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समाज

नहीं रुक रही है किसानों की खुदकुशी

क्रिस्टीने लेनन
३ मार्च २०१७

किसानों की आत्महत्या को लेकर महाराष्ट्र बदनाम है लेकिन देश के दूसरे राज्यों में भी स्थिति कमोबेश यही है. मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने स्वीकार किया है कि हाल के दिनों में कई किसानों ने खुदकुशी की है.

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तस्वीर: Murali Krishnan

किसानों को बेहतर सुविधा देने का दम भरने वाली मध्य प्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों ने स्वीकार किया है कि फसल खराब होने और कर्ज न चुका पाने की वजह से भी उनके किसान आत्महत्या कर रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले लगभग 3 महीने में ही 287 किसानों एवं कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की है. वहीं राजस्थान सरकार ने भी माना है कि विभिन्न कारणों से अपनी जान देने वाले किसानों की संख्या पिछले आठ सालों में 2800 से ज्यादा है.

चिंताजनक तस्वीर

मध्यप्रदेश में प्रतिदिन औसतन तीन किसान एवं कृषि मजदूर विभिन्न कारणों से अपना जीवन समाप्त कर रहे हैं. मध्यप्रदेश विधानसभा में लिखित जवाब में गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ठाकुर ने ये जानकारी दी है. भूपेंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि प्रदेश में 16 नवंबर, 2016 के बाद से प्रश्न पूछे जाने के दिन तक यानी लगभग तीन महीने की अवधि में कुल 106 किसान और 181 कृषि मजदूरों ने मौत को गले लगाया है. सरकार के मुताबिक फसल खराब होने या कर्ज नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्या करने वालों की संख्या पूरे प्रदेश में मात्र एक है. किसानों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले अलीराजपुर में सामने आए हैं. वहीं कृषि मजदूरों की आत्महत्याओं के मामले में बड़वानी सबसे ऊपर है.

विधानसभा में किसान आत्महत्या पर सरकार से लगातार सवाल करने वाले विधायक रामनिवास रावत ने डॉयचे वेले से बात करते हुए कहा, "नोटबंदी के बाद किसानों की दुर्दशा और बढ़ी है." उनका दावा है कि हर रोज राज्य के 5 किसान खुदकुशी कर रहे हैं.

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किसानों के साथ साथ मजदूरों की भी चिंताजनक हालततस्वीर: DW/P. Mani Tewari

राजस्थान में भी बदहाल किसान

राजस्थान विधानसभा में सरकार द्वारा दिए गए आंकड़े भी किसानों की बदहाली की तस्वीर पेश करते हैं. सरकार के अनुसार पिछले 8 साल में 2870 किसान खुदकुशी कर चुके हैं. गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने लिखित जवाब में बताया कि साल 2008 से 2015 के दौरान 2870 किसानों ने पारिवारिक और धन की तंगी के कारण आत्महत्या की है. देश भर के आंकड़ों की बात करें तो 2015 में 8,007 किसानों ने जबकि चार 4 हजार 595 कृषि मजदूरों ने मौत को गले लगाया है. इस दौरान सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के किसानों ने अपनी जान दी है.

नेशनल क्राइम ब्यूरो रेकॉर्ड के अनुसार किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामले के पीछे फसल की बर्बादी, कृषि उत्पादों का उचित मूल्य न मिलना, बैंक कर्ज न चुका पाना है. इसके अलावा देश में किसानों को आत्महत्या करने के लिए गरीबी, बीमारी भी लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर देती है.

बंपर फसल फिर भी परेशान

इन दिनों मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के किसान अरहर दाल की अच्छी पैदावार के बावजूद परेशान हैं तो पंजाब और उत्तर प्रदेश में आलू किसानों को अच्छी फसल का कोई फायदा नहीं मिल रहा है. भारतीय किसान यूनियन के गौरव टिकैत कहते हैं कि कीमत नहीं मिल पाने से आलू किसान किसान बेहाल हैं. उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में आलू की पैदावार कम हुई और अब फसल के दाम नहीं मिल रहे हैं. उचित मूल्य ना मिलने से परेशान पंजाब में दोआबा क्षेत्र के किसानों ने विरोधस्वरूप सड़कों पर आलू फेंक दिए. भारतीय किसान यूनियन की पंजाब इकाई के अनुसार पंजाब सरकार ने मार्कफेड और नेफेड को किसानों से आलू खरीदने को कहा था लेकिन दोनों संस्थाएं ऐसा करने में नाकाम रहीं

चुनाव में बहते घड़ियाली आंसू

सत्ता में कोई भी रहे किसानों के लिए कोई भी दल गंभीर नहीं है. उत्तर प्रदेश के चुनाव में किसानों की बदहाली मुद्दा तो है लेकिन आरोप प्रत्यारोप से आगे कोई चर्चा नहीं होती. 2022 तक किसान की आमदनी को दो गुना करने के अपने सपने को साझा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जनसभाओं में कहते हैं कि राज्य में सरकार बनते ही किसानों का कर्ज माफ हो जाएगा. इस पर पलटवार करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं, "अगर उन्हें कर्ज माफ ही करना है तो अपनी कैबिनेट में प्रस्ताव पास कर कर्ज माफ कर दें. इसके लिये प्रदेश में भाजपा की सरकार बनना जरूरी नहीं है."

मऊ के एक किसान नरेंद्र यादव कहते हैं कि ये नेता सिर्फ घडियाली आंसू बहते हैं. ना पिछली यूपीए सरकार गंभीर थी और ना ही वर्तमान मोदी सरकार. वे कहते हैं, "प्रधानमन्त्री किसानों को लेकर इतने चिंतित रहते हैं लेकिन उनकी अपनी रैली के लिए किसानों की लहलहाती फसलों को काट दिया जाता है." यानी, किसान अब सच्चाई समझने लगे हैं, और शायद बड़े सपने देखने से कतराने भी लगे हैं.

(नाराज किसानों से उड़ाई दूध पाउडर की आंधी)

रिपोर्ट: विश्वरत्न