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चीन की घुसपैठ से लाचार भारत

६ सितम्बर २०११

भारत-चीन सीमा के विवादित इलाकों में चीन की घुसपैठ बढ़ती जा रही है. भारत के पूर्व सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन के मुताबिक चीन की बढ़ती सैन्य ताकत से भारत लाचार महसूस करने लगा है. यह बातें विकीलीक्स के जरिए सामने आई हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

भारत में अमेरिका के राजदूत टिमोथी रोएमर से दो साल पहले बातचीत में तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने चीन को लेकर कई चिंताएं जाहिर कीं. नारायणन से बातचीत के बाद अमेरिकी राजदूत ने वॉशिंगटन को इस संबंध में रिपोर्ट भेजी. अब यही रिपोर्ट विकीलीक्स ने लीक कर दी है. लीक केबल के मुताबिक नारायणन ने रोएमर से कहा कि भारतीय इलाके में चीन लगातार घुसपैठ करता रहा है. लेकिन इसके बावजूद भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंध ठीक ठाक हैं.

चीन की सैन्य शक्ति को लेकर नारायणन ने अमेरिकी अधिकारी के सामने लाचारगी भी जताई. भारत और चीन के संबंधों पर अपनी राय जाहिर करते हुए नारायणन ने रोएमर से कहा, "सीमा पर चीन की घुसपैठ जारी है. लेकिन घुसपैठ के मामले चिंताजनक स्तर तक नहीं बढ़े हैं." नारायणन के मुताबिक चीन ने सीमा से सटे दुर्गम पहाड़ी इलाकों में सड़क और रेल नेटवर्क खड़ा कर दिया है. इस वजह से चीन को सामरिक फायदा पहुंच रहा है.

इसके उलट भारत में सीमावर्ती इलाकों में अब सड़कें बनाने की कोशिशें हो रही हैं. सीमा के करीब जो सड़कें बनी भी हैं उनका स्तर खराब है. चीन तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक रेल पहुंचा चुका है. चीन की ताकत से लाचार भारत सिर्फ बातचीत पर भरोसा लगाए बैठा है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय से रोएमर ने कहा कि भारत चीन के साथ लगातार बातचीत जारी रखना चाहता है. भारत किसी भी तरह की गलतफहमी और 1962 के युद्ध जैसे हालात पैदा करने वाले हादसों से बचना चाह रहा है. केबल में रोएमर कहते हैं, "वह (नारायणन) द्विपक्षीय संबंधों को ठीक ठाक बता रहे थे. हालांकि चीन के बड़े सैन्य खर्च को लेकर भारत को अब भी चिंताएं हैं."

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1959 में पंडित नेहरू का ल्हासा दौरातस्वीर: Li Jianglin

बदलते सामरिक समीकरण

चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका, जापान, ताइवान, दक्षिण कोरिया और प्रशांत महासागर के कई और देश भी बेचैन हैं. सामरिक मामलों के विश्लेषकों के मुताबिक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने जा रहा चीन अब सैन्य रूप से ज्यादा आक्रामक भी हो गया है. समुद्र पर उसकी सैन्य गतिविधियां तेज हो गई हैं. वह दक्षिणी चीन सागर में अपनी ताकत दिखा रहा है और जापान, फिलीपींस और मलेशिया जैसे देशों को समुद्र में अब डरा रहा है.

हाल ही में चीन से खुद नई पीढ़ी का अत्याधुनिक लड़ाकू विमान विकसित किया है. विमानवाही युद्धपोत के परीक्षण शुरू हो चुके हैं. समुद्र की असीम गहराइयों तक जाने वाली पनडुब्बी भी चीन ने तैयार कर ली है. अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक 10 साल पहले तक चीन को सामरिक उपकरण बनाने में तकनीकी मुश्किलें हो रही थीं लेकिन अब चीन इन बाधाओं से पार पा चुका है. तकनीक के मामले वह अमेरिका और पश्चिमी देशों की बराबरी पर पहुंचने जा रहा है. बीते एक दशक में चीन ने रिकॉर्ड संख्या में सैटेलाइट्स छोड़ी हैं. दुनिया को नहीं पता कि ये सैटेलाइट्स किस काम के लिए भेजी गई हैं.

Flash-Galerie 1959 Lhasa the 14th Dalai Lama escapes to India
1959 में दलाई लामा ल्हासा से भागकर भारत आए. भारत ने शरण दी.तस्वीर: Li Jianglin

क्या है जमीनी हकीकत

भारत और चीन बड़े कारोबारी साझीदार हैं. दोनों देश जानते हैं कि मतभेद उनके विकास को प्रभावित करेंगे. दोनों देशों के नेता बार गलतफहमी से बचने की सलाह देते हैं. बीजिंग नहीं चाहता कि अमेरिका भारत का इस्तेमाल उसके खिलाफ करे. वहीं पाकिस्तान और चीन की दोस्ती भारत की आंखों में चुभती है. नई दिल्ली और बीजिंग के अधिकारी 3,550 किलोमीटर की विवादित सीमा को बातचीत के जरिए सुलझाना चाहते हैं. लेकिन दलाई लामा और अरुणाचल जैसे मुद्दे बार बार गतिरोध पैदा करते हैं.

बीजिंग के इस प्रभाव को कम करने के लिए कई देशों के बीच सामरिक और कूटनीतिक रिश्ते मजबूत होते जा रहे हैं. अमेरिका और भारत एक दूसरे के करीब आ रहे हैं. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश भारत को अत्याधुनिक हथियार, लड़ाकू विमान और अन्य उपकरण बेचने लगे हैं. नाटो भारत को मिसाइल रक्षा प्रणाली देना चाहता है. चीन के तीखे विरोध के बावजूद अमेरिका ताइवान को हथियारों की सबसे बड़ी खेप देने जा रहा है. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान ने सैन्य शक्ति को ज्यादा तरजीह नहीं दी लेकिन अब टोक्यो भी अपनी मानसिकता बदल रहा है.

चीन के खिलाफ एक साथ आने की कोशिश कर रहे देशों में एक दूसरे को लेकर कुछ संशय भी हैं. पश्चिमी देशों में कुछ यह सवाल उठाते हैं कि क्या नई दिल्ली मदद दिए जाने लायक है. भ्रष्टाचार की वजह से भी नई दिल्ली की छवि खराब हुई है. वहीं भारत में अक्सर यह सवाल उठते हैं कि क्या अमेरिका के इतने करीब जाना सही है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: महेश झा

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