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किस ओर जा रहा है तेल का धनी वेनेजुएला

निधि सुरेश
२५ जनवरी २०१९

वेनेजुएला पिछले कुछ सालों से दुनिया के लिए चिंता का विषय है. आखिरकार वेनेजुएला न सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा तेल भंडार है बल्कि इस साल उसे पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की अध्यक्षता भी करनी है.

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Kombibild Venezuela Maduro und Guaido
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Becerra/R. Pena

वेनेजुएला के पास अत्यंत महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन तेल की भरमार है, फिर भी ये देश भीषण गरीबी और अशांति का सामना कर रहा है. राष्ट्रपति निकोला मादुरो को नेशनल असेंबली के अध्यक्ष खुआन गुआइदो ने फिर से चुनाव कराने के लिए चुनौती दे दी है और खुद को वेनेजुएला का राष्ट्रपति घोषित कर दिया है. खुआन गुआइदो को दुनिया के बड़े बड़े देशों का समर्थन मिला है जिसमें सबसे बड़ा नाम है अमेरिका.

अमेरिका के इस समर्थन के लिए राष्ट्रपति निकोला मादुरो ने अमेरिका के साथ अपने सारे राजनीतिक और राजनयिक संबंध तोड़ दिए हैं और अमेरिकी कंसुलर स्टाफ को 72 घंटे में वेनेजुएला से निकलने को कहा है.

इसके विपरीत खुआन गुआइदो ने सभी देशों के राजनयिकों को रुकने को कहा है. अमेरिका ने भी निकोला मादुरो की बात को नकारते हुए कहा कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं, वे देश की नई सरकार के साथ संपर्क में रहेंगे. वेनेजुएला में आगे क्या होता है, इस पर पूरी दुनिया की नजर है.

क्यों घुटनों पर गिरा वेनेजुएला

वेनेजुएला में शांति केवल वेनेजुएला के लोगों के लिए नहीं, बल्कि तेल बाजार के लिए भी बहुत जरूरी है. अमेरिका और वेनेजुएला एक दूसरे के ऊपर तेल के कारोबार के लिए निर्भर हैं और वेनेजुएला के पास दुनिया का बड़ा तेल भंडार है. हर साल पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक में रोटेशन के हिसाब से नए अध्यक्ष का चुनाव होता है. इस साल ये पद वेनेजुएला के तेल मंत्री को मिलने वाला है. इसलिए वेनेजुएला पर संयुक्त राष्ट्र की भी नजर है.

क्या हुआ वेनेजुएला में

एक समय में लैटिन अमेरिका का सबसे अमीर देश माना जाने वाला वेनेजुएला आज ऐसी बुरी हालत में पहुंच गया है. आर्थिक हालत खराब है, महंगाई आसमान छू रही है और लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं. आलोचकों का कहना है कि ये सब भ्रष्टाचार और सरकार के कुप्रबंध की वजह से हो रहा है. सरकार का कहना है कि ये सब तेल की गिरती कीमतों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से हो रहा है.

जब 2013 में मादुरो राष्ट्रपति बने तो वेनेजुएला पहले से ही परेशानी झेल रहा था और 2014 में तेल के दामों में भारी गिरावट से परेशानी और बढ़ गई.

इस गिरावट की वजह से कारोबार को भारी नुकसान पहुंचा. तभी से महंगाई की शुरुआत हुई. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि देश में महंगाई की दर 2019 में 1 करोड़ प्रतिशत तक पहुंच जाएगी. सबसे बड़ी गलती वेनेजुएला से यह हुई कि उसने तेल के कारोबार पर निर्भरता खत्म नहीं की.

होश उड़ा देगी वेनेजुएला की महंगाई

देश की 95 प्रतिशत आय तेल के निर्यात से आती है. तेल के दाम गिरने की वजह से देश में विदेशी मुद्रा की कमी हो गई जिसकी वजह से आयात करना भी बहुत मुशकिल हो गया. इन सबकी वजह से महंगाई आसमान छूने लगी और लोगों का रोजमर्रा का समान या खाना खरीदना भी मुश्किल हो गया.

बिगड़ती हालत

सरकार ने हालात सुधारने के लिए नोट छापना शुरू कर दिया और मुद्रा का अवमूल्यन करके उसे क्रिप्टोकरेंसी पेट्रो से जोड़ दिया. इसे दुनिया के बहुत से अर्थशास्त्रियों ने बहुत ही मूर्खतापूर्ण कदम माना था. इसके साथ सरकार ने न्यूनतम मजदूरी को 34 गुना बढ़ा दिया. इन कदमों के बाद निवेशकों ने वेनेजुएला से दूरी बनाना ही अच्छा समझा.

अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ी, तो लोगों ने परेशान होकर देश छोड़ना शुरू कर दिया. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, 2014 के बाद से तीस लाख से अधिक लोग देश से जा चुके हैं और 2019 के अंत तक इस आकड़े के 53 लाख तक पहुंचने की संभावना है.

विपक्ष ने खुआन गुआइदो को समर्थन देकर देश को आशा दी है और जिस तरह से उन्हें दुनिया के प्रमुख देशों का समर्थन मिला है उससे लगता है कि वेनेजुएला बड़े बदलाव की तरफ बढ़ रहा है. गुआइदो ने अपने समर्थकों से पहले ही कह दिया है, "हम जानते हैं कि इसके कुछ परिणाम होंगे." देखना ये होगा कि परिणाम क्या होंगे और सेना का समर्थन पाने वाले निकोला मादुरो आगे क्या करते हैं.

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