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चुनाव में निर्विरोध सीटों पर फिर घमासान

प्रभाकर मणि तिवारी
२१ सितम्बर २०१८

त्रिपुरा में पंचायत उपचुनावों से पहले बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत पर बहस शुरू हो गई है. विपक्ष ने सत्ताधारी भाजपा पर लोकतंत्र पर हमले का आरोप लगाया है. भाजपा ने इसका खंडन किया है.

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Indien Proteste in Tripura
तस्वीर: DW/P. M. Tewari

पश्चिम बंगाल में तो 34 फीसदी पर ही इतना बवाल मचा था, लेकिन अब त्रिपुरा में अपने राज में पंचायतों की 96 फीसदी सीटें निर्विरोध जीतने के बावजूद बीजेपी ने होठ क्यों सिल रखे हैं? बंगाल में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस ने इस सवाल के साथ बीजेपी नेतृत्व को कटघरे में खड़ा कर दिया है. पार्टी अगले साल होने वाले आम चुनावों में इसे बीजेपी के किलाफ एक अहम मुद्दा बनाने की तैयारी में है. दरअसल, बीजेपी ने बीती मई में पंचायतों की 34 फीसदी सीटों पर सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत पर जमकर बवाल किया था और सुप्रीम कोर्ट तक गई थी. वहीं अब अपने शासन वाले पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में पंचायतों के लिए तीन हजार से ज्यादा सीटों पर 30 सितंबर को होने वाले उपचुनाव से पहले ही 96 फीसदी सीटों पर निर्विरोध जीत गई है.

ताजा मामला

त्रिपुरा में बीते मार्च में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपनी सहयोगी इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट आफ त्रिपुरा (आपीएफटी) के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. उसके बाद ही ग्राम पंचायतों व जिला परिषदों के हजारों सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था. इससे खाली होने वाली तीन हजार से ज्यादा सीटों पर 30 सितंबर को उपचुनाव होने हैं. लेकिन नाम वापस लेने की आखिरी तारीख पर बीजेपी उम्मीदवार 96 फीसदी सीटों पर निर्विरोध जीत चुके हैं. विपक्षी राजनीतिक दलों और अलग चुनाव लड़ रही आईपीएफटी ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने कई चुने हुए प्रतिनिधियों से पहले जबरन इस्तीफा दिला दिया और फिर विपक्ष के उम्मीदवारों को नामांकन पत्र दायर नहीं करने दिया.

त्रिपुरा के मुख्य चुनाव आयुक्त जीके राव ने राजधानी अगरतला में बताया कि सत्तारुढ़ बीजेपी त्रिस्तरीय पंचायतों के लिए उपचुनाव में 96 फीसदी सीटों पर निर्विरोध जीत गई है. चुनाव आयुक्त बताते हैं, "30 सितंबर को कुल 3,386 सीटों पर मतदान होना था. लेकिन अब महज 139 सीटों के लिए उपचुनाव होगा. बाकी 3,247 सीटें बीजेपी उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीत ली हैं.” विपक्ष इन चुनावों को टालने की मांग कर रहा है. लेकिन राव ने कहा है कि नामांकन पत्र दायर करने के दौरान हिंसा की कोई सूचना नहीं मिलने की वजह से चुनाव टाले नहीं जा सकते. उनकी दलील है कि किसी भी बीडीओ यानी रिटर्निंग आफिसर के खिलाफ कोई शिकायत नहीं मिली है. पुलिस के खिलाफ भी कोई शिकायत नहीं मिली है.

