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खेल की आड़ में ली जा रही है कबूतरों की जान

१८ मई २०१९

फिलीपींस में 600 किलोमीटर की रेस. प्रतियोगियों को झुलसाने वाली गर्मी, अंतहीन लगने वाले समुद्र, खतरनाक शिकारी और अपहर्ताओं से बचते बचते इसे पूरा करना होता है. जाहिर है कि दस में से कोई एक ही ऐसी रेस पूरी कर पाता है.

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Philippinen Brieftauben-Rennen
तस्वीर: AFP/T. Aljibe

यह मैकआर्थर प्रतियोगिता है, फिलीपींस में होने वाली कबूतरों की सबसे लंबी रेस. ना केवल कबूतरों के लिए बल्कि इन्हें पालने वालों के लिए भी यह एक तनावपूर्ण वक्त होता है. फिलीपींस में कबूतरों के कुछ जाने माने शौकीनों में शामिल जाइमे लिम कहते हैं, "यूरोप और अमेरिका के मुकाबले, हमारे यहां कहीं ज्यादा शिकारी हैं और बहुत से लोग इन पक्षियों को गोली मार देते हैं." 68 साल के लिम और खतरों के बारे में बताते हैं, "पहाड़ों पर लोग फिशिंग नेट लगा कर रखते हैं ताकि उसमें हमारे पक्षी फंस जाएं. आजकल ये परेशानी बहुत बढ़ गई है."

रेसिंग वाले इन कबूतरों की कीमत हजारों डॉलर में होती है. कई बार इनका अपहरण कर लोग इन्हें औने पौने दामों में बेच देते हैं. फिलीपींस में इसका शौक बढ़ने के ये कुछ बुरे असर हैं. देश में इस समय कम से कम 300 क्लब हैं, जिसके सदस्यों की संख्या हजारों में है.

इस खेल की लोकप्रियता भारत, ताइवान और चीन जैसे दूसरे एशियाई देशों के ढर्रे पर और भी बढ़ती जा रही है. इसी मार्च में एक चीनी खरीदार ने नीलामी में बेल्जियम के सर्वश्रेष्ठ लंबी दूरी वाले रेसिंग कबूतर को रिकॉर्ड 12.5 लाख यूरो में खरीदा. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में दर्ज है कि यह खेल बेल्जियम में ही शुरु हुआ था और वहां पहली ऐसी रेस सन 1818 में आयोजित हुई. अब भी यूरोप का यह देश इस रेस के शौकीनों का वैश्विक गढ़ माना जाता है.

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इस रेस में दिलचस्पी बढ़ने का कारण पैसा भी है. एक हजार सदस्यों वाले इसके एक क्लब मेट्रो मनीला फैन्सियर्स क्लब के अधिकारी एडी नोबेल बताते हैं, "कहने में तो यह अच्छा नहीं लगता लेकिन जुआ खेलना भी इसका हिस्सा है." हालांकि उनका मानना है कि मुख्य बात अब भी इस रेस से जुड़ा उत्साह ही है.

विज्ञान भी अभी तक साबित नहीं कर पाया है कि होमिंग कबूतर कैसे वापस अपने घर पहुंचने का रास्ता ढ़ूंढ लेते हैं. सबसे लोकप्रिय थ्योरी है कि ये कबूतर धरती के चुम्बकीय क्षेत्र के रास्ते पर उड़ते हैं और गंध पहचानने के उनके बेमिसाल गुण से भी मदद मिलती है. एक दूसरी नई थ्योरी यह है कि पक्षी अल्ट्रा-लो फ्रीक्वेंसी वाली आवाज का इस्तेमाल कर इलाके का नक्शा तैयार कर लेते हैं. मैकआर्थर रेस में उनकी इसी खूबी की परीक्षा होती है.

रेस के आयोजक नेलसन चुआ बताते है कि यह फिलीपींस के लेइटे द्वीप पर मैकआर्थर शहर में शुरु होती है और "अधिक से अधिक, केवल 10 फीसदी ही वापस पहुंचते हैं." वे बताते है, "इनमें से 50 से 70 फीसदी या तो जालों में फंस जाते हैं या गोली और शिकारियों के हाथों मारे जाते हैं."

कबूतरों से सीख

यही कारण है कि ऐसी रेस की तारीख को गुप्त रखना जरूरी है ताकि अपहर्ताओं को इसका पता ना चले और वे जाल न लगा पाएं. रेस के दौरान बाकी कई पक्षियों को कोई दूसरा बड़ा शिकारी पक्षी खा जाता है तो कभी वे गर्मी या थकान से बेहाल होकर खत्म हो जाते हैं. रेस के पूरा होने में कम से कम 10 घंटे तो लगते ही हैं. जो कबूतर वापस लौटने में सफल रहा वह सीधे अपने घर जाता है. फिर उसके मालिक को उसके पैरों में बंधा कोड हासिल करना होता है और आयोजनकर्ताओं को सूचना देनी होती है.

पशु पक्षियों के लिए काम करने वाले मनीला के एक संगठन, 'पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स' की ऐश्ले फ्रूनो कहती हैं कि मरने वाले 90 फीसदी पक्षियों की मौत के जिम्मेदार वे लोग हैं जो कबूतरों से तीन तीन समुद्र पार करने वाली ऐसी कठिन रेस करवाते हैं. यह दुनिया की सबसे जानलेवा रेस है. वे कहती हैं, "जानबूझ कर जानवरों को खतरे में डालने में खेल जैसी कोई बात नहीं है. लोग ये सब केवल ईनाम या ट्रॉफी पाने या पैसे जीतने के लिए करते हैं."

आरपी/एमजे (एएफपी)

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