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क्या सरकारी कंपनियों के बिकने से अर्थव्यवस्था का भला होगा?

चारु कार्तिकेय
२१ नवम्बर २०१९

क्या भारत सरकार सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम कर पाएगी और क्या इस से अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी?

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Indien Neu-Delhi - India All Female Crew
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K. Frayer

केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि वह कई सरकारी कंपनियों में विनिवेश करेगी. आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने बुधवार को विनिवेश के माध्यम से चुनिंदा सरकारी कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत से नीचे लाने की सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दे दी. भारत सरकार ने यह भी कहा है कि कुछ कंपनियों के प्रबंधन का नियंत्रण सरकार अपने हाथों में ही रखेगी और सभी विनिवेश के मामलों को अलग अलग देखा जाएगा. 

सरकार ने कहा कि विनिवेश से उसे जो आमदनी होगी उसका इस्तेमाल सामाजिक क्षेत्र की सरकारी योजनाओं में पूंजी लगाने के लिए किया जाएगा. ये धनराशि बजट का हिस्सा होगी और जनता देख सकेगी कि इनका इस्तेमाल कहां हुआ. सरकार को यह भी उम्मीद है कि इस कदम से निजी निवेशक, देशी और विदेशी, भी भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिए प्रेरित होंगे. 

Deutschland Hannover Messe 2015 Industriemesse
तस्वीर: DW/Z.Abbany

इस क्रम में फिलहाल पांच कंपनियों में विनिवेश की घोषणा की गई है:

1. भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड 

इसमें भारत सरकार के 53.29 प्रतिशत शेयरों का विनिवेश किया जाएगा.

2.शिपिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड

इसमें भारत सरकार के 63.75 प्रतिशत शेयरों का विनिवेश होगा.

3. कंटेनर कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड

इसमें भारत सरकार के 54.8 प्रतिशत शेयरों में से 30.8 शेयरों का विनिवेश किया जाएगा.

4. टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड

इसमें भारत सरकार के 74.23 प्रतिशत शेयरों का विनिवेश बड़ी सरकारी कंपनी एनटीपीसी को किया जाएगा.

5. नार्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कारपोरेशन लिमिटेड

इसमें भारत सरकार के 100 प्रतिशत शेयरों का विनिवेश एनटीपीसी को किया जाएगा.

क्या यह वाकई विनिवेश है?

नई सरकार के गठन के बाद जुलाई में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया था, उसमे चालू वित्त-वर्ष के लिए एक लाख पांच हजार करोड़ का विनिवेश का लक्ष्य रखा था. देखना होगा कि सरकार इतनी धनराशि जुटा पाएगी या नहीं.

वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ अंशुमान तिवारी का कहना है कि इस तरह का विनिवेश पहले ही हो जाना चाहिए था लेकिन अभी भी जो रहा है वो पूरी तरह से संतोषजनक नहीं है. वो कहते हैं, "एनटीपीसी पावर क्षेत्र की दो कंपनियों की इक्विटी खरीद रही है. यह तो सिर्फ अकाउंट ट्रांसफर हुआ. यानी एक कंपनी का फंड दूसरी कंपनी को जा रहा है. विनिवेश तभी विनिवेश माना जाता है सब सरकार अपनी हिस्सेदारी किसी निजी कंपनी को बेच देती है. एक सरकारी कंपनी की बेची हुई हिस्सेदारी को दूसरी सरकारी कंपनी खरीद ले, तो ये निजीकरण नहीं हुआ". 

हालांकि बुधवार की घोषणा में एयर इंडिया का नाम नहीं है, इस घोषणा से कुछ दिन पहले वित्त मंत्री ने कहा था कि एयर इंडिया में भी विनिवेश होगा और ये प्रक्रिया मार्च 2020 तक पूरी हो जाएगी. 

