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तेल टैंकरों पर हमले में "सरकारी ताकत" का हाथ

७ जून २०१९

यूएई में चार तेल टैंकरों पर हुए हमले के लिए विदेशी सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया है. यूएई, सऊदी अरब और नॉर्वे की संयुक्त जांच में दावा किया गया है कि चार तेल टैंकरों पर हुए हमले किसी देश की सरकार ने कराए थे.

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Emirate  Fujairah Hafen
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K. Jebreili

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के नेतृत्व में हो रही जांच के शुरुआती नतीजों के मुताबिक, हमले "एक ताकत, जिसके पास अहम ऑपरेशनल क्षमता है, उसने मंझे और सुनियोजित तरीके से ये हमले किए. पूरी संभावना है इनके पीछे एक सरकारी ताकत है."

यूएई, सऊदी अरब और नॉर्वे के प्रतिनिधियों ने एक साझा बयान में संयुक्त राष्ट्र से यह भी कहा कि, "इन हमलों के लिए खुफिया क्षमता की जरूरत थी ताकि कई किस्म के 200 समुद्री जहाजों के बीच चार टैंकरों को चुना जाए." हमला 12 मई को अमीरात के बंदरगाह वाले शहर फुजाइरा में हुआ. रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों को दी गई है. रिपोर्ट के मुताबिक हमले के लिए "तेज नावों के एक्सपर्ट नेवीगेशन" की जरूरत थी. ऐसी नावें जो तेजी से यूएई की जलीय सीमा में दाखिल हों और विस्फोटकों को चिंगारी देने के बाद हमलावरों को तेजी से निकाल लें."

Saudi-Arabien Raffinerie Ras Tanura
रियाद प्रांत में तेल पाइप लाइन और स्टेशनतस्वीर: Reuters/A. Jadallah

अमेरिका चार ऑयल टैंकरों पर हुए हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहरा रहा है. जिन टैंकरों पर हमला हुआ उनमें दो सऊदी अरब के थे और एक नॉर्वे का. तेहरान ने आरोपों का खंडन किया है. टैंकरों पर हमले के हफ्ते भर बाद ईरान के कट्टर प्रतिद्ंवद्वी सऊदी अरब ने भी तेहरान पर दो पाइपलाइन स्टेशनों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है. सऊदी अरब के मुताबिक रियाद प्रांत में दो पाइपलाइन बूस्टर स्टेशनों को विस्फोटकों से भरे ड्रोनों से निशाना बनाया गया. हमले की जिम्मेदारी यमन में सक्रिय हूथी विद्रोहियों ने ली है. हूथी विद्रोहियों के ईरान से रिश्ते हैं.

2017 में डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के बाद से ईरान और अमेरिका के रिश्ते ज्यादा बिगड़े हैं. 2015 में ट्रंप ईरान के साथ हुए परमाणु करार से अमेरिका को बाहर निकाल चुके हैं. परमाणु करार ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच सदस्यों व जर्मनी के बीच हुआ था. मई 2018 में परमाणु करार को तोड़ने के बाद अमेरिका ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए.

प्रतिबंधों के तहत ईरान के साथ तेल या अन्य किस्म का कारोबार करने वाली कंपनियों पर अमेरिका कार्रवाई करेगा. पाबंदियों की सीधी मार ईरान के तेल उद्योग पर पड़ी है. बीते तीन साल में ईरान तेल बेच कर काफी कमाई कर रहा था. वॉशिंगटन और इस्राएल का आरोप है कि ढील से ईरानी अर्थव्यवस्था को जो फायदा हुआ, उसका इस्तेमाल इलाके को अस्थिर करने के लिए किया गया. ईरान इन आरोपों से इनकार करता है. वह अमेरिकी प्रतिबंधों का डट कर मुकाबला करने का एलान कर चुका है.

जर्मन विदेश मंत्री का दौरा

अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ती जा रही तल्खी के दौरान जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास मध्य पूर्व का दौरा कर रहे हैं. मास 2015 के परमाणु समझौते को बचाना चाहते हैं. चार दिन के मध्य पूर्व दौरे में 10 जून को जर्मन विदेश मंत्री ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ से मिलेंगे. ढाई साल बाद यह पहला मौका होगा जब जर्मन सरकार का कोई मंत्री तेहरान जाएगा.

जर्मन विदेश मंत्रालय के मुताबिक, मास ईरान को परमाणु बम विकसित करने से रोकना चाहते हैं. ईरान मई में एलान कर चुका है कि अब वह संवर्धित यूरेनियम को देश के बाहर नहीं भेजेगा, बल्कि देश में ही यूरेनियम का और उच्च संवर्धन करेगा. परमाणु बम बनाने के लिए उच्च संवर्धित यूरेनियम की जरूरत होती है.

तेहरान पहुंचने से पहले मास, संयुक्त अरब अमीरात के साथ यमन पर चर्चा करेंगे. यमन में सऊदी अरब और यूएई के समर्थन वाली सरकार व ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों के बीच संघर्ष छिड़ा हुआ है. जर्मन विदेश मंत्री जॉर्डन भी जाएंगे.

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(इन देशों पर अमेरिका ने लगा रखे हैं प्रतिबंध)

ओएसजे/एमजे (डीपीए)