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अवैध चंदे के चलते एएफडी पर जुर्माना

महेश झा
२३ अप्रैल २०१९

जर्मनी में यूरोपीय चुनावों से पहले चुनावी चंदे का मामला गरमा रहा है. धुर दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी पर अवैध चंदे के लिए जुर्माना हुआ है तो मर्सिडीज कंपनी ने इस साल पार्टियों को चंदा नहीं देने का फैसला किया है.

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Parteispende
तस्वीर: Imago/Steinach

जर्मनी में चुनावी खर्च पर कोई रोक नहीं है, लेकिन पार्टियों के आमदनी और खर्च के हिसाब पर बड़ी सख्ती है. इसी सख्ती के चक्कर में जर्मनी में पिछले सालों में धूमकेतु की तरह उभरने वाली धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलांड एएफडी आ गई है. राष्ट्रीय संसद के प्रशासन ने एएफडी पर अवैध चुनावी चंदा लेने के लिए 400,000 यूरो से ज्यादा का जुर्माना किया है. इसके पहले संसद ने पार्टी के दो नेताओं को एक स्विस कंपनी से मुफ्त विज्ञापन लेने का दोषी पाया गया था जिसे संसद ने अवैध चंदा माना.  इसके पहले पार्टी के सह अध्यक्ष योर्ग मौयथन और यूरोपीय संसद के उम्मीदवार गीडो राइल ने 2016-17 में विज्ञापन कंपनी गोल एजी से करीब 1,34,000 यूरो का मुफ्त विज्ञापन कराने की बात स्वीकार की थी. उन्हें इस रकम का तिगुना चुकाना पड़ेगा. पार्टी ने संसद अध्यक्ष के फैसले को राजनीति प्रेरित बताया है और फैसले के खिलाफ अपील करने की बात कही है.

सारा मामला एएफडी के लिए मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि अब बर्लिन का अभियोक्ता कार्यालय पार्टी के खजांची के खिलाफ जांच कर रहा है. पार्टी पर जर्मनी के पार्टी कानून को तोड़ने का आरोप है और वित्तीय मामलों में इसके पालन की जिम्मेदारी खजांची की होती है. जिम्मेदार पाए जाने पर उसे ही सजा भी भुगतनी होगी. आरोप ये है कि पार्टी ने 2016 और 2017 में संभवतः आय और खर्च का गलत ब्यौरा दिया. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बाडेन वुर्टेमबर्ग के प्रांतीय चुनावों में श्टुटगार्ट के एक संगठन ने स्विट्जरलैंड के गोल एजी के साथ मिलकर एएफडी के समर्थन में प्रचार किया, जिसे पार्टी के खर्च में नहीं दिखाया गया.

आधुनिक पार्टी कानून

जर्मनी के पार्टी कानून को अत्यंत आधुनिक माना जाता है, क्योंकि पार्टियों को संस्था चलाने के लिए सदस्यता फीस और चंदे के अलावा सरकारी अनुदान भी मिलता है. सरकारी अनुदान प्रादेशिक, राष्ट्रीय और यूरोपीय चुनावों में मिलने वाले वोटों के आधार पर दिया जाता है. फ्रांस के विपरीत जहां पार्टियां कारोबारी घरानों से चदा नहीं ले सकती, जर्मनी में राजनीतिक काम करने के लिए पार्टियों को चंदा लेने की अनुमति है. ये चंदा मामूली रकम से लेकर करोड़ों में हो सकता है. प्राइवेट लोगों को 7,500 यूरो चंदा देने की अनुमति है तो सरकारी या सार्वजनिक हिस्सेदारी वाली कंपनियों से चंदा लेने की मनाही है. विदेशी 1,000 यूरो से ज्यादा का चंदा नहीं दे सकते. इतना ही नहीं 500 यूरो से ज्यादा चंदा देने वालों का नाम सार्वजनिक करना होता है.

