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क्या फर्जी खबरों को अपराध बनाना सही रास्ता है?

लुइस सैंडर्स
२५ जनवरी २०१७

डिजीटल अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ता मानते हैं कि फेक न्यूज को अपराध बनाने के कई खतरनाक असर हो सकते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Lipinski

अमेरिकी चुनाव के बाद फेक न्यूज का मामला अंतरराष्ट्रीय बहस के केंद्र में आ गया है और चुनावों पर इसके कथित असर के कारण राजनीतिज्ञों के अलावा समाचार उपभोक्ताओं और सोशल मीडिया उद्यमियों ने इस मामले पर ध्यान देना शुरू किया है. चुनाव प्रचार के दौरान चली फर्जी खबरों में प्रमुख डेमोक्रैटिक नेताओं द्वारा बाल सेक्स रिंग चलाने और पोप द्वारा रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप के समर्थन की खबरें शामिल थीं. मनोवैज्ञानिकों के एक दल ने 2012 में ही गलत सूचनाओं के उपलब्ध होने के बारे में एक सर्वे की रिपोर्ट प्रकाशित की थी और चेतावनी दी थी कि इसके "लोकतंत्र के लिए चिंताजनक नतीजे हो सकते हैं."

रिपोर्ट के मुख्य लेखक और ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञानी स्टेफान लेवांडोव्स्की की राय में "व्यक्तिगत स्तर पर स्वास्थ्य मामलों पर गलत सूचना, टीकों के बारे में गलत भय या वैकल्पिक दवाओं के बारे में गलत विश्वास, बहुत नुकसानदेह हो सकते हैं." उनका कहना था, "सामाजिक स्तर पर राजनीतिक मामलों के बारे में नियमित गलत सूचना बहुत नुकसान कर सकती है. वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के बारे में गलत सूचनाएं इस समय उसे रोकने के उपायों में देरी की वजह बन रही हैं." फेसबुक ने फर्जी खबरों को रोकने का सिस्टम बनाना शुरू किया है, अधिकारी अभी भी संशय में हैं कि बढ़ती ऑनलाइन फर्जी खबरों का मुकाबला कैसे करें.

कानूनी विकल्पों पर विचार

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के सांसद पैट्रिक जेंसबुर्ग ने डॉयचे वेले के साथ एक इंटरव्यू में कहा है कि सरकार को फर्जी खबर फैलाने वालों के खिलाफ "कानूनी अपराधों की व्याख्या" पर विचार करना चाहिए और इस तरह की "वेबसाइट चलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए." जर्मनी के कई राजनीतिज्ञों ने इंटरनेट पर फर्जी खबरों की बढ़ती समस्या पर काबू पाने के लिए कानूनी कदमों का समर्थन किया है. एसपीडी नेता और उप चांसलर जिगमार गाब्रिएल ने कहा है कि फर्जी खबरों और "सोशल बॉट्स के खिलाफ हमें एकजुट रहना चाहिए."

जेंसबुर्ग का कहना है कि फर्जी खबरों के खिलाफ उठाए जाने वाले कदमों का मतलब "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती" नहीं है, इनका लक्ष्य "मीडिया जगत और राज्य में जनता के भरोसे को खत्म" करने के प्रयासों को रोकना है. उन्होंने ये भी कहा कि यदि फर्जी खबरों के ऑपरेटर समाज और लोकतांत्रिक संस्थाओं को नुकसान पहुंचाने के विदेशी प्रयासों का हिस्सा हैं तो उनके खिलाफ जासूसी का मुकदमा चलाया जाना चाहिए. अमेरिकी चुनावों में ट्रंप के समर्थन में रूस समर्थित फर्जी खबरों की रिपोर्ट के बाद जर्मन सांसदों ने चेतावनी दी है कि मॉस्को जर्मनी के संसदीय चुनावों की प्रक्रिया को क्षति पहुंचाने की कोशिश कर सकता है.

सीडीयू नेता अंसगर हेवेलिंग ने कहा है कि जर्मन चुनाव प्रक्रिया में इस तरह का हस्तक्षेप खतरनाक है. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है, "हमारे समाज को विभाजित और अस्थिर करने में रूस की दिलचस्पी है." इन सब प्रतिक्रियाओं के बावजूद जर्मन सांसदों ने फर्जी खबरों को रोकने के लिए किसी विस्तृत कानून का मसौदा नहीं पेश किया है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर फर्जी खबरों को डिलीट करने के लिए दबाव बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है. सोशल मीडिया पर होने वाली गतिविधियों को अपराध बनाने के विचारों की खूब आलोचना हुई है. 

प्रतिबंधों का विरोध

अमेरिकी चुनावों के बाद फर्जी खबरों को रोकने के दबाव के बाद फेसबुक प्रमुख मार्क जकरबर्ग ने कहा था कि समुदाय को झांसों और फर्जी खबरों से बचने की सुविधा देने के अलावा इसके लिए ज्यादा कुछ किया जा सकता है. मीडिया स्वतंत्रता के लिए यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन की प्रतिनिधि दुनिया मियातोविच का कहना है कि "किसी को भी सोशल मीडिया गतिविधियों के लिए तबतक सजा नहीं दी जानी चाहिए जब तक वह हिंसक कार्रवाईयों के लिए सीधे जिम्मेदार न हो और गैरकानूनी कार्रवाई का टेस्ट पास कर जाए." उनका कहना है कि समस्या का समाधान प्रतिबंधों से नहीं बल्कि आत्म नियंत्रण और शिक्षा से होना चाहिए.

यूरोपीय डिजीटल अधिकार पहलकदमी ईडीआरआई के कार्यकारी निदेशक जो मैकनेमी का कहना है कि फेसबुक जैसी सोशल मीडिया कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर कंटेट चुनने का हक नहीं दिया जाना चाहिए. वे कहते हैं, "ईडीआरआई गैरसरकारी मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को सच्चाई का मध्यस्थ और संचार की हमारी स्वतंत्रता का विधायक, जज, जूरी और लागूकर्ता बनाने के कदम का पुरजोर विरोध करेगा." अमेरिकी जासूसी संस्था एनएसए के पूर्व कॉन्ट्रैक्टर और व्हिस्लब्लोवर एडवर्ड स्नोडेन ने कहा है कि फर्जी खबरों को रोकने की रणनीति के केंद्र में सेंसरशिप नहीं होनी चाहिए.

एडवर्ड स्नोडेन के अनुसार, "फर्जी खबर की समस्या का हल एक रेफरी की उम्मीद के साथ नहीं होगा बल्कि इसलिए कि हम भागीदार के रूप में, नागरिक के रूप में और इन सेवाओं को इस्तेमाल करने के वाले के रूप में एक दूसरे की मदद करेंगे." उनके विचार में, "खराब बयान का जवाब सेंसरशिप नहीं है. खराब बयान का जवाब और ज्यादा बयान है. हमें इस विचार को फैलाना होगा कि आलोचनात्मक सोच आज पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है, खासकर इसलिए कि झूठ लोकप्रिय होता प्रतीत हो रहा है.