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साहित्य

गुंटर ग्रास: द टिन ड्रम

सबीने कीजेलबाख
५ जनवरी २०१९

एक ऐसा उपन्यास जिसका असर एक बम की तरह हुआ था. यह उपन्यास एक नन्हें इंसान के नजरिए से दूसरे विश्व युद्ध और शताब्दी के इतिहास का और 1950 के दशक में पुनर्निर्माण करते जर्मनी का लेखा जोखा है.

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Filmszene Die Blechtrommel von Volker Schlöndorff
तस्वीर: Imago/AGD

इस उपन्यास का अपने पाठकों और आलोचकों पर क्या प्रभाव पड़ा है ये समझने के लिए, 1950 के दशक में जर्मन संघीय गणराज्य के राजनीतिक मूड को समझना पड़ेगा. 1959 में उपन्यास के प्रकाशन के समय, चांसलर कोनराड आडेनावर का पश्चिमी जर्मनी अपने नाजी अतीत से जूझ ही रहा था. नाजी दौर के मुजरिमों और समर्थकों को क्षमादान मिल गया था, यहां तक कि राजनीति और प्रशासन में भी उन्हें ऊंचे पद हासिल हो गए थे.

और तब आया, "द टिन ड्रम,” गुंटर ग्रास का पहला उपन्यास. ग्रास का इससे पहले सिर्फ एक कविता संग्रह छपा था.  वो असल में एक प्रशिक्षित संगतराश (मिस्त्री) और मूर्तिकार थे. किताब ने बम जैसा विस्फोट किया. भद्दी और अलंकारी और विचित्र शैली में लिखा ये उपन्यास अश्लील, खुरदुरा और टेढ़ामेढ़ा था. और इसने तमाम तरह की वर्जनाएं ध्वस्त कर दीं. ऑस्कर मात्सेराठ के नजरिए से ये शताब्दी और दूसरे विश्व युद्ध का पुनरावलोकन है. तीन साल की उम्र में न बढ़ने का फैसला करने वाला ऑस्कर एक छोटी कदकाठी का व्यक्ति है जो अपनी चीख से ही कांच को तोड़ सकता है और जो अपने टिन ड्रम को बजाकर समूचे ऑर्केस्ट्रा की आवाज को डुबो सकता है.

उसके जरिए, ग्रास ने एक अविस्मरणीय साहित्यिक पात्र की रचना की थी.

उपन्यास ग्रास के गृहनगर ग्दान्स्क और पोलैंड में काशबियन जाति समूह के निवास स्थान पूर्वी पोमेरानिया क्षेत्र को भी अपनी श्रद्धांजलि देता है. इन क्षेत्रों पर नाजी जर्मनी ने कब्जा कर लिया था.

ड्रम वाला नन्हा आदमी

उपन्यास एक अजीबोगरीब दृश्य से खुलता है. 1899 के शिशिर के एक ठंडे दिन, आना ब्रोन्स्की आलू के खेल में बैठी है और एक आदमी को पुलिस अधिकारियों से भागता हुआ देख रही है. अपनी चार स्कर्टों की तहों में वो उसे शरण की पेशकश करती है. खुद को गर्म रखने के लिए उसने वे चार स्कर्टें पहनी हैं. छिपने की इस आरामदेह जगह पर योसेफ नाम का वो आदमी,  आग्नेस नाम की लड़की का बाप बनता है.

चौबीस साल बाद वही आग्नेस, ऑस्कर मात्सेराठ की मां बनती है, जो टिन का ड्रम बजाता है और उपन्यास का सूत्रधार भी है. अपनी नन्ही उम्र में ही वो निश्चय करता है कि बड़ा नहीं होगा. (न कद से न उम्र से)

"इसलिए कि नकदी का रजिस्टर खड़खड़ाना न पड़े, मैं अपने ड्रम से ही चिपक गया और अपने तीसरे जन्मदिन के बाद से अंगुली की नोक बराबर भी नहीं बढ़ा, तीन साल का ही बना रहा. तीन गुना ज्यादा स्मार्ट, बड़े कद्दावर लोगों से बहुत नीचे लेकिन उनसे बहुत बेहतर बहुत अव्वल, उनकी छायाओं से अपनी छाया को मापने की जरूरत महसूस नहीं हुई, मैं बाहर से भी और भीतर से भी पूरी तरह परिपक्व था.”

Neueröffnung Günter Grass-Haus Lübeck
गुंटर ग्रास 82 साल की उम्र मेंतस्वीर: picture-alliance/dpa/Gambarini

नन्हा ऑस्कर जमीन से जीवन को देखता है. और अपने इर्दगिर्द के जीवन पर कुशाग्रता और कुटिलता में टिप्पणियां करता है. नाजीवाद के बढ़ते प्रभाव या अपने पिता के नाजी पार्टी में शामिल होने के बारे में या एकदम शुरू से ही दोहरा जीवन जी रही अपनी मां के बारे में, जो नियमित रूप से अपने प्रेमी से मिलने जाती है, जो बाद में उस पर कयामत ढहाएगा. और अपने खुद के पहले यौन अनुभवों के बारे में, दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत को वो कैसे देखता है और इसके बाद युद्ध के मोर्चे पर एक थियेटर में वो कैसे गड़बड़झाला कर देता है, इस सब के बारे में और आखिरकार एक बंद उपचार केंद्र में पहुंचा दिया जाता है.

उसके जीवन का गणित साफ और स्पष्ट है.

