की भौगोलिक बसावट बेहद अजीब है. इस गांव के बीच से गुजरने वाली एक सड़क के एक ओर त्रिपुरा है और दूसरी ओर मिजोरम. लेकिन प्रशासनिक सहूलियत की वजह से पहले हुए फैसलों के मुताबिक गांव का प्रशासनिक नियंत्रण उत्तर त्रिपुरा जिले के कंचनपुर सबडिवीजन के तहत है, भले सड़क के पार वाला इलाका मिजोरम का हिस्सा हो. बहुत पहले से यह व्यवस्था चली आ रही है. लेकिन अब हाल में यह बात सामने आई है कि गांव के 130 लोगों के पास मिजोरम का भी राशनकार्ड है और वह लोग वहां की मतदाता सूची में बाकायदा वोटर के तौर पर भी न सिर्फ दर्ज हैं बल्कि मतदान भी करते रहे हैं.

कंचनपुर की एसडीएम चांदनी चंद्रन ने हाल में उत्तर त्रिपुरा के जिलाशासक को पत्र भेजकर उनका ध्यान इस मामले की ओर आकर्षित किया था. उनका कहना है कि फूलडुंगसेई से गुजरने वाली पीडब्ल्यूडी की सड़क को मिजोरम और त्रिपुरा की सीमा माना जाता है. लेकिन पारंपरिक तौर पर पूरे गांव को त्रिपुरा का हिस्सा ही माना जाता है. लेकिन पूर्वी हिस्से में रहने वाले परिवारों के सदस्यों के नाम मिजोरम की मतदाता सूची में दर्ज कर लिए गए हैं. मिजोरम ने उस हिस्से को अपने हाचेक विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा बताया है. जिन लोगों के नाम मिजोरम की मतदाता सूची में दर्ज किए गए हैं वह पहले से ही त्रिपुरा के मतदाता हैं.

त्रिपुरा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राज परिवार के सदस्य प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने भी अपने एक फेसबुक पोस्ट में यह मुद्दा उठाते हुए सरकार से फौरन जरूरी कार्रवाई करने की मांग की है. उनका कहना है कि पड़ोसी राज्य त्रिपुरा की जमीन पर कब्जा करने का प्रयास कर रहा है. इससे कड़ाई से निपटा जाना चाहिए. उन्होंने सरकार से फूलडुंगसेई में एक पुलिस चौकी स्थापित करने और अवैध मतदाता पहचान पत्रों और राशन कार्डों को रद्द करने की मांग की है.

Indien Agartala | Grenzstreit Tripura - Mizoram
रोड के इस पार त्रिपुरा उस पार मिजोरमतस्वीर: T. Debbarma

सीमा विवाद

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस इलाके में दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद का लंबा इतिहास रहा है. यही वजह है कि मिजोरम ने इसे अपना इलाका घोषित कर दिया है. जहां तक गांव के लोगों की बात है वह लोग इस विवाद के समाधान के पक्ष में नहीं हैं. इसकी वजह यह है कि गांव से गुजरने वाली सड़क के पूर्वी दिशा में रहने वाले सौ से ज्यादा लोगों के पास दोनों राज्यों के राशनकार्ड हैं और उनको दोनों राज्यों की सरकारी योजनाओं का भी फायदा मिलता रहा है.

जिले के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी बताते हैं, "मिजोरम फूलडुंगसेई गांव के पूर्वी हिस्से पर अपना हक जताता रहा है. लेकिन यह पूरा गांव त्रिपुरा में है. राज्य सरकार कई बार इस सीमा विवाद को हल करने का प्रयास कर चुकी है. लेकिन अब तक इसमें कामयाबी नहीं मिली है.” सरकारी अधिकारियों का कहना है कि फूलडुंगसेई के पूर्वी हिस्से में रहने वाले लोगों के पास दोनों राज्यों के मतदाता पहचान पत्र हैं और शायद उन्होंने वर्ष 2018 के मिजोरम विधानसभा चुनावों में भी मतदान किया था. अधिकारियों का कहना है कि विलेज काउंसिल चुनावों की मतदाता सूची सामने आने के बाद इस विवाद ने राजनीतिक रंग लिया है. वरना लोग तो बहुत पहले से सीमा पार जाकर भी मतदान करते रहे हैं. मिजोरम में विलेज काउंसिल चुनावों के लिए मतदान 27 अगस्त को होना है.

