1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नौकरी नहीं तो मोदी को वोट भी नहीं देंगे लोग

६ अप्रैल २०१८

राकेश कुमार के पास पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री है लेकिन राजस्थान के कस्बा बोनली में वो घरों की दीवारें रंग कर अपनी रोजी रोटी चलाते हैं. भारत के शिक्षित बेरोजगार नरेंद्र मोदी से सबसे ज्यादा नाराज हैं.

https://p.dw.com/p/2vceD
Indien Premierminister Narendra Modi
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress

8 भाई बहनों में सबसे बड़े राकेश परिवार के अकेले शख्स हैं जिन्हें यूनिवर्सिटी जाना नसीब हुआ लेकिन नौकरी पाने की उनकी सारी कोशिशें नाकाम रहीं और राकेश इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार मानते हैं. राकेश का कहना है कि वादा करने के बावजूद नौकरियों के मौके नहीं बनाए गए. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में राकेश ने कहा, "पिछली बार मैंने मोदी को वोट दिया था. उन्होंने नौकरी का वादा किया था और मैं निश्चिंत था कि मुझे भी कुछ मिलेगा. अब में उनको दोबारा वोट नहीं दूंगा."

Indien Arbeitsmarkt in Kasba Bonli
तस्वीर: Reuters/K. N. Das

करोड़ों लोगों को नौकरी देने के चुनावी वादे ने मोदी को 2014 के आम चुनाव में वो कामयाबी दिलाई जो बीते तीन दशकों में किसी और पार्टी के हिस्से नहीं आई. हालांकि अब जब वो अगले कार्यकाल के लिए लोगों से वोट मांगने जाने की तैयारी में जुटे हैं तब उनका यही वादा सबसे बड़ी चुनौती पेश करने वाला है. बोनली राजस्थान में गेंहू की फसल वाले इलाके में बसा एक छोटा सा कस्बा है. बीजेपी को यहां 2013 के प्रदेश और 2014 के राष्ट्रीय चुनावों में जबरदस्त कामयाबी मिली. यहां के किसान नेता हनुमान प्रसाद मीणा कहते हैं, "मेरे दो बेटे पढ़े लिखे हैं लेकिन उनके पास नौकरी नहीं है. बहुत से किसानों ने मोदी के नाम पर पहले वोट दिया लेकिन अब उन्हें यहां कोई समर्थन नहीं देता."

2013 में इसी इलाके के लोग मोदी और कारोबार के लिए मुफीद उनकी नीतियों के बारे में बात करते नहीं थकते थे. लोगों को उम्मीद थी कि अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी और नौकरियां पैदा होंगी. लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ हुआ नहीं. भारत में बेरोजगारी की दर मार्च में 6.23 फीसदी थी जो बीते सोलह महीनों में सबसे ज्यादा है. देश की आबादी में दो तिहाई से ज्यादा लोग 35 साल से कम उम्र के हैं. यहां नौकरी पाना इतना मुश्किल है कि जब रेलवे ने 90 हजार नौकरियों की वैकेंसी निकाली तो ढाई करोड़ से ज्यादा लोगों ने उसके लिए आवेदन किया.

मोदी सरकार में मंत्री राम विलास पासवान कहते हैं कि नौकरियों के आंकड़े चिंता में डालने वाले हैं और सरकार इसे हल करने के लिए काम कर रही है. पासवान ने कुछ जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर भी डाली. एक इंटरव्यू में पासवान ने कहा, "लोग केवल नरेंद्र मोदी से नौकरी की उम्मीद करते है, वे भूल जाते हैं कि नौकरियां पैदा करने में राज्य सरकारो की भी कुछ जिम्मेदारी है. हालांकि केंद्र सरकार इसके बारे में चिंतित है. चुनाव में छोटी छोटी बातें भी बड़ा मुद्दा बन जाती हैं. सरकार यह जानती है."

इतने पर भी मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. इस वक्त उन्हें लोगों के मन मंदिर से कोई हटा सके ऐसे आसार हाल फिलहाल तो नहीं दिख रहे. करीब करीब हर 10 में से 9 भारतीय मोदी के बारे में सकारात्मक राय रखता है और दो तिहाई से अधिक लोग इस बात से संतुष्ट हैं कि वो देश को किस तरफ ले जा रहे हैं. ये आंकड़े नवंबर में पीयू थिंकटैंक के कराए सर्वे से लिए गए हैं.

बीजेपी और उसके सहयोगी दल फिलहाल भारत के 29 में से 21 राज्यों की सरकार चला रहे हैं. 2014 में सिर्फ सात राज्यों में बीजेपी की सरकार थी. दूसरी तरफ लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस पार्टी विपक्ष में है और सिर्फ तीन राज्यों में उसकी सरकार है.