"लाइट के बल्लों के नीचे पैदा हुआ, एक ड्रम मिला, कांच तोड़ा, वैनीला को सूंघा, चर्चो में खांसा....रेंगती हुई चींटियों को देखा, ड्रम को दफन किया, पश्चिम की ओर गया, पूरब को खो दिया, पत्थरों पर नक्काशी सीखी, मॉडल की तरह पोज दिया, अपने ड्रम के पास लौटा और कंक्रीट का मुआयना किया, पैसा कमाया, गिरफ्तार हुआ, सजा हुई, जेल में रखा गया और अब जल्द ही आजाद.”

दो विश्व युद्धों की पृष्ठभूमि में ये सब घटित होता है, दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात, हालिया अतीत को सामूहिक तौर पर दफनाने वाले पुनर्निर्माणी फितूर के संदर्भ में भी ये उपन्यास रचा गया है. "द टिन ड्रम” 1950 के दशक की "राज्य को पूरी तरह साफ कर देने की” मानसिकता का भी लेखाजोखा है.

नफरत, प्यार और अंतरराष्ट्रीय ख्याति

"द टिन ड्रम” के साथ विश्वयुद्धोत्तर जर्मन साहित्य विश्व मंच पर लौट आया. 1959 में और भी उल्लेखनीय उपन्यास लिखे गए थे, जैसे कि हाइनरिष बॉएल का "बिलियर्ड्स एट हाफ पास्ट नाइन” और उवे जॉनसन का "स्पेक्युलेशन्स अबाउट याकोब.” लेकिन किसी दूसरी किताब ने ऐसी हलचल नहीं मचाई जैसी कि "द टिन ड्रम” ने.

ग्रास की तरह हान्स माग्नुस एनसेन्सबर्गर भी "ग्रुपे 47” के सदस्य थे. ये एक प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह था जो 1947 में बना था. ग्रुप के सदस्य नियमित रूप से मिलते थे. एनसेन्सबर्गर ने अपनी पहली समीक्षा में लिखा था कि ग्रास के उपन्यास ने "विश्व-स्तरीय साहित्य” का दर्जा हासिल कर लिया है. अपने पहले उपन्यास के साथ ही ग्रास, साहित्य की दुनिया के स्टार बन गए.

लेकिन ग्रास के राजनीतिक रवैये की भी निंदा की गई. किताब में आए अत्यधिक इरॉटिक (कामोद्दीपक) नजारों और चर्च, परिवार और वो सब जो उस दौर में रूढ़िवादियों को पवित्र लगता था, तमाम वर्जनाओं को तोड़ने के लिए भी ग्रास की निंदा की गई. उन्हें लगता था कि ग्रास अश्लील और धर्मद्रोही थे.

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कोलकाता पुस्तक मेले में गुंटर ग्रास. वे कोलकाता में कुछ महीने रहे भी थेतस्वीर: DW

लेकिन शुरुआत से ही, किताब को लेकर आलोचना से ज्यादा उल्लास का माहौल था. कई लेखकों ने, जिनमें उस वक्त के अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि वाले लेखक भी थे, ग्रास को आदरपूर्वक बधाई दी. इन लेखकों में ग्राबिएल गार्सिया मार्केज, नदीन गॉर्डिमर, सलमान रुश्दी और केन्जाबुरो ओई भी शामिल थे. "द टिन ड्रम” के प्रकाशित होते ही, अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम' ने ग्रास को दुनिया का महानतम जीवित उपन्यासकार करार दिया.

1979 में किताब के पहले दो भागों के आधार पर फिल्मकार फोल्कर शोएल्नडॉर्फ ने फिल्म बनाई. किताब की तरह, फिल्म भी खूब सफल रही. कान फिल्म महोत्सव में उसे सर्वोच्च पुरस्कार पाम डी ओर मिला तो ऑस्कर फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म का पुरस्कार.

"द टिन ड्रम” के प्रकाशन के 50 साल बाद, 1999 में जब ग्रास को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला, जूरी ने अपने बयान में लिखा कि ये किताब 20वीं शताब्दी में जर्मन उपन्यास के पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करती है. ये एक अस्पष्ट और अस्थिर सी प्रशंसा थी, मानो ग्रास ने इसके बाद कई सारे और उपन्यास, कहानियां और कविताएं न लिखीं हों. लेकिन ये तो गुंटर ग्रास के दोस्त और लेखक सहकर्मी जॉन इरविंग ने भी माना कि अपने बाद की रचनाओं में ग्रास उस पहले उपन्यास की जैसी गुणवत्ता नहीं हासिल कर पाए. शायद इस टिप्पणी में अवसाद का अंश भी है. ये गौरतलब है कि आज तक, जर्मन भाषी विश्वयुद्धोत्तर लेखकों का साहित्यिक दुनिया पर उतना प्रभाव नहीं पड़ा जितना कि गुंटर ग्रास और उनके "ब्लेषट्रोम्मेल” यानी टिन ड्रम का.

गुंटर ग्रासः द टिन ड्रम, विंटेज/रैंडम हाउस (जर्मन टाइटलः डी ब्लेषट्रोम्मेल), 1959

गुंटर ग्रास (1927-2015) विश्वयुद्धोत्तर जर्मन साहित्य के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सबसे महत्त्वपूर्ण लेखकों में से थे. उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण रचनाओं में डानसिग त्रयी शामिल है, जिसमें "द टिन ड्रम” और "डॉग ईयर्स” के अलावा लघु उपन्यास "कैट ऐंड माउस” भी शामिल है जो 1959 और 1963 के बीच प्रकाशित हुए थे. ग्रास महत्त्वपूर्ण लेखकों के "ग्रुपे 47” के सदस्य थे और कई वर्षों तक राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे. लेकिन वे विवादों में भी रहे. 1999 में उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया और उनके नाम का चयन करने वाली जूरी ने भी उन्हें सार्वजनिक हस्ती के रूप में चिंहित कर उन्हें मान दिया.