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ट्रेन से उतरने के लिए मिले पैसे

२३ अप्रैल २०११

शुक्रवार को उत्तरी जर्मनी में एक फास्ट ट्रेन में इतनी भीड़ चढ़ गई कि उन्हें उतारने के लिए रेल अधिकारियों को कूपन बांटने पड़े. जर्मनी में इस समय ईस्टर वीकेंड चल रहा है, जिस कारण ट्रेन में इतनी भीड़ जम हो गई.

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तस्वीर: AP

यह ट्रेन फ्रेंकफर्ट से सिल्ट की ओर जा रही थी. सिल्ट जर्मनी और डेनमार्क की सीमा पर एक छोटा सा द्वीप है जो यूरोपीय सैलानियों में बेहद लोकप्रिय है. जर्मन रेलवे के एक अधिकारी ने बताया कि ट्रेन को म्युन्स्टर में रोकना पड़ा क्योंकि उसमें जरूरत से ज्यादा लोग सवाह हो गए थे, "ट्रेन इतनी भरी हुई थी कि उसे सुरक्षा कारणों से रुकवाना पड़ा. कई लोग रास्ते में खड़े थे, जिस कारण आपात दरवाजे भी जाम हो गए थे." अधिकारी ने बताया कि भीड़ को ध्यान में रखते हुए पुलिस को भी बुलाया गया लेकिन पुलिस के हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं पड़ी.

रेल अधिकारी के अनुसार इस तरह के कूपन आम तौर पर नहीं दिए जाते हैं, लेकिन यह घटना अनोखी थी, "बिना रिजर्वेशन के यात्रा कर रहे लोगों से हमने उतरने को कहा. पहले वो हिचक रहे थे, लेकिन फिर उन्होंने सहमति दिखाई." लेकिन लोगों यू ही ट्रेन से उतरने के लिए तैयार नहीं हुए, इस सभी लोगों को 25 यूरो यानी 1500 रुपये के कूपन मिले और साथ ही अगली ट्रेन की मुफ्त यात्रा भी.

जर्मनी में ट्रेन का टिकट खरीदते वक्त सीट रिजर्व करना अनिवार्य नहीं होता. बगैर रिजर्वेशन के यात्रा कर रहे लोग जो भी सीट उपलब्ध हो उस पर बैठ सकते हैं. इसी कारण रेल अधिकारी यह अंदाजा नहीं लगा पाए कि इस ट्रेन की क्षमता से ज्यादा ही टिकट बिक गए थे.

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तस्वीर: AP

छुट्टियों के साथ मौसम भी शानदार

जर्मनी में शुक्रवार को गुड फ्राइडे की छुट्टी के बाद सोमवार को भी ईस्टर की छुट्टी होती है. चार दिन की छुट्टी मिलने पर हर कोई अपने परिवार के साथ मिल कर ईस्टर मनाना चाहता है. इसीलिए आमतौर पर छुट्टी के पहले दिन चारों ओर अफरा तफरी दिखती है.

ट्रेनों का भरा होना या हाइवे पर दस दस किलोमीटर लम्बे जाम लगना इस दिन कोई नई बात नहीं है. लेकिन इस साल मौसम ने भी लोगों के जोश को बढ़ा दिया. आम तौर पर ईस्टर मार्च में होता है, जब जर्मनी में हल्की ठण्ड होती है. इस साल ईस्टर तो देर से आया ही, साथ ही अप्रैल में ही गर्मियों जैसा मौसम भी हो गया. 25 डिग्री के तापमान में भला जर्मन बीच पर जाने का मौका कैसे गंवा सकते हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया

संपादन: एम रंजन