1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या दिमाग को खराब कर रहे हैं मोबाइल फोन?

२३ अगस्त २०१८

मोबाइल फोन जब से हमारी जिंदगी का हिस्सा बने हैं, तब से ही सेहत पर इनके बुरे असर पर भी चर्चा होती रही है. लेकिन सच्चाई क्या है? क्या ये वाकई इतने खतरनाक हैं?

https://p.dw.com/p/33c9I
Smartphones von Apple und Samsung
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Gebert

कभी मोबाइल फोन को कैंसर के लिए जिम्मेदार बताया जाता है, तो कभी ब्रेन ट्यूमर के लिए. हालांकि हमारे पास अभी भी बहुत ठोस सबूत नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब ये हरगिज नहीं कि मोबाइल फोन से होने वाले नुकसान को नजरअंदाज किया जा सकता है.

माना जाता है कि मोबाइल फोन से सबसे बड़ा खतरा होता है रेडिएशन का. इनसे रेडियो तरंगें निकलती हैं, जो हमारे शरीर के अंदर पहुंचती हैं. ऐसे कई शोध हुए हैं जो ब्रेन ट्यूमर के कारण के तौर पर मोबाइल फोन के इस्तेमाल की ओर इशारा करते हैं. लेकिन स्विट्जरलैंड के ट्रॉपिकल एंड पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के मार्टिन रोएसली का मानना है कि मोबाइल फोन से निकलने वाली तरंगों से डरने की कोई जरूरत नहीं है.

रोएसली का कहना है कि इन रेडियो तरंगों की फ्रीक्वेंसी इतनी कम होती है कि इसका शरीर पर कोई असर नहीं हो सकता. उनके अनुसार इसकी तुलना रेडियो और टीवी से निकलने वाली तरंगों से की जा सकती है. वे कहते हैं, "ये रेडियोधर्मी या एक्स रे जैसी किरणें नहीं हैं. इस तरह के रेडिएशन से डीएनए को सीधे तौर पर कोई नुकसान नहीं होता. ऐसा होना नामुमकिन है."

फिर ऐसा क्यों है कि आए दिन मोबाइल फोन और कैंसर से जुड़े अध्ययन सामने आते रहते हैं? इस बारे में रोएसली का कहना है कि इस तरह की स्टडी में आम तौर पर लोगों से याद करने को कहा जाता है कि उन्होंने कितना फोन इस्तेमाल किया. ऐसे में मुमकिन है कि लोग सही आंकड़े नहीं दे पाते या फिर जिन्हें ट्यूमर है, वे पहले से ही फोन को जिम्मेदार मान लेते हैं. रोएसली कहते हैं, "पिछले दो दशकों में हमने कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी नहीं देखी है. अगर मोबाइल फोन से इतना बड़ा खतरा होता, तो संख्या जरूर बढ़ी होती."

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के फ्रैंक दे वोख्त भी इससे इत्तेफाक रखते हैं. उनका कहना है, "अगर मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कैंसर जैसी बीमारी में इजाफा होता, तो हमारे पास जो मौजूदा वैज्ञानिक तरीके हैं, उनके जरिए यह जरूर पकड़ में आ चुका होता. मिसाल के तौर पर धूम्रपान और फेंफड़े के कैंसर का सीधा संबंध ढूंढ लिया गया है."

लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि मोबाइल फोन का किसी भी तरह से दिमाग पर असर नहीं पड़ता. रोएसली ने 12 से 17 साल की उम्र के 700 युवाओं पर शोध किया. उन्होंने पाया कि फोन के इस्तेमाल से दिमाग की बातों को याद रखने की क्षमता पर असर पड़ता है. इसमें सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है फोन पर घंटों बातें करना, "दिमाग में पहुंचने वाली 80 फीसदी रेडिएशन फोन को सर के करीब पकड़ कर रखने की वजह से पहुंचती हैं."

खास कर अगर फोन दाहिने कान पर लगा हो क्योंकि दिमाग का दाहिना हिस्सा यादों को समेट कर रखता है. लेकिन जहां तक टेक्स्ट मेसेज करने और ऐप्स के इस्तेमाल की बात है, तो इस शोध में उनका दिमाग पर बुरा असर नहीं देखा गया.

वहीं दे वोख्त का कहना है कि फोन को बाएं कान पर लगा कर या फिर हेडफोन्स और स्पीकर की मदद से इस बुरे असर से बचा जा सकता है. दोनों विशेषज्ञों का कहना है कि शारीरिक असर से ज्यादा मानसिक असर पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि स्मार्टफोन की लत लोगों के बर्ताव को बदल रही है. ऐसे में फोन के मानसिक असर की दिशा में अधिक शोध की जरूरत है.

रिपोर्ट: चार्ली शील्ड/आईबी

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें