1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

छोटा दिमाग बड़ी समझदारी

६ फ़रवरी २०११

पिछले 30 हजार सालों में इंसान का दिमाग लगातार सिकुड़ता जा रहा है. इसका मतलब ये नहीं कि हम दिमागी रूप से कमजोर हो रहे हैं बल्कि रिसर्च में पता चला है कि विकास के क्रम में छोटा होता दिमाग इंसानों को स्मार्ट बना रहा है.

https://p.dw.com/p/10BXt
तस्वीर: AP

होमो सेपियन्स से आधुनिक मानव तक का सफर तय करने में इंसान के दिमाग का आकार करीब 10 फीसदी छोटा हो गया. यानी कभी 1500 क्यूबिक सेंटीमीटर के दिमाग का आकार अब घटकर 1359 क्यूबिक सेंटीमीटर रह गया है. महिलाओं का दिमाग पुरुषों के मुकाबले छोटा होता है और उनके दिमाग के आकार में भी इतनी ही कमी आई है. यूरोप, मध्य पूर्व और एशिया में मिली मानव खोपड़ियों के अवशेष की छानबीन करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं.

Körper mit Organen Computergrafik
तस्वीर: picture-alliance/chromorange

अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के जॉन हॉक्स बताते हैं, "मैं तो कहूंगा कि विकास के क्रम में पलक झपकते ही दिमाग का आकार छोटा हो गया." हालांकि दूसरे वैज्ञानिक दिमाग के सिकुड़ने को ज्यादा हैरतअंगेज नहीं मानते. उनके मुताबिक हम जितने बड़े और मजबूत होंगे हमारे शरीर पर नियंत्रण के लिए उतने बड़े दिमाग की जरूरत होगी. आधुनिक इंसान से ठीक पहले का इंसान यानी निएंडरथाल मानव करीब 30 हजार साल पहले अज्ञात कारणों से खत्म हो गया. निएंडरथाल मानव आधुनिक मानव की तुलना में काफी बड़े आकार के थे और उनका दिमाग भी उतना ही बड़ा था. करीब 17000 साल पहले इंसान की जो प्रजाति थी वो क्रो मैग्नस के नाम से जानी जाती है. क्रो मैग्नस ने गुफाओं में बड़े बड़े जानवरों की पेंटिंग बनाई और उनका दिमाग होमो सेपियंस की सारी प्रजातियों में सबसे ज्यादा बड़ा था. क्रो मैग्नस अपने बाद की पीढ़ी के मुकाबले ज्यादा ताकतवर भी थे.

Schimpansen im Zoo von Lucknow
तस्वीर: UNI

मिसौरी यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डेविड गियर कहते हैं कि ये विशेषताएं पर्यावरण के खतरों के बीच खुद को बचाए रखने के लिए जरूरी थीं. उन्होंने 19 लाख साल से लेकर 10 हजार साल पुराने इंसान की खोपड़ियों में हुए विकास का अध्ययन किया है. ये तो सब को पता ही है कि हमारे पूर्वजों को एक बेहद जटिल सामाजिक वातावरण में जीना पड़ा. गियर और उनकी साथियों ने अपने रिसर्च के दौरान देखा कि आबादी बढ़ने के साथ ही दिमाग का आकार घटता गया. गियर कहते हैं, "जटिल समाज के उभरने के साथ ही इंसान के दिमाग का आकार छोटा होता गया क्योंकि तब इंसान को जीवन के लिए ज्यादा संघर्ष की जरूरत नहीं पड़ती थी और उसने जीना सीख लिया था." हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस विकास का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि इंसान बेवकूफ होता चला गया बल्कि उसने बुद्धि के विकास से जीने के आसान तरीके सीख लिए. ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ब्रायन हारे ने समझाते हुए कहा, "यहां तक कि चिम्पैंजियों में भी दिमाग का आकार बड़ा था, इसी तरह भेड़ियों की तुलना में कुत्तों का दिमाग छोटा पर ज्यादा चालाक, लचीला और समझदार होता है, साफ है कि दिमाग के आकार से समझदारी का फैसला नहीं होता."

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः महेश झा