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समाज

मरने के बाद भी रहेंगे जिंदा

२८ नवम्बर २०१८

अब कब्रगाहों से जुड़ी ऐप और समाधियों पर लिखे क्यूआर कोड लोगों को मरने के बाद भी वर्चुअल दुनिया में जिंदा रखेंगे.ये कोड लोगों को मरने वालों के बारे में बताएंगे, लेकिन जानकारों को डाटा सुरक्षा की चिंता सताने लगी है.

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Symbolbild: Moderne Trauerkultur -Der digitale Abschied
तस्वीर: picture-alliance/H. Kaiser

अकसर आपने अपने फोन और वेबसाइड पर 'क्यूआर' कोड बने देखे होंगे. सफेद पृष्ठभूमि पर काले रंग के चौकोर डिब्बे जैसे बनी ऐसी आकृतियां क्यूआर कोड कहलाती हैं, जिसे इमेजिंग डिवाइस मसलन कैमरे या फोन से पढ़ा जा सकता है. ये कोड उपभोक्ताओं को सही वेबसाइट पर ले जाने के लिए अकसर डिजिटल विज्ञापनों में नजर आते हैं. लेकिन अब ऐसे कोड समाधियों और कब्रों पर भी नजर आ रहे हैं.

कब्र पर लगे पत्थरों पर अमूमन नाम, जन्म और मरण की तारीख जैसी थोड़ी बहुत जानकारी ही होती है. लेकिन अब इन क्यूआर कोड से जुड़ी वेबसाइट एक ऐसा वर्चुअल स्पेस है जहां रिश्तेदार और दोस्त मरने वाले व्यक्ति से जुड़ी कहानियां, फोटो और यादें साझा कर सकते हैं. इसके अलावा अंतिम संस्कार के वक्त दिए गए श्रद्धांजलि संदेश को भी पढ़ा जा सकता है.

Symbolbild: Moderne Trauerkultur -Der digitale Abschied
तस्वीर: picture-alliance/B. Weissbrod

इस मामले में जर्मन लोग फिलहाल पीछे हैं. एसोसिएशन ऑफ जर्मन सेमिट्री एडमिनिस्ट्रेटर्स के मीडिया प्रभारी मिषाएल सी अल्ब्रेश्ट कहते हैं, "हम पांच साल से क्यूआर कोड के बारे में बात कर रहे हैं लेकिन वे वास्तव में स्वीकार नहीं हुए हैं." अअल्ब्रेश्ट कहते हैं, "महज कोड होना ही काफी नहीं है, आपको एक वेबसाइट बनानी होती है जिसमें समय और कौशल लगता है. मरने वाले व्यक्ति के परिवारजनों को शायद ही इसमें रुचि हो."

मरने वाले की निजता का सवाल

राइन-माइन यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर गेर्ड मैर्के कहते हैं, "डाटा सुरक्षा भी इसमें एक बड़ा मुद्दा है. कुछ कब्रिस्तान प्रबंधक मानते हैं कि क्यूआर कोड डाटा सुरक्षा से जुड़े जरूर दिशा निर्देशों का हनन कर सकता है." मैर्के एक दिलचस्प सवाल मरने वाले के अधिकारों को लेकर भी उठाते हैं. उन्होंने कहा, "मरने के बाद भी व्यक्ति के निजी अधिकार बने रहते हैं, बस कानूनी रूप से वे बाध्यकारी नहीं होते."

क्रबों से जुड़ी ऐप

जर्मनी में ऐसे क्यूआर कोड फिलहाल कब्रगाह से काफी दूर हैं, लेकिन इस बीच एक ऐप "वेयर दे रेस्ट" काफी पॉपुलर हो गई है. इसे जर्मन राज्य बर्लिन-ब्रांडनब्रुर्ग में फाउंडेशन ऑफ हिस्टोरिक ग्रेवयार्ड ने शुरू किया था, जो यूजरों को सेलिब्रिटी लोगों की कब्रों और समाधि स्थल का रास्ता दिखाता है और उनकी जिंदगी के बारे में जानकारी देता है. आज यह ऐप 32 शहरों की तकरीबन 1,200 समाधियों और 45 कब्रिस्तानों की जानकारी देता है, जिन्हें असलियत में या वर्चुअली देखा जा सकता है. इस ऐप को बनाने के पीछे विचार था कि मैप, तस्वीरें, ऑडियो गाइड का इस्तेमाल कर इसे इतिहास के पाठ की तरह इस्तेमाल किया जा सके.

शांति भंग होगी?

अब सवाल कब्रिस्तान की शांति का आता है. अल्ब्रेश्ट कहते हैं, "कब्रिस्तान की संस्कृति स्थिर नहीं है बल्कि यह लगातार विकसित हो रही है. यहां आने वाले लोग हाथ में फोन के साथ आते हैं लेकिन वह यहां की शांति को भंग नहीं करते हैं." उन्होंने कहा कि ये अच्छा है कि लोगों में कब्रगाहों को लेकर जागरुकता बढ़ रही है और अब कुछ कब्रगाह पब्लिक टूर भी कराते हैं. ऐप को लेकर उन्होंने कहा, "ये कब्रगाहों की सांस्कृतिक महत्ता को बनाए रखने में मदद करता है." अल्ब्रेश्ट मानते हैं कि समय के साथ इन कब्रगाहों को भी नई तकनीक के इस्तेमाल में परहेज नहीं करना चाहिए, जब तक कि इससे कोई तंग नहीं होता. यह सारी कोशिशें मरने के बाद भी प्रियजनों को वर्चुअल दुनिया में लंबे समय तक जिंदा रखने की हैं.

      

टोर्स्टेन लांड्सबेर्ग/एए