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समाज

कोरोना की दूसरी लहरः ऐसा हुआ तो बिहार में कहर बरपेगा

मनीष कुमार
२८ अप्रैल २०२१

संक्रमण में आई तेजी के कारण बिहार में कोरोना के मरीजों की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है. कई जिलों में जिला मुख्यालय की तुलना में गांवों में मरीजों की संख्या ज्यादा है. यहां महामारी के और भयावह बनने की संभावना बढ़ गई है.

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छोटे स्टेशनों या बस अड्डों पर कोरोना जांच नहीं की जा रही है.तस्वीर: Manish Kumar/DW

प्रदेश में संक्रमण की तस्वीर रोजाना बदल रही है. बीते शुक्रवार को राज्य में संक्रमण की दर जहां 11.71 प्रतिशत थी, वह सोमवार को 14.4 फीसद हो गई. संक्रमण दर प्रतिशत के आंकड़े में निकाली गई वह संख्या है जो कुल जांच की तुलना में पॉजिटिव पाए गए लोगों की संख्या होती है. कोरोना संक्रमण की यह दर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित पांच प्रतिशत से काफी ज्यादा है.

संक्रमण की स्थिति कैसे बिगड़ रही है, इसे पटना जिले के आंकड़ों से सहजता से समझा जा सकता है. 12 अप्रैल को यहां 18 ब्लॉक में 50 से कम मरीज थे, किंतु 25 अप्रैल को महज एक ब्लॉक ऐसा था जहां कोरोना मरीजों की संख्या 50 से कम थी. अथमलगोला एक ऐसा प्रखंड है संक्रमितों की संख्या इन 13 तेरह दिनों में तीन से 173 हो गई. बिहार में छह जिलों पटना, गया, सारण, गोपालगंज, गया व बेगूसराय में संक्रमण की रफ्तार सर्वाधिक है जबकि 13 जिले ऐसे हैं जहां जांच की तुलना में रोजाना 200 से 500 कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं.
कोविड की पहली लहर में राज्य के गांवों में इस महामारी के फैलाव पर कमोबेश नियंत्रण रहा था. किंतु, आंकड़े बता रहे हैं कि इस बार स्थिति उलट है. कई जिले ऐसे हैं जहां ग्रामीण इलाके में मरीजों की संख्या शहरी इलाके की तुलना में तेजी से बढ़ रही है. शनिवार तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार बक्सर जिले में कुल 1775 संक्रमितों में 876, औरंगाबाद जिले में 4283 में 3654, जहानाबाद में 1845 में 1308, गोपालगंज में 1375 में 994, सिवान में 1974 में 1681, भोजपुर में 1293 में 822, बेगूसराय में 4176 में 2120, सारण में 4348 में 3082, वैशाली में 1628 में 838, नवादा में 1290 में 717 व शेखपुरा में कुल 921 में 498 कोरोना पॉजिटिव ग्रामीण इलाकों में मिले थे.

साफ है, सुरक्षित माने जाने वाले गांवों के लोग भी इस महामारी की चपेट में तेजी से आ रहे हैं.


 

मुस्तैदी से नहीं हो रही प्रवासियों की जांच


आखिर, क्या वजह है कि दूसरी लहर से गांव अछूते नहीं रहे. जानकार बताते हैं कि इस बार राज्य के बाहर से आने वाले लोगों की जांच व उन्हें क्वॉरंटीन करने का काम मुस्तैदी से नहीं किया गया. पहली बार मार्च में जब लॉकडाउन लगाया गया था तब कोरोना के खौफ के कारण सख्ती से अधिकतम संख्या में आनेवालों कामगारों की जांच की गई तथा एक समय के बाद लोगों का बाहर से आना रूक गया था. लेकिन इस बार आवागमन के साधनों पर प्रतिबंध नहीं लगाए जाने के कारण प्रवासियों का लगातार आना निर्बाध रूप से जारी है.

यह देखा जा रहा है कि बाहर के प्रदेशों से रोजाना लोग सीधे गांव पहुंच रहे हैं. पटना जैसे कुछ बड़े स्टेशनों या बस अड्डों पर तो जांच की व्यवस्था की गई है किंतु यह तल्ख सचाई है कि छोटे स्टेशनों या बस अड्डों पर कोरोना जांच नहीं की जा रही है. गांवों में महामारी के फैलाव की यह बड़ी वजह है.

सामाजिक कार्यकर्ता सुमन कुमार कहते हैं, ‘‘दरअसल इस बार व्यवस्थागत कमी दिख रही है जो अंतत: बड़ी आबादी के लिए घातक होगी. बाहर से जो लोग आ रहे हैं वे किसी हाल में सीधे अपने घर पहुंचना चाहते हैं. शायद इसलिए प्रशासन को भी पूरा सहयोग नहीं मिल रहा. लोग अफवाहों के शिकार भी हैं. वे मान रहे हैं कि हमें कोरोना नहीं होगा, जबकि इस बार यह ज्यादा घातक है.''

