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क्या कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं है?

१५ अप्रैल २०१९

नोटबंदी और जीएसटी के कारण व्यापार जगत बीजेपी से नाराज हुआ लेकिन इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस कारोबारियों को लुभाने में ज्यादा सफल होती नहीं दिख रही है. भारत के चुनाव में कारोबारियों की भूमिका काफी बढ़ गई है.

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Indien Politiker Rahul Gandhi
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khanna

भारत में चुनाव लड़ना महंगा होता जा रहा है और विश्लेषक मान रहे हैं कि राजनीतिक पार्टियां अनाम कारोबारियों से मिले दान पर ज्यादा निर्भर होती जा रही हैं. इसका नतीजा देश में पारदर्शिता की कमी और हितों के टकराव बढ़ावे के रूप में सामने आ रहा है.  

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) से जुड़े निरंजन साहू कहते हैं, "धनिकतंत्र की तरफ झुकाव हो रहा है. स्वच्छंद कारोबारी प्रभाव नीतियों पर गंभीर असर डाल सकता है."

Narendra Modi
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

नई दिल्ली के सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज का आकलन है कि 2014 के आम चुनाव में करीब 5 अरब डॉलर की रकम खर्च हुई जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी देश की सत्ता पर काबिज हुई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. 2009 के चुनाव में यह रकम 2 अरब डॉलर थी. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज का अनुमान है कि इस बार यह रकम 7 अरब डॉलर को पार कर जाएगी. इसके साथ ही यह दुनिया के सबसे खर्चीले चुनाव में शामिल हो जाएगा.

कार्नेगी इंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस से जुड़े मिलन वैष्णव का कहना है, "संरचना से जुड़ी वजहों के कारण चुनाव महंगे होते जा रहे हैं. बढ़ती आबादी, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में इजाफा, नगद और दूसरे प्रलोभनों के लिए वोटरों की बढ़ती उम्मीदें साथ ही तकनीकी बदलाव जिसके कारण मीडिया और डिजिटल पहुंच पर खर्च बढ़ा है."

विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी कि सदस्यता जैसे पारंपरिक तरीकों से आने वाले पैसे में कमी आई है. ऐसे में पार्टियां अमीर दानदाताओं से चुनाव का खर्च जुटा रही हैं.

चुनाव पर नजर रखने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के आंकड़े दिखाते हैं कि 2017-18 में काराबारी कंपनियों और दूसरे लोगों ने कांग्रेस समेत छह राष्ट्रीय पार्टियों की तुलना में अकेली भारतीय जनता पार्टी को करीब 12 गुना ज्यादा धन दिया. उस साल भारतीय जनता पार्टी को दान का 93 फीसदी 20-20 हजार रुपये के चंदे में मिला.

बीजेपी को करीब 4.37 अरब रुपये (6.33 करोड़ अमेरिकी डॉलर) मिले जबकि कांग्रेस को महज 26.7 करोड़ रुपये. निरंजन साहू का कहना है, "दोनों पार्टियों के बीच भारी अंतर है. कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं. लोगों को इसकी चिंता होनी चाहिए." 

मोदी सरकार का कहना है कि उसने राजनीति में मौजूद "काले धन" पर चोट करने के लिए नगद चंदे की सीमा 20 हजार से घटा कर 2 हजार कर दी है. हालांकि आलोचकों का कहना है कि राजनीतिक दलों को चंदा देना अब आसान है. एडीआर के मुताबिक बीजेपी ने 2017-18 में मिले दान की जो रकम बताई उसका 92 फीसदी कारोबार जगत से आया था.

समीक्षक ध्यान दिलाते हैं कि दो साल पहले कारोबारी चंदे पर से सरकार ने सीमा हटा दी. तब "इलेक्टोरल बॉन्ड" जारी किए गए जिन्हें कोई भी व्यक्ति अपना नाम गोपनीय रख कर बैंक से खरीद सकता है. इस बॉन्ड सिस्टम को जब सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चुनौती दी तो शुक्रवार को भारत की सर्वोच्च अदालत ने पार्टियों को आदेश दिया कि वे दान देने वालों की पहचान बताएं.

Flash Galerie Mukesh Amabani
मुकेश अंबानीतस्वीर: Worl Economic Forum

आमतौर पर बड़े कारोबारी सीधे सीधे किसी नेता का समर्थन नहीं करते हैं क्यों कि उन्हें गलत उम्मीदवार पर दांव लगने की आशंका रहती है. हालांकि 68 साल के नरेंद्र मोदी कई बड़े कारोबारियों के करीबी हैं. 2014 में वह रैलियों के लिए अरबपति कारोबारी गौतम अडानी के जेट और हेलिकॉप्टरों से यात्रा करते रहे. इधर रतन टाटा ने पाकिस्तान में हवाई हमलों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की है. रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी अपने भाषणों में कई बार "हमारे प्रिय प्रधानमंत्री" कह चुके हैं. फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक 20014 से 2019 के बीच मुकेश अंबानी की निजी संपत्ति 18.6 अरब डॉलर से बढ़ कर 53 अरब डॉलर पर पहुंच चुकी है.

"द बिलियनैयर राज" नाम की किताब लिखने वाले जेम्स क्रैबट्री कहते हैं, "अगर आप इन लोगों के पास मौजूद पैसे का आकलन करने वालों को देखें तो पता चलता है कि इन टाइकूनों ने मोदी राज में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है." समाचार एजेंसी एएफपी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और अडानी ग्रुप से जब इस बारे में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

 48 साल के राहुल गांधी मोदी और मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी पर आरोप लगा रहे हैं.  कांग्रेस के नेता विजय माल्या और नीरव मोदी का नाम लेकर भी मोदी पर हमले कर रहे हैं. सरकार ने इन दोनों पर भारी धोखधड़ी के आरोप लगाए हैं और उनका प्रत्यर्पण कराने की कोशिश कर रही है.

Indien Tassen der regierenden Bharatiya Janata Party (BJP)
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

भारत का कारोबारी जगत इस बार के चुनाव में नरेंद्र मोदी को लेकर बहुत ज्यादा उत्साह में नहीं है. खासतौर से नोटबंदी और ठीक से लागू नहीं किए गए जीएसटी ने उन्हें परेशान किया है. हालांकि इसके बाद भी वो मुख्य रूप से मोदी के लिए ही वोट करेंगे ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. कारोबारियों को डर है कि गठबंधन या राहुल गांधी की जीत देश के लिए जरूरी आर्थिक सुधारों पर रोक लगा देगी.

मुंबई के एक प्रमुख कारोबारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, "वह कोई मसीहा नहीं हैं जैसा कि हमने सोचा था, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि लगभग हर कोई मोदी की बहुमत के साथ वापसी चाहता है. क्योंकि उनके बाद कोई और विकल्प नहीं है."

एनआर/ओएसजे (एएफपी)

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