विपक्ष के आरोप

राज्य के तमाम प्रमुख विपक्षी दलों ने सत्तारुढ़ बीजेपी पर चुने गए जनप्रतिनिधियों से जबरन इस्तीफे दिलाने और फिर उनको दोबारा नामांकन पत्र दायर नहीं करने देने का आरोप लगाया है. इस मुद्दे पर सरकार में साझीदार आईपीएफटी ने बीते सप्ताह बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ धरना-प्रदर्शन किया था. सीपीएम के प्रदेश सचिव बिजन धर ने पत्रकारों से बातचीत में पूरी चुनावी प्रक्रिया को एक धोखा करार दिया है. वह आरोप लगाते हैं, "पहले लेफ्टफ्रंट के जीते हुए प्रतिनिधियों से जबरन इस्तीफा दिलाया गया और उसके बाद हमारे उम्मीदवारों को नामांकन पत्र दायर नहीं करने दिया गया.” एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि अदालत में जाने से कोई फायदा नहीं है. पश्चिम बंगाल के मामले में यह बात साफ हो चुकी है.  सीपीएम के प्रवक्ता व केंद्रीय समिति के सदस्य गौतम दास कहते हैं, "राज्य के चुनावी इतिहास में पहले कभी मुकाबला इतना एकतरफा नहीं रहा. यह सत्तारुढ़ पार्टी की तानाशाही प्रवृति का सबूत है.”

त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बिरजित सिन्हा ने विपक्षी उम्मीदवारों को दी जाने वाली धमकियों को लोकतंत्र पर हमला करार दिया है. सिन्हा कहते हैं, "राज्य में ऐसी घटनाएं अभूतपूर्व हैं. हथियारबंद युवा हमारी पार्टी के नेताओं के घरों पर हमले कर रहे हैं. पूरे राज्य में कानून व व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती जा रही है.” कांग्रेस नेता का आरोप है कि बीजेपी ने अपनी सहयोगी आईपीएफटी के उम्मीदवारों को भी नामांकन दायर नहीं करने दिया.

चुनाव आयोग ने तो विपक्ष के आरोपों को ठुकरा ही दिया है, सत्तारुढ़ बीजेपी ने भी इन आरोपों को निराधार करार दिया है. प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता मृणाल कांति देब कहते हैं, "विपक्ष ने कहीं उम्मीदवार नहीं दिया था. नतीजतन बीजेपी उम्मीदवार निर्विरोध जीत गए.” उनका दावा है कि विपक्ष की सांगठनिक ताकत बिखर गई है और मतदाताओं ने उसे (विपक्षी दलों को) खारिज कर दिया है.

बंगाल में आरोप-प्रत्यारोप

त्रिपुरा में चुनाव से पहले इतनी भारी सीटों पर बीजेपी की निर्विरोध जीत से बंगाल में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस औप उसके (बीजेपी के) बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है. अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले राज्य में इन दोनों दलों के बीच कटुता पहले से ही बढ़ रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य में लोकसभा की 42 में से कम से कम 22 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. तृणमूल कांग्रेस ने पार्टी पर जवाबी हमला करते हुए 96 फीसद सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों की जीत पर सवाल खड़ा किया है. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम सवाल करते हैं, "बीजेपी अब अपनी इस जीत पर चुप क्यों है? जब तृणमूल कांग्रेस ने यहां पंचायतों की 34 फीसद सीटें निर्विरोध जीती थीं तब तो वह हिंसा का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट तक गई थी. लेकिन अब वह क्या कहेगी?”

तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं कि शीशे के घरों में रहने वालों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए. वह व्यंगात्मक लहजे में कहते हैं, "जब तृणमूल कांग्रेस निर्विरोध जीतती है तो वह हिंसा की वजह से होता है और जब बीजेपी जीतती है तो वह लोकतंत्र की जीत होती है. बीजेपी व दूसरे विपक्षी दलों को बचकाना तर्क देने से बचना चाहिए.” दूसरी ओर, बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस के आरोपों पर सफाई देते हुए कहा है कि त्रिपुरा में पंचायत चुनावों के लिए नामांकन के दौरान कहीं से हिंसा की कोई खबर नहीं मिली है. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस को इन दोनों चुनावों में घालमेल नहीं करना चाहिए. त्रिपुरा में हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई है.” बंगाल के पंचायत चुनावों में लगभग 34 फीसद सीटों पर तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों के निर्विरोध जीतने के बाद सीपीएम व बीजेपी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर चुनाव रद्द करने की मांग की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बीते महीने उक्त याचिकाएं खारिज कर दिया था.

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