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दलित कारोबारी नहीं चाहते आरक्षण

१६ अक्टूबर २०१२

उनके चेहरे खास आत्मविश्वास है. उद्यमियों के ड्रेस कोड के तहत कीमती काले कोट और पैंट के साथ लाल टाई. उनमें से कुछ बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज से आए और लखनऊ के सबसे महंगे होटल में ठहरे.

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तस्वीर: DW

हजारों बरस तक छुआछूत जैसी अमानवीय प्रथा के शिकार रहे और गांव के दक्षिण में बसाए जाते रहे दलित भी किसी इलीट या उद्योगपति से कम नहीं हैं. इस कुंठा से निकलने के लिए ही शायद दलित उद्योगपतियों ने डिक्की (दलित इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) शुरू की है. हाल ही में इसके यूपी चैप्टर की लखनऊ में शुरूआत हुई .शायद इसी का नतीजा था कि डिक्की के यूपी चैप्टर की शुरूआत के समय बैकड्रॉप में नौकरी मांगने वाले नहीं देने वाले बनो स्लोगन लिखा गया. डिक्की में उत्तर प्रदेश के करीब 74 दलित उद्योगपतियों ने अपना रजिस्ट्रेशन भी करा लिया.

डिक्की के संस्थापक और अध्यक्ष मिलिंद काम्बले ने कहा 'दलितों में राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक नेतृत्व तो मौजूद है लेकिन व्यापारिक नेतृत्व का अभाव है. डिक्की इसी जरूरत को पूरा करेगी.' वर्ष 2005 में डिक्की की स्थापना हुई थी. अब तक इसके आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र चैप्टर खुल चुके हैं और पूरे देश में करीब 3000 सदस्य बन चुके हैं.

डिक्की के मेंटर और दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद ने कहा कि कोई भी समाज जो कठिन दौर से गुजरता है, संघर्ष करता है, एक दिन तरक्की करता है. उन्होंने कहा, "मारवाडि़यों को देखिए, जो राजस्थान-गुजरात की ड्राई धरती और मरुस्थल में पैदा हुए. पारसियों को देखिए जो ईरान से आए, सिंधी जो सिंध से आए. इन सब ने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष किया और संपन्न बने. अब दलितों का समय है, हम व्यापार में अपनी क्षमताओं से आगे बढ़ रहे हैं." एक सवाल के जवाब में चंद्रभान प्रसाद ने कहा कि मायावती सरकार दलित उत्थान के लिए अपने अतीत में हुए अन्याय को कोसती रहीं. हम कास्ट को कैपिटल से शिकस्त देना चाहते हैं.

Dalit Indian Chamber of Commerce in Lucknow
लखनऊ में दलित इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स की बैठकतस्वीर: DW

ज्यादातर दलित कारोबारियों ने नौकरियों में आरक्षण का विरोध किया. इनका कहना था कि आम तौर पर लोग मानते हैं कि दलित नरेगा का मजदूर है, बीपीएल कार्ड धारक है और बिना आरक्षण के कुछ नहीं कर पाएगा. डिक्की के यूपी चैप्टर के औपचारिक शुरुआत के बाद पूरा दिन इन दलित उद्योगपतियों की कामयाबी की कहानियां सुनाई गईं.

डिक्की के अध्यक्ष मिलिंद काम्बले ने स्वीकारा भी, "हम भी बाबा साहब अम्बेडकर की तरह सूट पहनते हैं. अंग्रेजी बोलते हैं. हम आरक्षण के बल पर नहीं, अपने दम पर आगे बढ़ना चाहते हैं." डिक्की के इस कार्यक्रम में देश भर से आए दलित कारोबारियों का आत्मविश्वास देखते ही बन रहा था. कोई डेढ़ करोड़ रुपये टर्न ओवर वाली कम्पनी का मालिक है तो कोई 25 करोड़ रुपये टर्न ओवर वाली का. इस आयोजन में ऐसे जुमले बार बार आए कि दलित उद्यमी मिनरल वॉटर बना रहे हैं, मिनरल वाटर प्लांट बना रहे हैं.

प्रसाद कहते हैं कि कभी दलितों के हाथ का छुआ न खाने वाले आज उनका बनाया पानी पी रहे हैं. नैनो, पल्सर, हीरो होंडा बनाने में हमारी भागीदारी है. ऐसी एक एक बात, एक एक उपलब्धि पर जम कर तालियां बजीं. ये डिक्की की ही कोशिश है कि केंद्र ने सरकारी खरीद का चार प्रतिशत दलित कारोबारियों से खरीदने का निर्णय किया है. टाटा मोटर्स में भी यही व्यवस्था की गई है.

डिक्की का मकसद देश के दलित कारोबारियों को एक मंच पर लाकर मुख्य धारा में शामिल करना है. अभी इसके 16 चैप्टर हैं. मुंबई में हाल ही में हुए इसके ट्रेड फेयर में आदि गोदरेज, रतन टाटा जैसे लोगों ने शिरकत की.

रिपोर्टः एस वहीद, लखनऊ

संपादनः ए जमाल

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