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क्या महिलाएं चुनाव "जिताऊ" नहीं होती

श्रेया बहुगुणा
२३ जनवरी २०२०

दिल्ली विधानसभा चुनाव में तीन प्रमुख पार्टियों ने 210 उम्मीदवारों में सिर्फ 24 महिलाओं को टिकट दिया है. दलील यह है कि महिलाएं चुनाव जिताऊ नहीं होती.

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Wahlen in Indien 17.04.2014
तस्वीर: Reuters

प्रमिला राजनीति में पिछले 15 सालों से हैं. उनका सपना है संसद भवन में सांसद के तौर पर बैठना. इस बार वह दिल्ली विधानसभा में चुनाव लड़ना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने पार्टी में उम्मीदवारी का आवेदन भी भरा था. पिछले पांच साल से वह इलाके में मतदाताओं के बीच संपर्क साध रही थीं. जिससे वह पार्टी के सामने अपनी दावेदारी और पक्की कर सकें. लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रत्याशियों के लिए उन्होंने देर रात तक प्रचार भी किया. उन्हें उम्मीदवार बनाया जाना था लेकिन पर्चा भरने के अंतिम दिन पार्टी ने उनका टिकट काट दिया गया. वजह यह दी गई कि जीतने के लिए उस चुनाव क्षेत्र से पुरुष उम्मीदवार को खड़ा करना जरूरी है. प्रमिला ने हिम्मत नहीं हारी है. इसलिए हमसे अपना असली नाम न बताने को कहा है.

दिल्ली ने 15 साल शीला दीक्षित जैसी सफल महिला मुख्यमंत्री देखी है. दिल्ली की सूरत बदलने में शीला दीक्षित की बड़ी भूमिका रही है. केंद्र में किसी की भी सरकार रही हो शीला दीक्षित ने दिल्ली के काम करवाने में हमेशा सूझबूझ का परिचय दिया. लेकिन इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में तीन बड़ी पार्टियों ने महिलाओं को टिकट देने में भारी कंजूसी की है. दिल्ली में 70 विधानसभा सीट हैं. तीनों पार्टियों के मिलाकर 210 उम्मीदवार हैं, पर उन्होंने केवल 24 महिलाओं को टिकट दिया है. सबसे खराब प्रदर्शन "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का नारा देने वाली पार्टी बीजेपी का है. पार्टी ने केवल छह महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है. पिछली बार यह आंकड़ा आठ था. वहीं दिल्ली की सत्ता संभाल रही आम आदमी पार्टी ने आठ और कांग्रेस ने सबसे ज्यादा दस महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. लेकिन ये आंकड़े भी संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें रिजर्व करने की कोशिश करने वाली पार्टियों के लिए सम्मान बढ़ाने वाले नहीं हैं.

Indien Wahlen 2014 10.04.2014 Kandhamal
तस्वीर: Reuters

महिला नेताओं की संघर्ष की लंबी राह

महिला आरक्षण बिल राजनीतिक दलों के आपसी मतभेदों की भेंट चढ़ गया था. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी पर आम आदमी पार्टी की कालकाजी विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार आतिशी मारलेना कहती हैं, "जाहिर तौर पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए राजनीति में ज्यादा संघर्ष है. राजनीति को महिलाओं के लिए अच्छा नहीं समझा जाता. हर वह महिला जो राजनीति में है उसे आगे बढ़ने में कई साल लग जाते हैं." इसका कारण है राजनीति में हमेशा से पुरुषों का दबदबा. महिलाओं को चुनावों में वोट लेने वाला उम्मीदवार भी नहीं समझा जाता.

Indien Vergewaltigung Proteste
तस्वीर: Reuters

वैसे भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों में महिला नेताओं का रिकॉर्ड पुरुष नेताओं के मुकाबले कहीं बेहतर होता है. बीजेपी की प्रवक्ता टीना शर्मा कहती हैं, "पांच साल मेहनत और लगन से मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद आप डॉक्टर बन सकते हैं. लेकिन राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें कई साल मेहनत करने के बाद भी आपको टिकट मिलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं." भारत जैसे देश में, जहां महिला वोटरों की इतनी अहमियत है कि वह किसी को भी सत्ता में बिठा सकती हैं, वहां आज भी महिला और पुरूष उम्मीदवारों में टिकट बराबरी से बंटना सपने जैसा ही है. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जो महिला नेता राजनैतिक घरों से ताल्लुक रखती हैं उनके लिए संघर्ष फिर भी कम होता है.

प्रमिला की जगह पार्टी ने जिस पुरुष उम्मीदवार को मैदान में उतारा है उसे दूसरे विधानसभा क्षेत्र से लाया गया है. प्रमिला को यह बताया गया कि इस सीट पर पुरुष उम्मीदवार के जीतने की संभावना ज्यादा है. महिलाओं के चुनाव जीतने की क्षमता को पुरुषों से कम आंकना मिथक के अलावा कुछ नहीं है. दिल्ली में 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 70 में से 67 सीटें हारी थी, जिसमें 59 पुरुष थे. राजनीतिक पीआर करने वाली नेहा वर्मा कहती हैं, "राजनीति में भी पितृसत्तामक व्यवस्था है. महिलाएं कितना भी जज्बा या प्रतिभा रखती हों, समाज में उनका चरित्र पहले से निर्धारित है. इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए संघर्ष बाकी पेशों से कहीं ज्यादा है." जो महिलाएं राजनीति में अपना रसूख बना चुकी हैं, जरूरत है उन्हें आगे बढ़कर युवा महिला नेताओं का हाथ पकड़कर आगे लाने की.

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