Boeing 787 der Fluggesellschaft Air India
तस्वीर: imago images/Ralph Peters

कभी भारत के नागरिक विमानन क्षेत्र की शान मानी जाने वाली एयर इंडिया लम्बे समय से घाटे में चल रही है. इसे बेच दिया जाए या और आर्थिक मदद दे कर चालू रखा जाए, ये दुविधा कई सरकारों के सामने रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भी 2014 से इसी पसोपेश में रही है. 

क्या एयर इंडिया बिक पाएगा?

2018 में भी सरकार ने एयर इंडिया के विनिवेश की कोशिश की थी लेकिन तब ये कोशिश पूरी तरह से नाकाम रही थी क्योंकि एक भी बोली लगाने वाला सामने नहीं आया था. तो आखिर महज एक साल में क्या बदल गया है जिससे सरकार को ये उम्मीद बनी है कि इस बार वो एयर इंडिया में अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी से छुटकारा पा सकेगी?

तिवारी कहते हैं कि एक साल में कुछ भी नहीं बदला है और उन्हें उम्मीद नहीं है कि इस बार भी इसे खरीदने के लिए कोई आगे आएगा. उन्होंने बताया, "भारतीय विमानन बाजार की पहले से ही हालत खराब है. मांग नहीं है, उड़ान जैसी स्कीमें भी सफल नहीं हो पाईं और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी किसी एयरलाइन की जेबें इतनी गहरी नहीं हैं कि वो एयर इंडिया को उसके ऋण के साथ खरीद ले." उनका मानना है कि अगर सरकार एयर इंडिया को बेचना ही चाहती है तो उसके पास उसके ऋण को अपने सिर पर लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है, नहीं तो उसे एयर इंडिया को बंद ही करना पड़ेगा.

सरकार पहले ही एयर इंडिया का काफी ऋण अपने ऊपर ले चुकी है, लेकिन उसके बाद भी कंपनी पर 58,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का ऋण है. ऐसे में क्या इसे कोई खरीदना चाहेगा? लेकिन ये सवाल भी अपनी जगह बना हुआ है कि दशकों के कुप्रबंधन की वजह से इस हाल में पहुंची एयर इंडिया को बेचने के अलावा सरकार के पास और विकल्प भी क्या है?

Streiks in Indien
तस्वीर: AP

एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जीतेन्द्र भार्गव कहते हैं कि विनिवेश के अलावा कोई विकल्प नहीं है. भार्गव कहते हैं, "एयर इंडिया अपने बेड़े को बढ़ाने के लिए और धन का इंतजाम नहीं कर सकती और इस वजह से वो बाजार में दूसरी कंपनियों से पिछड़ जाएगी. मैंने जब 2013 में एयर इंडिया पर अपनी किताब लिखी थी, उस वक्त कंपनी का मार्किट शेयर 17 प्रतिशत था और आज यह नीचे गिर कर 12.9 प्रतिशत पर आ गया है. कम से कम मैं तो वो दिन नहीं देखना चाहूंगा जब एयर इंडिया भारतीय विमानन क्षेत्र में अप्रासंगिक हो जाए."

क्या इस समय विनिवेश एक प्राथमिकता है?

कुल मिला कर अगर विनिवेश की इस प्रक्रिया का नाजुक दौर से गुजरती भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?

अर्थशास्त्री और नई दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के मालकम आदिसेषिया चेयर प्रोफेसर अरुण कुमार का मानना है कि विनिवेश बढ़े हुए वित्तीय घाटे को छिपाने की एक कोशिश है, ताकि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को खुश रखा जा सके. वे कहते हैं, "लेकिन ये गलत है क्योंकि इस से अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं बढ़ रहा बल्कि उलटे सरकार अपना पूंजीगत स्टॉक गंवा रही है. इसकी जगह इस समय सरकार की कोशिश ये होनी चाहिए कि किसी तरह से देश में मांग को बढ़ाएं क्योंकि मौजूदा संकट मांग का संकट है." 

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