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तालिबान से महिला अधिकारों की उम्मीद

४ नवम्बर २०१९

अफगान महिलाओं के पास एक ही उम्मीद है कि तालिबान शांति की खातिर उनके अधिकारों का सम्मान करे. अफगानिस्तान में किसी राजनीतिक दल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला फौजिया कोफी यही मानती हैं. क्या सचमुच ऐसा हो सकता है?

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Fauzia Kofi afghanische Frauenrechtlerin Afghanistan
तस्वीर: Getty Images

1996 से 2001 के बीच शासन के दौरान तालिबान ने अफगानिस्तान पर मध्युगीन विचारधारा और जीवनशैली थोप दी. सवाल अब ये उठता है कि बीते दौर में वे कितना बदले हैं. महिलाओं के राजनीति में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया गया या फिर सार्वजनिक मंचों से बयान देने को रोका गया. इतना ही नहीं काम करने, स्कूल जाने और बिना किसी पुरुष सदस्य को साथ लिए घर से निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. उन पांच सालों के दौरान महिलाएं बुर्के और घर की चारदीवारी के पीछे सिमट गईं हैं. 

दशकों से चले आ रहे संघर्ष को खत्म करने के साथ फौजिया कोफी का मिशन यह सुनिश्चित करना है कि महिलाओं को देश के लोकतांत्रिक हिस्से में सही जगह मिल सके. यह एक तरह से घाव भरने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है. फौजिया ने इस साल तथाकथित अंतर-अफगान वार्ता के पहले दो दौर में हिस्सा लिया, जिसका मकसद तालिबान के प्रतिनिधि, सरकार में शामिल अफगान और नागरिक समाज को साथ लाकर दशकों से जारी जंग को समाप्त करने का रास्ता ढूंढना था.

कोफी कहती हैं, "इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है. कई दूसरी महिलाओं की तरह मेरी भी यही चिंता है, खास तौर से जब बात महिला अधिकारों को लेकर तालिबान की समझ पर आती है."

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini

कोफी को उम्मीद है जल्द ही शांति बहाल होगी. वो कहती हैं, "हमारे लोगों ने चार दशकों से ज्यादा युद्ध झेला है. मुझे लगता है कि सभी की इच्छा गरिमा बढ़ाने वाली शांति की है. इसलिए मेरे पास आशावादी होने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है."

अफगानिस्तान संसद के निचले सदन की पहली महिला डिप्टी स्पीकर कोफी के चीन में होने वाले तीसरे दौर की वार्ता में शामिल होने की संभावना है. बातचीत के दो दौर मॉस्को और कतर में हुए थे.

क्या वाकई तालिबान उदारवादी हो गया

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी पर तालिबान के साथ डील की कोशिशों के साथ-साथ ये वार्ता जारी है. अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना 2001 से ही तैनात है. अमेरिका और तालिबान के बीच वार्ता फिलहाल रद्द है लेकिन उम्मीद है कि बातचीत जल्द शुरू होगी. तालिबान ने सरकार से बातचीत करने से मना कर दिया है. तालिबान सरकार को अमेरिकी सरकार की कठपुतली करार देता है. यही वजह है कि अंतर-अफगान वार्ता जिसमें सरकारी अधिकारी निजी हैसियत से शामिल हुए, देश को चलाने के तरीकों और सत्ता में साझेदारी पर चर्चा के लिए रास्ता तलाशने का मुख्य जरिया बन सकती है. अहम सवाल यह है कि क्या तालिबान इतना बदल चुका है कि वह नई पीढ़ी की आकांक्षाओं को स्वीकार कर सके. वो पीढ़ी जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साये में उदार शासन के दौरान बढ़ी हुई हो.

कोफी से जब पूछा गया कि क्या वो सोचती हैं कि तालिबान ने अपने कट्टरपंथी रवैये में बदलाव लाया है तो कहती हैं, "बदलाव एक व्यापाक परिभाषा है. कुछ सामाजिक मुद्दों पर उनके विचार शासन के दौर से अब अलग नजर आते हैं. हालांकि उनको इन सब पर सार्वजनिक रूप से अमल करना होगा जिससे यह समझा जा सके कि वे अफगानिस्तान के विकास में बाधक नहीं होंगे."

'राजनीतिक मौजूदगी'

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तस्वीर: Getty Images

हाल-फिलहाल में तालिबान ने खुद को और अधिक उदारवादी के तौर पर पेश किया. कोफी ने इस्लाम का हवाला देते हुए कहा कि उनका धर्म व्यापार और स्वामित्व, विरासत, शिक्षा, काम, अपने पसंद का पति चुनने, सुरक्षा और कल्याण जैसे क्षेत्र में अधिकार देता है.

कोफी, जिनके पास जेनेवा स्कूल ऑफ डिप्लोमेसी से मास्टर्स डिग्री है, यह देखने का इंतजार नहीं करना चाहती कि पुरुष महिलाओं की आकांक्षाओं को जगह देते है या नहीं. खुद को महिला अधिकार की पैरोकार बताने वाली कोफी ने द मूवमेंट ऑफ चेंज फॉर अफगानिस्तान के नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई है. पार्टी देश की राजनीति में एक बड़ा हिस्सा चाहती है. वे कहती हैं कि उनकी पार्टी का उद्देश्य सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं है बल्कि आधी आबादी के हितों को बढ़ावा देना है. उनका कहना है कि दर्जन भर से ज्यादा दल बड़े पैमाने पर इसकी अनदेखी करते आए हैं.

कोफी कहती हैं, "हमें समाज के हर क्षेत्र में अच्छे और प्रतिनिधि करने वाले पक्ष की जरुरत है. हमें सत्ता में महिलाओं की राजनीतिक मौजूदगी की जरुरत है ताकि हम अपनी उस उपस्थिति को सार्थक बनाने के लिए इस ढांचे में दाखिल हो सके." अफगानिस्तान की राजनीति को लेकर उन्हें कोई भ्रम नहीं है. कोफी कहती हैं कि मतदाताओं की उम्मीदें बहुत हैं लेकिन बार बार उनके विश्वास के साथ समझौता हुआ है.

एए/एनआर (रॉयटर्स)

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