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जीतना होगा इस्लाम की व्याख्या का संघर्ष

शबनम सुरिता
१ जून २०१५

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सिसी इस हफ्ते जर्मनी आ रहे हैं. ग्रैहम लूकस का कहना है कि चांसलर अंगेला मैर्केल उनसे जानना चाहेंगी कि इस्लामी कट्टरपंथ से निबटने और मानवाधिकारों के मुद्दों पर वे क्या कर रहे हैं.

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IS Soldaten
तस्वीर: picture alliance/ZUMA Press/Medyan Dairieh

उग्रपंथी इस्लाम से निबटने के राष्ट्रपति अल सिसी के प्रयास जगजाहिर हैं. दशकों से मुस्लिम ब्रदरहुड की ओर से होने वाली हिंसा और उथल पुथल की पृष्ठभूमि में अत्यंत धार्मिक स्वभाव वाले अल सिसी को विश्वास है कि उग्रपंथी इस्लाम उनके देश के भविष्य के लिए गंभीर खतरा है. उन्होंने देश के धार्मिक नेताओं को भी धर्म की व्याख्या की उनकी जिम्मेदारी की ओर ध्यान दिलाया है. उन्होंने जनवरी में ही कहा, "अतिवादी सोच पूरी दुनिया के लिए चिंता, खतरे, हत्या और बर्बादी का स्रोत बन गया है."

अल सिसी का दृष्टिकोण सम्मान का हकदार है क्यों कि वे मुस्लिम बहुमत वाले पहले देश के नेता हैं जिन्होंने इस्लामी कट्टरपंथ के खतरे पर इतना खुलकर बोला है. उन्होंने इसका समाधान भी साफ कर दिया है. उनकी उम्मीद है कि मिस्र के इस्लामिक अध्येता स्कूलों, मस्जिदों और मीडिया में सही शांतिपूर्ण और अहिंसक इस्लाम को बढ़ावा देकर हिंसक जिहादियों के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व करेंगे. दूसरे शब्दों में मुख्य धारा के मुसलमानों को धर्म की व्याख्या पर नियंत्रण हासिल करना होगा. अल सिसी की टिप्पणी दिखाती है कि वे अपने पूर्वगामी होस्नी मुबारक के विपरीत समझ गए हैं कि धार्मिक दलीलों की जीत जरूरी है.

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ग्रैहम लूकस का कहना है कि मुस्लिम बहुमत वाले देशों को अल सिसी का समर्थन करना होगा.

इस मुद्दे पर अस सिसी की तारीफ के बावजूद यह कहना होगा कि उनका रवैया दोषपूर्ण है, शायद घातक रूप से. 2013 में एक सैनिक विद्रोह में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी का तख्ता पलट करने के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड के 1400 सदस्यों को फांसी की सजा दी जा चुकी है. इसके अलावा उन्होंने सेना और पुलिस की ताकत का इस्तेमाल मुर्सी के समर्थकों को दबाने के लिए किया है. फांसी की सजा आम तौर पर शहीद पैदा करती है और अधिक उपद्रवों का कारण बनती है. इसलिए अल सिसी प्रबुद्ध इस्लाम की वकालत के लिए स्पष्ट पसंद नहीं हैं, जिसमें माफी का अहम स्थान है.

फिर भी 1000 साल पुराने अल इजहर मस्जिद के विद्वानों की मदद से युवा पीढ़ी के दिल और दिमाग जीतने का राषट्रपति अल सिसी का प्रयास महत्वपूर्ण कदम है. अल अजहर के संस्थानों में साढ़े चार लाख छात्र पढ़ते हैं, जिनमें से बहुत से एशिया और अफ्रीका के देशों से आते हैं. जहां तक सुन्नी समुदाय का सवाल है, इस्लामिक शिक्षा के क्षेत्र में अल अजहर का प्रभाव बेमिसाल है. यह अपने आप में अत्यंत अहम है क्योंकि हाल के वर्षों में हुए आतंकी हमलों का स्रोत अल कायदा, इस्लामिक स्टेट या तालिबान जैसे सुन्नी समुदायों से जुड़े संगठन हैं. इन संगठनों ने न सिर्फ पश्चिमी देशों के ठिकानों पर हमला किया है, बल्कि शिया और दूसरी धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाया है.

अल अजहर के विद्वानों के समक्ष अल सिसी के भाषण के बाद इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों के प्रचारों और धार्मिक दृष्टिकोणों का विश्लेषण शुरू हुआ है. स्कूलों की किताबों के टेक्स्ट की समीक्षा की जा रही है. इसमें संदेह नहीं कि इस काम में सालों लगेंगे, लेकिन कम से कम एक शुरुआत हुई है. यह ऐसी लड़ाई है जिसे सिर्फ मिस्र के दायरे में बंद नहीं रखा जा सकता. दूसरे मुस्लिम बहुमत वाले देशों को अल सिसी का समर्थन करना होगा, हालांकि सऊदी अरब का समर्थन संदेहपूर्ण है. इस लड़ाई का भविष्य मुस्लिम देशों का भविष्य तय करेगा.