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क्या यूरोप वापस आ सकेंगे आईएस लड़ाके?

१९ फ़रवरी २०१९

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का कहना है यूरोपीय देशों को अपने उन नागरिकों को वापस लेना चाहिए जो आईएस की तरफ से लड़ रहे थे और इसी दौरान कुर्दों ने उन्हें बंदी बना लिया.

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Syrien | Syrien atlässt zum Ende des Ramadan IS-Gefangene
तस्वीर: Reuters/G. Tomasevic

ट्रंप का ये संदेश उनके चिरपरिचित और धमकी भरे अंदाज में आया है. लेकिन माने या न माने अमेरिकी राष्ट्रपति की ये मांग काफी हद तक सही भी है. ट्रंप कह रहे हैं कि यूरोपीय देशों को अपने उन नागरिकों को वापस लेना चाहिए जो आईएसआईएस की तरफ से लड़ रहे थे और इसी दौरान कुर्दों ने उन्हें सीरिया में बंदी बना लिया था. स्थानीय कुर्दिश प्रशासन लंबे समय से उत्तरी सीरिया में बंद सैकड़ों यूरोपीय लड़ाकों को वापस लेने की बात कर रहा है.

लेकिन कुर्दिश प्रशासन की मांग को अब तक जानबूझ कर यूरोपीय देश नकराते रहे हैं, लेकिन अब सीधे-सीधे अमेरिकी व्हाइट हाउस ने इसमें दखल दिया है.

DW Kommentarbild Matthias von Hein

उत्तरी सीरिया की सलाखों में जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन की सैकड़ों महिलाएं भी बंद हैं. इनमें से कई के बच्चे भी हैं. वे बच्चे जो आईएस के क्षेत्र में पैदा हुए. वहीं अब सीरिया के बागुज में आईएस का किला ढहने के बाद अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये संख्या और बढ़ेगी.

कुर्दिश प्रशासन पर बोझ

उत्तरी सीरिया में बंद ऐसे कैदी कुर्दिश प्रशासन के लिए भारी बोझ बन गए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की सीरिया से अमेरिकी फौजों को निकालने की योजना स्थानीय प्रशासन पर और भी बोझ डाल सकती है. वहीं अमेरिकी फौजों का सीरिया से निकलना देश के अल्पसंख्यक कुर्दिश समुदाय के भविष्य पर भी कई सवाल खड़े कर रहा है. दरअसल सीरिया में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य साथी रही है कुर्दिश पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट (वाईपीजी).

वाईपीजी सीरिया में कुर्दिश समाज की आजादी के लिए लड़ रही है. इस टुकड़ी को सीरिया के उत्तरी पड़ोसी मुल्क तुर्की एक आतंकवादी संगठन करार दे चुका है. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान सीरिया में वाईपीजी के नेतृत्व में लड़ रहे कुर्दिश समुदाय की आजाद होने की उम्मीदों को जल्द से जल्द खत्म करना चाहते हैं. 

कयास लगाए जा रहे हैं कि जैसे ही अमेरिका सीरिया से हटेगा, वैसे ही तुर्की सीमा से 30 किमी की चौड़ाई वाला एक सिक्योरिटी कॉरिडोर (गलियारा) बना लेगा. लेकिन कुर्द समुदाय की सबसे अहम रिहायशी बस्तियां और यहां तक की उनकी जेलें भी इसी इलाके में हैं. इसी कॉरिडोर को बनाने की आशंका के बीच कुर्दों के लिए सबसे बड़ा समस्या अपने अस्तित्व को बचाने की हो जाएगी. इसके बाद ही वे गौर करेंगे कि इस्लामिक स्टेट के बंदी लड़ाकों का ख्याल कैसे रखा जाए.

Syrien Baghus  - Familie wartet mit Gepäck vor einem gepanzerten Fahrzeug
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Hamam

जहां तक इस मुद्दे की बात है, जर्मनी मुद्दे का हल निकालने की बजाए औपचारिकताओं में छुपता रहा है. इस उम्मीद में कि इस समस्या को नकारने से ही यह समस्या अपने आप सुलझ जाएगी. जर्मनी के विदेश मंत्री ने हाल में एक टालने वाला बयान दिया था. विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया कि वह सीरिया में 2012 से दूतावास बंद होने के चलते किसी को भी कॉन्सुलर सेवाएं मुहैया नहीं हो सकती हैं. साथ ही उत्तरी सीरिया में अब तक कुर्दों के साथ किसी भी तरह के राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए गए हैं.

ढुलमुल रवैया

तमाम विवादों के बीच सच्चाई तो यही है कि कोई भी देश दर्जनों आईएस लड़ाकों को वापस लेने का इच्छुक नहीं है. लेकिन यूरोपीय देशों का ये रुख किसी अंजाम तक नहीं पहुंचेगा क्योंकि इस पूरे मसले में शामिल लोगों पर यूरोप को फैसला लेना ही होगा.

जर्मनी एक ऐसा देश है जो कानून के शासन पर चलता है. ऐसे जर्मन नागरिक जो किसी आतंकवादी संगठन से भी जुड़े रहे हैं उनके पास भी अपने देश में अधिकार हैं. उनके पास वापस आने का अधिकार भी है. अपराध और दोषी साबित करने के लिए जर्मनी में हर एक को व्यक्तिगत रूप से दोषी साबित करना होगा. कुल मिलाकर बात यही है कि ये लोग जर्मन समाज से निकले हैं. उनमें यही कट्टरता पैदा की गई जिनसे अब हमें निपटना होगा.

शायद यहां कुछ नए समाधान निकाले जा सकें. मसलन अगर आईएस सदस्यों को द हेग की अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए? तमाम संभावनाओं के बीच एक बात को तो निश्चित है कि उत्तरी सीरिया को यूरोप की ग्वांतानामो जेल नहीं बनाया जा सकता.

ग्वांतानामो जेल अमेरिका की एक ऐसी जेल है जो अकसर मानवाधिकारों हनन के चलते सुर्खियों में रही है. कहा जाता है कि इस जेल में कोई कानून नहीं चलता और आरोपी को अपराधी से ज्यादा खतरनाक माना जाता है. अमेरिका स्वयं यह मानता है कि ग्वांतानामों में कैदियों पर जुल्म ढाया जाता है.

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