जिला मुख्यालय स्तर के अधिकारियों के तेजी से संक्रमित होने या फिर उनकी मौत की खबर भी यह बता रही है कि संक्रमण का दायरा छोटी जगहों पर भी बढ़ता जा रहा है. नालंदा जिले के नूरसराय के ब्लॉक डेवलेपमेंट ऑफिसर राहुल कुमार, वैशाली के डिस्ट्रिक्टर इम्यूनाइजेशन ऑफिसर ललन राय व कैमूर के जिला कल्याण पदाधिकारी रवि कुमार सिन्हा की मौत कोरोना की चपेट में आने से हो चुकी है. इसके अलावा कैमूर व गया के जिलाधिकारी (डीएम) भी इसकी चपेट में आ चुके हैं.
हालांकि, कई गांव ऐसे भी हैं जहां ग्रामीण काफी सचेत हैं और अपनी सुरक्षा की व्यवस्था खुद कर रहे हैं. मिथिला पेंटिंग के कलाकारों के गांव के नाम से मशहूर मधुबनी जिले के रहिका ब्लॉक के जितवारपुर गांव में लोग कोरोना को लेकर काफी सतर्क हैं. वे कोविड गाइडलाइन का पूरा पालन करते हैं. गांव में जो बाहर से आ रहे हैं उन्हें जांच के बाद ही घर आने दिया जाता है, अन्यथा पॉजिटिव पाए जाने पर उन्हें क्वॉरन्टीन सेंटर भेज दिया जाता है. इसी वजह से इस बार अभी तक यहां से कोरोना का कोई भी मामला सामने नहीं आया है.

इसी तरह बक्सर जिले के रेवतिया गांव के निवासी भी पूरी तरह सतर्क हैं. यहां बाहर से आनेवाले हर व्यक्ति पर पैनी नजर रखी जाती है. बिना मास्क के गांव में किसी को प्रवेश नहीं दिया जाता है. दूसरे राज्यों से आने वाले व्यक्ति को हर हाल में कम से कम तीन दिन क्वॉरंटीन सेंटर में रहना पड़ता है. यहां तक कि बीच की अवधि में कोरोना का प्रभाव कम पडऩे होने पर भी लोगों ने गाइडलाइन का उल्लंघन नहीं किया. परिणाम सामने है, अभी तक एक भी व्यक्ति इस गांव में संक्रमित नहीं हुआ. जबकि दूसरी तरफ राज्यभर के शहरी या ग्रामीण इलाकों में सामाजिक कार्यो यथा शादी-विवाह, मुंडन, यज्ञोपवित व श्राद्ध कार्यक्रमों में कोरोना गाइडलाइन की अनदेखी की गई. गांव-ज्वार के बाजार-हाट में भी प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ती रहीं.

कोरोना ने छीना जुबान का स्वाद

सतर्कता-सजगता के उपायों पर जोर


ऐसा नहीं है कि सरकार को इस बात का अंदेशा नहीं है कि इस बार स्थिति बदतर होने की संभावना है. सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने गांव-गांव तक कोरोना की भयावहता के संबंध में लोगों को जागरूक करने का निर्देश दिया है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि संक्रमण के प्रति लोगों को सचेत करने की जरूरत है. इसके लिए संचार के सभी माध्यमों का उपयोग करते हुए गांव-गांव में माइकिंग कराई जाए. उन्हें बताया जाए कि वे बेवजह घर से नहीं निकलें, सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करें तथा मास्क का उपयोग करें.

इसी कड़ी में गृह विभाग ने सामाजिक कार्यक्रमों में लोगों के जुटान पर नियंत्रण के लिए थानेदारों को जवाबदेह करार देते हुए सख्ती से कोरोना प्रोटोकॉल का अनुपालन कराने की जिम्मेदारी दी है. इसके अलावा राज्य में सप्ताह के तीन अंतिम दिनों में लॉकडाउन के विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है.

स्थिति से निपटने के लिए सभी जिला मुख्यालयों में जिलाधिकारी स्थिति को देखते हुए संक्रमण की कड़ी को रोकने के उपाय कर रहे हैं.

पत्रकार राजीव शेखर कहते हैं, ‘‘क्या इन उपायों से कोरोना को रोका जा सकेगा, क्या होगा जब गांवों में मामले बढऩे लगेंगे? बीमारी की स्थिति में ग्रामीण इलाकों से लोग राजधानी व अन्य बड़े शहरों का रूख करते हैं. लेकिन वहां तो हाल बेहाल है. फिर उनका इलाज कहां होगा?''

पंचायत व प्रखंड स्तर पर व्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के संदर्भ में अवकाश प्राप्त एक अधिकारी कहते हैं, ‘‘प्राइमरी हेल्थ सेंटर या कम्युनिटी हेल्थ सेंटर के सहारे इस भयावह स्थिति से निपटने की कल्पना भी बेमानी है. जिला स्तर पर सदर अस्पतालों में उपलब्ध मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति किसी से छुपी नहीं है. चिकित्सकों व हेल्थ वर्कर की संख्या भी पर्याप्त नहीं है. भगवान न करे कि गांवों में स्थिति बिगड़े.''

मुजफ्फरपुर जिले में एईएस (एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम) से निपटने में जिलास्तरीय व्यवस्था की हकीकत तो पहले ही सामने आ चुकी है. यह भी सच है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों में बेड व ऑक्सीजन की उपलब्धता की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय कहते हैं, ‘‘स्वास्थ्य विभाग कोरोना पर काबू पाने को हर स्तर पर काम कर रहा है. सभी जगह जिला प्रशासन सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति बहाल करने के लिए लगातार प्रयासरत है. स्थिति में सुधार हुआ है. कोरोना की स्थिति, जीवनरक्षक दवाइयों, ऑक्सीजन व अस्पतालों की व्यवस्था पर लगातार चर्चा की जा रही है. वैक्सीनेशन व टेस्टिंग का काम भी जोरों से चल रहा है.''

इन दावों से इतर रिटायर्ड अधिकारी आरएन सिंह कहते हैं, ‘‘अभी भी बहुत कुछ बिगड़ा नहीं है. याद कीजिए, प्रकाश पर्व के मौके पर पटना में हर स्तर पर कितनी बेहतरीन व्यवस्था की गई थी. विश्व भर में इन्हीं व्यवस्थाओं के बूते बिहार की खासी ब्रांडिंग हुई थी. क्या उसी मनोयोग से अभी व्यवस्था नहीं की जा सकती?''

 

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