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नकल मारने के मामले में गुटेनबर्ग को राहत

२४ नवम्बर २०११

नकल मार कर पीएचडी की थीसिस छापने वाले जर्मनी के पूर्व रक्षा मंत्रा कार्ल थिओडर त्सू गुटेनबर्ग को बड़ी राहत मिल रही है. अभियोजन पक्ष ने गुटेनबर्ग के खिलाफ कॉपीराइट अधिकार के उल्लंघन की जांच बंद कर दी है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

पूर्व रक्षा मंत्री पर कॉपीराइट अधिकार का उल्लंघन करने का आरोप है और 20,000 यूरो का जुर्माना मांगा गया है. लेकिन मंगलवार को अभियोजन पक्ष ने मामले की जांच बंद कर दी. माना जा रहा है कि जांच बंद होने से गुटेनबर्ग की राजनीति में वापसी की संभावना बन सकेगी.

अभियोजन पक्ष के मुताबिक कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में बहुत ज्यादा दम नहीं है. जांचकर्ताओं का कहना है कि गुटेनबर्ग ने थीसिस के जिन 23 हिस्सों की नकल की, वह व्यावसायिक रूप से बहुत फायदेमंद नहीं है. जांचकर्ताओं ने यह भी पाया कि पूर्व रक्षा मंत्री ने नकल का इस्तेमाल व्यावसायिक फायदे के लिए नहीं किया.

जर्मनी में वित्तीय लेन देन से जुड़े मामले में पर्याप्त सबूत न मिलने पर जांच बंद करना समान्य प्रक्रिया है.

कार्ल थिओडर त्सू गुटेनबर्ग जर्मन चासंलर अंगेला मैर्केल के भरोसेमंद माने जाते थे. लेकिन मार्च में थीसिस की नकल मारने के चक्कर में उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. एक अखबार ने गुटेनबर्ग की पीएचडी थीसिस का सच ढूंढ निकाला. रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व रक्षा मंत्री ने किसी पूर्व पीएचडी छात्र की थीसिस का बड़ा हिस्सा नकल किया. गुटेनबर्ग ने वास्तविक थीसिस लिखने वाले के नाम का जिक्र तक नहीं किया.

असल थीसिस लिखने वाले ने गुटेनबर्ग पर कॉपीराइट का आरोप लगाया और हर्जाना भरने को कहा. बाद में गुटेनबर्ग ने 20,000 यूरो कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद के लिए दान दिए.

हालांकि 39 साल के गुटेनबर्ग अब भी नकल के आरोपों से इनकार करते हैं. वह यह जरूर स्वीकार करते हैं कि थीसिस में उन्होंने कुछ 'भयानक गलतियां' कीं. बायरॉएत यूनिवर्सिटी गुटेनबर्ग से डॉक्टोरल की उपाधि छीन चुकी है. यूनिवर्सिटी के मुताबिक गुटेनबर्ग ने स्त्रोत को उचित सम्मान न देकर मानकों का उल्लंघन किया. यूनिवर्सिटी के कदम के बाद गुटेनबर्ग पर नैतिक दवाब इतना बढ़ा कि उन्हें रक्षा मंत्री का पद छोड़ना पड़ा.

इस्तीफे के बाद लंबे वक्त गुटेनबर्ग गुमनामी में रहे. लेकिन हाल के दिनों में वह सार्वजनिक तौर पर सामने आने लगे हैं. अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि क्या गुटेनबर्ग अपने राजनीतिक करियर को फिर से जीवित तो नहीं करना चाह रहे हैं.

अमेरिकी थिंक टैंक द सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज ने उन्हें सितंबर में नियुक्त किया और ट्रांस अटलांटिक वार्तालाप पहल का अगुवा बनाया. बीते हफ्ते वह कनाडा में एक सुरक्षा सम्मेलन में दिखाई पड़े, जर्मन प्रेस ने सम्मलेन को बेहद प्रमुखता से कवर किया.

रिपोर्ट: एपी/ओ सिंह

संपादन: एन रंजन