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देख नहीं सकती, तो क्या हुआ!

प्रिया एसेलबोर्न (संपादनः ए कुमार)२५ मार्च २०१०

वह घुड़सवारी करती हैं, हिमालय के ऊंचे से ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ती हैं, समाज की कमियों को सामने लाती हैं, लोगों को जागरुक बनाती हैं, उनकी आंखें खोलती हैं. लेकिन सब्रिए तेनबेर्कन खुद देख नहीं सकती हैं.

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माइक्रोफोन से कैसा डरनातस्वीर: DW/ Matthias Müller

सब्रिए 12 साल की उम्र से दृष्टिहीन हैं. वैसे उन्होंने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं माना. पढ़ाई ने उन्हें तिब्बत पहुंचाया, जहां पर उन्होंने दृष्टिहीन तिब्बतियों के लिए लिपी का अविष्कार किया. 40 साल की सब्रिए अपने बारे में कहतीं हैं कि वह काफी मुहंफट हैं और हर बात का जवाब दे सकती हैं. उनका मानना है कि जिन चीज़ों को शायद नकरात्मक ढंग से देखने में तकलीफ होती है, उन्हें कोई सकरात्मक ढंग से देखना क्यों शुरू नहीं कर सकता.

दृष्टिहीनता कमजोरी नहीं

सेब्रिए इस बात से बहुत चिढ़ती हैं जब कोई दृष्टिहीन लोगों को बेचारा समझकर अफसोस जताना शुरू कर देता है. वह कहती हैं दृष्टिहीनता कोई बीमारी नहीं है बल्कि उनके अंदर तो ऐसे गुण हैं, जो हो सकता है, देखने वाले लोगों के अंदर नहीं हैं. उनके मुताबिक, "मेरा संदेश यह है कि मैं दृष्टिहीन लोगों को समाज के बिल्कुल केंद्र में लाना चाहती हूं. मैं और मेरे साथी दृष्टिहीन लोगों के प्रति अजीब तरह के डर को भी कम करना चाहते हैं. मै यह दिखाना चाहती हूं कि दृष्टिहीन होना किसी व्यक्ति की विशेषता तो हो सकती है, लेकिन कमज़ोरी नहीं. बल्कि इसे एक अवसर के रूप में देखना चाहिए.

Sabriye Tenberken
सब्रिए और उनका खूबसूरत गाइडतस्वीर: picture-alliance/dpa

सब्रिए ने बॉन में तिब्बत की भाषा और संस्कृति, दर्शनशास्त्र और नृशास्त्र की पढाई की. 27 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार तिब्बत की यात्रा की और उसी वक्त उन्हें उससे प्रेम हो गया. हल्के सुनहरी बाल और नीली आंखों वाली सब्रिए ने तब बौध धर्म को भी अपनाया. सब्रिए को बहुत इज्जत मिली कि उन्होंने इतनी शिक्षा हासिल की और वह आत्मनिर्भरता से अपनी ज़िंदगी जी रहीं हैं.

सब्रिए को जब तिब्बती दृष्टिहीन बच्चों से होने वाले व्यवहार के बारे में पता चला तो उन्हें बहुत धक्का लगा. वह बताती है, "तिब्बत आकर मेरी मुलाकात ऐसे मां बाप से हुई जो अपने बच्चों को हाथ नहीं लगा सकते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि उन बच्चों के अंदर जो भूत या राक्षस हैं, वे उनपर आ जाएंगे. शुरू में तो मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि मै कुछ बोलूं. मुझे लगता था कि एक विदेशी होने के नाते मैं कौन होती हूं कि मै उन लोगों से बोलूं कि वे अपनी परंपराएं बदलें."

हम किसी से कम नहीं

2004 में सब्रिए ने एक महत्वकांक्षी प्रॉजेक्ट तैयार किया. वे छह दृष्टिहीन छात्रों के साथ 7100 मीटर ऊंचे लख्पा री पर चढना चाहती थीं. इस ऐक्सपेडीशन पर फिल्म भी बनीं. लेकिन 6400 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर मौसम खराब हो गया और वे शिखर पर नहीं पहुच पाईं. वह कहती हैं, "कौन कहता है कि हमने सफलता नहीं पाई. ठीक है, हम शिखर पर नहीं पहुंचे. लेकिन फिर भी जो बच्चे हमारे साथ थे, उन्होंने समझा कि उनकी दुनिया कैसी है, उन्होंने अपनी दुनिया फिर से अपने लिए हासिल की. उन्होंने सीखा कि दृष्टिहीन होने के बावजूद, मैं कैसे सुरक्षित ढंग से इस बहुत ही मुश्किल क्षेत्र में आगे बढ़ सकता हूं और कैसे मैं इस मानवरोधी जगह को समझने के लिए अपनी सभी इंद्रियों का इस्तेमाल कर सकता हूं."

Sabriye Tenberken in einer Blindenschule in Tibet
तिब्बती दृष्टिहीनों के लिए तैयार की खास लिपीतस्वीर: picture-alliance / dpa

सब्रिए तिब्बत में बस गईं. नीदरलैंड्स के पौल क्रोननबर्ग के साथ मिलकर उन्होंने दृष्टिहीन बच्चों के लिए स्कूल खोला. साथ ही उन्होंने तिब्बती भाषा में दृष्टिहीन लोगों के लिए विशेष तरह की ब्राईल लिपी का अविष्कार किया, जो तिब्बत के दृष्टिहीनों के लिए औपचारिक लिपी बन गई है. सब्रिए कमरों बंद रखे जाने वाले बच्चों को पढा पाईं, उन्हें जीने का सहारा दे पाईं और वे बच्चे इस तरह समाज का कीमती सदस्य बने. तिब्बतियों के दमन के आरोप झेलने वाली चीनी सरकार ने उन्हें भी तंग नहीं किया.

लोकप्रियता का फायदा

इस तरह खासकर पश्चिमी देशों में सब्रिए बहुत लोकप्रिय हो गईं. वे कहतीं हैं कि अपने प्रति मीडिया के आकर्षण को वह सकारात्मक तरीके से देखती हैं. कम से कम इससे उन्हें अपने काम के लिए आर्थिक मदद जुटाने में सहायता तो मिल सकती है. वे यह भी कहतीं हैं कि जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों में शायद दृष्टिहीन लोगों के लिए शिक्षा पाने के लिए ज़्यादा अवसर हों, लेकिन उन्हें लेकर जो पूर्वाग्रह हैं, उन्हें पूरी तरह दूर कर पाना मुश्किल है. 2005 में सब्रिए को शांति नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. कुछ समय पहले उनके संगठन ब्राईल विद आउट बोर्डर्स ने केरल में भी स्कूल खोला, जहां पर दुनियाभर के दृष्टिहीन और युद्ध की वजह से सदमा झेल रहे लोगों को शिक्षा दी जाती है.

Szenenbild von dem Film Blindsight
हिमालय की चढाई जैसे मुश्किल काम भी सब्रिए तेनबेर्कन खूब कर चुकी हैंतस्वीर: blindsightthemovie

सब्रिए को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि वह किसी भी चीज़ के लिए कोशिश करने से डर सकती हैं. लेकिन हंसते हंसते वे कहतीं हैं कि कार चलाना वे ट्राई नहीं करेंगी.