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चूहों के कारण खतरे में पड़े कोरल रीफ

१२ जुलाई २०१८

दिखने में खूबसूरत और समुद्री इकोसिस्टम में संतुलन बनाए रखनी वाले कोरल रीफ यानी मूंगा चट्टानों को चूहों से खतरा है. दरअसल, चूहों के तटीय इलाकों में दखल से समुद्री जीवों के खान-पान पर असर पड़ रहा है.

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तस्वीर: imago/Zumapress

ऑस्ट्रेलियाई और ब्रिटिश रिसर्चों की एक रिपोर्ट बताती है कि जिन तटीय इलाकों में चूहे रहते हैं, वहां कोरल को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता. तटीय इलाकों में चूहों का आना इंसानों की वजह से हुआ है. हिंद महासागर में कागोस द्वीप समूह पर 12 जगहों पर यह रिसर्च की गई जिससे चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. 

तटीय इलाकों में चूहों का मुख्य भोजन पक्षी या उनके अंडे होते हैं. इनकी आबादी बढ़ने से पक्षी कम हो रहे हैं. इसी वजह से पक्षियों के मल-मूत्र से कोरलों और मछलियों को मिलने वाला पोषण कम हो गया है. कोरलों के लिए पक्षियों का मल खाने का मुख्य स्रोत होता है. ऐसे में पक्षियों की घटती संख्या का सीधा असर कोरलों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.  

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शोध के लिए चुने गए द्वीपों पर नॉडीज़ या टर्न्स जैसी पक्षी पाए जाते हैं जिनका चूहे आमतौर पर शिकार करते हैं. लैनकास्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक निक ग्राहम के नेतृत्व में हुए इस शोध में पाया गया कि जिन छह द्वीपों पर चूहों की आबादी अधिक थी वहां प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन का स्तर उन द्वीपों से 251 गुना कम था जहां चूहे नहीं हैं. पक्षियों के मल में मिलने वाली नाइट्रोजन कोरलों के लिए मुख्य पोषक तत्व है. जिन 6 द्वीपों पर चूहे नहीं थे वहां मछलियों की आबादी भी 48 फीसदी अधिक थी और समुद्री पक्षियों की संख्या 760 गुना पाई गई.

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शोधकर्ताओं के मुताबिक, पक्षियों के मल में मौजूद फॉसफोरस से कोरल गर्मी का मुकाबला बेहतर तरीके से कर पाते हैं. 2015 से 2016 के बीच किए गए इस शोध में पाया गया कि 2016 में कोरलों के साइज में 75 फीसदी की गिरावट हुई है. 

स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट की जीव विज्ञानी नैंसी नोवॉल्ट का कहना है कि समुद्र के अंदरुनी इकोसिस्टम में संतुलन बनाए रखने वाले कोरलों को बचाने की जरूरत है और इसके लिए तटीय इलाकों में चूहों की आबादी को कम करना होगा.

वीसी/एके (डीपीए)

खतरे में ग्रेट बैरियर रीफ