Deutschland CDU-Parteivorsitz Helmut Kohl hier mit Merkel und Schäuble
संदेह के बादलतस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Athenstädt

पार्टियों को चलाने के लिए इन चंदों का बहुत महत्व है, लेकिन जर्मनी में बड़े चंदों ने पार्टियों की मदद करने के बदले उनका नुकसान ही किया है. और चंदा देनी वाली कंपनियों को भी बदनामी ही झेलनी पड़ी है. पार्टियों वाले लोकतंत्र के समर्थन के लिए उद्योग जगत की प्रशंसा के उदाहरण शायद ही मिलेंगे. इसकी वजह जर्मनी के इतिहास में विभिन्न पार्टियों से जुड़े अवैध चंदा कांड रहे हैं. शुरुआत फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी से हुई थी. तत्कालीन चांसलर हेल्मुट कोल से जुड़े एक अवैध चंदा कांड में किसी को सजा नहीं मिली. कोल ने सजा की धमकी और अपनी छवि की परवाह किए बिना चंदा देने वाले का नाम बताने से मना कर दिया था. हाल के दिनों में एएफडी पर आरोप लग रहे हैं, जिनमें अवैध चंदा लेना और चंदा देने वालों के बारे में गलत जानकारी देने के आरोप शामिल हैं. 50,000 यूरो से ज्यादा चंदे के बार में पार्टियों को ये जानकारी फौरन संसद के प्रशासन को देनी पड़ती है.

चंदा देने का फैसला

शायद ताजा चंदा कांड के कारण ही जर्मनी के प्रमुख कार निर्माता कंपनी मर्सिडीज ने इस साल किसी पार्टी को चंदा न देने का फैसला किया है. पिछले साल कंपनी ने जर्मन संसद में शामिल पार्टियों को 3,20,000 यूरो चंदे में दिया था. इस साल कंपनी ने फैसला किया है कि चंदे में दी जाने वाली राशि शिक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, वैज्ञानिक शोध, कला और संस्कृति से संबंधित प्रोजेक्टों के लिए दी जाएगी. चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू के एक नेता ने इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे गैरजिम्मेदाराना और लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह बताया है. वामपंथी पार्टी डी लिंके ने इसी महीने संसद में वार्षिक चंदे की राशि की सीमा घटाकर 25,000 यूरो करने की अर्जी दी है. जर्मनी के पार्टी कानून के अनुसार किसी उम्मीद में या आर्थिक या राजनीतिक लाभ के लिए पार्टियों को चंदा देने पर रोक है. अगर कोई कंस्ट्रक्शन कंपनी किसी पार्टी को ऐसे इलाके में चंदा देती है जहां वह आने वाले समय में निर्माण करना चाहती है तो यह चंदा अवैध होगा. इसलिए मर्सिडीज जैसी बड़ी कंपनियां चंदे की राशि सभी पार्टियों में बांट देती है.

उद्योग और राजनीति के रिश्तों में चंदे और स्पॉन्सरिंग की अहम भूमिका है. अकसर कानून में कमियों का इस्तेमाल कर चंदा देने वाले का नाम सार्वजनिक किए जाने से बचने की कोशिश होती है. राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली संस्था लॉबीकंट्रोल का कहना है कि इस समय भ्रष्टाचार के कई रूप हैं. सरकारी कामकाज को प्रभावित करने के लिए लॉबीइस्ट मंत्रालयों में काम करते हैं, वे विशेषज्ञता के नाम पर कानून लिखने में सरकारी अधिकारियों की मदद कर रहे हैं या उनकी जगह ले रहे हैं, औद्योगिक संस्थान सुधारों के नाम पर राजनीतिक मांगों के समर्थन में अभियान चलाते हैं और सांसदों को कंपनियों में काम देकर अतिरिक्त आमदनी कराई जाती है. लॉबीकंट्रोल संस्था पार्टी कानून में सुधारों की मांग कर रही है ताकि पार्टियों को लॉबी ग्रुपों का प्रभाव से मुक्त किया जा सके.