जाम्पुई हिल्स इलाके के रहने वाले टी. देबबर्मा फिलहाल राजधानी अगरतला में नौकरी करते हैं. वह बताते हैं, "इलाके में हमने कभी सीमा का अंतर महसूस ही नहीं किया है. गांव के लोग सीमा पार बेरोक-टोक आवाजाही करते रहे हैं. कइयों के पास मिजोरम का भी राशनकार्ड है.” देबबर्मा का कहना है कि सरकारी अधिकारियों को भी इसकी जानकारी है. लेकिन अब मिजोरम में ग्राम परिषद चुनावों की मतदाता सूची में 130 लोगों के नाम शामिल होने की बात सामने आने के बाद यह विवाद ज्यादा तूल पकड़ रहा है.

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त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में काम करते हैं टी. देवबर्मा (दाएं)तस्वीर: T. Debbarma

अधिकारियों के दावे

कंचनपुर की सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट चांदनी चंद्रन ने राज्य सरकार को भेजे पत्र में इस विवाद के समाधान की दिशा में ठोस पहल करते हुए दोनों राज्यों की सीमा चिन्हित करने का अनुरोध किया है. उनकी दलील है कि अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में यह समस्या और गंभीर हो सकती है. चांदनी बताती हैं, "गांव के जिन 130 लोगों के नाम मिजोरम की मतदाता सूची में दर्ज हैं उके पास पहले से ही त्रिपुरा का राशनकार्ड है. लेकिन फिलहाल यह बताना संभव नहीं है कि गांव के कितने लोग मिजोरम से भी राशन ले रहे हैं.” त्रिपुरा के राजस्व और मत्स्य पालन मंत्री नरेंद्र चंद्र देबबर्मा ने वित्त सचिव तनुश्री देबबर्मा को इस मामले की जांच कर सरकार को शीघ्र रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है. राज्य के कई आदिवासी और गैर-आदिवासी राजनीतिक दलों ने भी इस मामले पर गहरी चिंता जताते हुए केंद्र व राज्य सरकार से इस विवाद को शीघ्र हल करने की अपील की है.

दूसरी ओर, मिजोरम ने फूलडुंगसेई के पूर्वी हिस्से पर अपना दावा दोहराया है. वह इलाका राज्य के हाछेक विधानसभा क्षेत्र के तहत दर्ज है जो मामिट जिले के तहत है. मामित के जिलाशासक डा. लालरोजोमा कहते हैं, "वे इस मुद्दे पर त्रिपुरा सरकार के रुख के बारे में तो कुछ नहीं बता सकते. लेकिन मतदाता सूची राज्य के अधीन आने वाले इलाकों में नियमों के मुताबिक ही तैयार की गई है. जहां तक फूलडुंगसेई का सवाल है गांव का एक हिस्सा त्रिपुरा में है और दूसरा मिजोरम में. गांव के बीच से गुजरने वाली एक सड़क ही दोनों राज्यों की सीमा है.” उनकी दलील है कि दोनों राज्यों की सीमा पर ऐसे दर्जनों गांव हैं जिनका आधा हिस्सा एक राज्य में है और आधा दूसरे में.

लेकिन यह मुद्दा अब खासकर त्रिपुरा में राजनीतिक रंग ले रहा है. विपक्षी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर राज्य की बीजेपी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं. राजस्व मंत्री देबबर्मा कहते हैं, "जांच रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार मिजोरम सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठाएगी. जरूरी हुआ तो इसे केंद्र के समक्ष भी उठाया जाएगा.”

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