आधार बनाती कांग्रेस?

मोदी लहर से पहले कांग्रेस की ओर से किसानों को मिली इमदाद ने कभी बदहाल रहे कस्बा बोनली को एक व्यस्त बाजार में तब्दील कर दिया था. यहां की दुकानों में चमचमाती चूड़ियों से लेकर सेटेलाइट डिश तक बिकने लगी. हालांकि कुछ किसान जब समृद्ध हुए तो अपने बच्चों को खेतीबाडी़ से दूर करने की इच्छा उनके मन में पलने लगी. मोदी ने जब चुनाव के दौरान हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया तो उन्हें अपने सपने सच होते दिखे. 1991 के बाद यह सिर्फ दूसरी बार था कि इलाके के लोगों ने अपना विधायक बीजेपी से चुना. हालांकि लोगों का कहना है कि अब कांग्रेस वापसी कर सकती है.

Indien Arbeitsmarkt in Kasba Bonli
तस्वीर: Reuters/K. N. Das

पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस प्रमुख सचिन पायलट का कहना है कि बीजेपी ने लोगों की उम्मीदें बढ़ा कर भूल की. उन्होंने कहा, "जबकि वो जानते थे कि कुछ चीजें संभव नहीं हैं." उन्होंने यह भी कहा उनकी पार्टी "झूठे वादे" नहीं करेगी लेकिन ऐसा विकास करेगी "जिसमें नौकरी पैदा करने के हर संभव मौके हो."

राजस्थान में स्थानीय बीजेपी नेता हनुमत दीक्षित भी मानते हैं कि पार्टी आगामी चुनाव में नौकरियों की कमी का नुकसान झेल सकती है. लेकिन इसके साथ ही वो यह भी कहते हैं कि मोदी को अपना वादा पूरा करने के लिए और वक्त की जरूरत है.

मोदी सरकार एक स्वतंत्र रिसर्च का हवाला दे कर बताती है कि मार्च 31 को पूरे हुए वित्तीय वर्ष में 70 लाख नौकरियां पैदा हुईं. इसकी तुलना अगर बेरोजगारों की संख्या से करें तो करीब 8 करोड़ की कमी है. इसके अलावा हर महीने करीब 10 लाख युवा नौकरी के बाजार में उतर रहे हैं. स्वतंत्र थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महेश व्यास कहते हैं, "यह एक वृहत आर्थिक समस्या है, अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की जरूरत है. सरकार निजी क्षेत्र में स्थिति बेहतर कर सकती है जिससे की भारी निवेश हो और फिर इससे रोजगार पैदा होगा."

Indien Arbeitsmarkt in Kasba Bonli
तस्वीर: Reuters/K. N. Das

महेश व्यास के मुताबिक बड़ी समस्या यह है कि अचानक हुई नोटबंदी के बाद युवाओं ने नौकरी की तलाश ही बंद कर दी, अर्थव्यवस्था पर नगदी की कमी का बहुत बुरा असर हुआ. इससे खेतीबाड़ी पर भी बुरा असर पड़ा.

अर्थव्यवस्था ने जीएसटी के कारण भी शुरुआती नुकसान झेला हालांकि अक्टूबर से दिसंबर वाली तिमाही में इसने वापसी की और 7.2 का विकास दर हासिल किया. लेकिन 2005-2008 के बीच रहे 9 फीसदी के विकास दर से अब भी यह बहुत पीछे है. बीते तीन सालों में अलग अलग जातियों की आरक्षण की मांग ने भी भारत को बुरी तरह प्रभावित किया है.

कस्बा बोनली में युवाओं का गुट बाजार में मोटरसाइकिल की सीटों पर बैठ कर इधर उधर की बातों में दिन गंवा देता है. हालांकि अब भी यहां अपराध या अशांति में कोई ऐसी तेजी नहीं आई है जो चिंता पैदा करे.

21 साल के बबलू सैनी ने हाल ही में अपने पिता की मोबाइल रिपेयर करने की दुकान के बाहर चाय की दुकान खोली है. उन्होंने हाईस्कूल से ज्यादा पढ़ाई नहीं की और एक दो बार की नाकामी के बाद नौकरी खोजना बंद कर दिया. लोगों को चाय पिलाते पिलाते कहते हैं, "मेरे कई साथी शहर से नौकरी नहीं मिलने पर वापस लौट आए. वहां कोई नौकरी नहीं है, इसलिए उसका इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं."

एनआर/एमजे(रॉयटर्स)