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कोच हिंदुस्तानी फ़ुटबॉल जर्मन

१७ अगस्त २०१०

वैसे तो बुंडेसलीगा के क्लबों में विदेशी कोचों की भरमार है, विदेशी मूल के सवाल पर गौर ही नहीं किया जाता. लेकिन भारतीय मूल का कोच? ऐसा सुनना तो दूर, सोचा भी नहीं गया था.

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भारतीय मूल के कोच रोबिन दत्ततस्वीर: DPA

लेकिन बुंडेसलीगा में कम से कम एक क्लब है, जिसके कोच भारतीय मूल के हैं. 45 वर्ष के रोबिन दत्त, जो एससी फ़्राइबुर्ग के कोच हैं. उनके निर्देशन में 2009 में दूसरे लीग का चैंपियन बनकर फ़्राइबुर्ग बुंडेसलीगा में पहुंचा, और तालिका में 14वें स्थान के साथ वह इस बार भी पहली पांत में खेल रहा है. 2012 तक क्लब के साथ उनका अनुबंध है और पिछले साल बुंडेसलीगा में सबसे नीचे के क्लब हैर्था बर्लिन से हारने के बाद भी क्लब नेतृत्व ने खुलकर कोच का साथ दिया.

1904 में इस क्लब की स्थापना हुई. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इस क्लब के इतिहास में दो व्यक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इनमें से एक थे आखिम श्टोकर, जो 1972 से 2009 में अपनी मौत तक क्लब के अध्यक्ष रहे. उनके बारे में मशहूर था कि ब्लड प्रेशर बढ़ने के डर से वे कभी अपने क्लब का खेल लाइव नहीं देखते थे. दूसरे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे रोबिन दत्त से पहले क्लब के कोच फ़ोल्कर फ़िंके. वे 1991 से 2007, यानी 16 सालों तक क्लब के कोच रहे. बुंडेसलीगा के इतिहास में यह एक रिकॉर्ड है.

एससी फ़्राइबुर्ग के लगभग 2500 सदस्य हैं. उसके स्टेडियम बाडेनोवा में 24000 दर्शकों के लिए जगह है. यह क्लब नामी गिरामी क्लबों के ख़िलाफ़ अच्छा खेल दिखाने के लिए मशहूर रहा है. छोटे से नगर का छोटा सा क्लब, ज़ाहिर है कि मशहूर खिलाड़ियों की खरीद-फ़रोख्त में उसकी कोई भूमिका नहीं है. लेकिन युवा खिलाड़ियों के प्रशिक्षण के लिए उसका फ़ुटबॉल स्कूल काफ़ी मशहूर है. ऐसे ही युवा खिलाड़ियों के बल पर वह चार बार दूसरी लीग से बुंडेसलीगा में पहुंच पाया है. इसके अलावा वह दो बार यूएफा कप में भाग ले चुका है.

लेखः उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः ए जमाल